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छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ जिले के दूरस्थ वनांचल क्षेत्र में बसे हाथीझोला गांव में बैगा आदिवासी बच्चों का भविष्य जर्जर स्कूल भवन और सरकारी उदासीनता की भेंट चढ़ रहा है। चार साल पहले गांव का एकमात्र स्कूल भवन खतरनाक स्थिति में होने के कारण बंद कर दिया गया था, लेकिन आज तक न तो इसकी मरम्मत हुई और न ही कोई नया भवन बनाया गया।
नतीजा, 40 से अधिक बच्चे शिक्षा के मूलभूत अधिकार से वंचित होकर कभी पेड़ की छांव में, तो कभी तंग आंगनबाड़ी केंद्र में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। यह स्थिति न केवल व्यवस्था की विफलता को उजागर करती है, बल्कि आदिवासी समुदाय के प्रति प्रशासन की लापरवाही को भी सामने लाती है।
जर्जर भवन, टूटते सपने
हाथीझोला गांव, बकरकट्टा से मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, लेकिन यहाँ की स्थिति ऐसी है मानो यह शासन-प्रशासन की नजरों से पूरी तरह ओझल हो।विद्यालय भवन की दीवारें और छत जर्जर हालत में हैं, जिसके चलते चार साल पहले इसे बंद करना पड़ा। तब से बच्चों की पढ़ाई कभी खुले आसमान के नीचे पेड़ों की छांव में, तो कभी आंगनबाड़ी के छोटे से कमरे में हो रही है।
बारिश और गर्मी के मौसम में पढ़ाई पूरी तरह ठप हो जाती है, क्योंकि पेड़ों के नीचे कक्षाएं चलाना संभव नहीं होता। आंगनबाड़ी में भी जगह की कमी के कारण बच्चे जमीन पर बैठकर स्लेट और किताबों के सहारे पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन अपर्याप्त सुविधाओं के कारण उनकी शिक्षा का स्तर लगातार गिर रहा है।
बैगा समुदाय की गुहार, सरकारी आश्वासन
बैगा आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष जीवन मरावी ने इस स्थिति पर गहरी नाराजगी जताई है। उन्होंने बताया कि स्कूल भवन की समस्या को लेकर कई बार खैरागढ़ कलेक्टर, जनप्रतिनिधियों और शिक्षा विभाग के अधिकारियों से गुहार लगाई गई, लेकिन हर बार केवल खोखले आश्वासन ही मिले।
मरावी कहते हैं, “हमारे बच्चों का भविष्य अंधेरे में है। ग्रामीणों ने अपने स्तर पर दो साल तक बच्चों की कक्षाएं पेड़ के नीचे चलाने की कोशिश की, लेकिन मौसम की मार और सुविधाओं की कमी ने इस प्रयास को भी विफल कर दिया। अब आंगनबाड़ी केंद्र में कक्षाएं आयोजित की जा रही हैं, लेकिन वहां भी जगह की कमी और बुनियादी सुविधाओं का अभाव बच्चों की पढ़ाई में बाधा बन रहा है।
शिक्षा का अधिकार अधर में
भारत में शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) 2009 के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है। लेकिन हाथीझोला गांव में यह अधिकार केवल कागजों तक सीमित है। गांव में नेटवर्क की सुविधा न होने के कारण ऑनलाइन शिक्षा भी कोई विकल्प नहीं है। 40 से अधिक बच्चे बुनियादी शिक्षा से वंचित हैं, और उनके पास नजदीकी स्कूल तक पहुंचने के लिए कोई साधन नहीं है। यह स्थिति न केवल शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि आदिवासी समुदाय के बच्चों के भविष्य को भी खतरे में डाल रही है।
अधिकारियों को बारिश खत्म होने का इंतजार
जिम्मेदार अधिकारियों ने इस मामले में मीडिया से बात करने से परहेज किया है। हालांकि, कुछ अधिकारियों ने अनौपचारिक रूप से कहा कि बारिश का मौसम खत्म होने के बाद स्कूल भवन की मरम्मत शुरू की जाएगी। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि पिछले चार साल से यही बहाना दिया जा रहा है। हर बार बारिश, बजट या अन्य कारणों का हवाला देकर मामले को टाला जाता रहा है। ग्रामीणों का धैर्य अब जवाब दे रहा है, और वे चेतावनी दे रहे हैं कि अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो वे अपने बच्चों के साथ कलेक्टर कार्यालय के सामने प्रदर्शन करेंगे।
बैगा समुदाय की मांग, सम्मान के साथ शिक्षा
बैगा आदिवासी समुदाय ने साफ तौर पर कहा है कि वे केवल आश्वासनों से संतुष्ट नहीं होंगे। उनकी मांग है कि गांव में तत्काल एक नया स्कूल भवन बनाया जाए, जिसमें बुनियादी सुविधाएं जैसे बेंच, ब्लैकबोर्ड, शौचालय और पेयजल उपलब्ध हों। इसके अलावा, वे शिक्षकों की नियमित उपस्थिति और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की भी मांग कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उनके बच्चे भी अन्य बच्चों की तरह सम्मानजनक शिक्षा के हकदार हैं, और सरकार को उनकी अनदेखी बंद करनी चाहिए।
शिक्षा व्यवस्था पर सवाल
हाथीझोला गांव की यह स्थिति छत्तीसगढ़ के वनांचल क्षेत्रों में शिक्षा व्यवस्था की बदहाली की एक बानगी है। सरकारी योजनाएं जैसे 'सर्व शिक्षा अभियान' और 'मिड-डे मील' भले ही कागजों पर चमक रही हों, लेकिन ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में इनका प्रभाव न के बराबर है। स्कूल भवनों की कमी, शिक्षकों की अनुपस्थिति और बुनियादी सुविधाओं का अभाव इन क्षेत्रों में शिक्षा के मार्ग में सबसे बड़ी बाधाएं हैं।
शिक्षा के अभाव में सपनों को खो रहे बच्चे
हाथीझोला के बैगा आदिवासी बच्चों की यह कहानी केवल एक गांव तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन हजारों ग्रामीण और आदिवासी बच्चों की व्यथा को दर्शाती है, जो शिक्षा के अभाव में अपने सपनों को खो रहे हैं। प्रशासन को चाहिए कि वह तत्काल इस मामले में हस्तक्षेप करे और स्कूल भवन के निर्माण या मरम्मत के लिए ठोस कदम उठाए। साथ ही, ग्रामीणों की शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए समयबद्ध तरीके से समाधान निकाला जाए।
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