पंचायत चुनाव की आहट आते ही सरकार के दिमाग में एक नया प्लान आया है। यह संभव कैसे होगा यह सरकार भी नहीं जानती। सरकार का ये अफलातून प्लान गांव में पंच-सरपंच बनाने के लिए है। न ईवीएम का इस्तेमाल हो और न ही बैलेट पेपर का, और गांव की सरकार बन जाए। ये सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा है इसीलिए हम इसे अफलातून प्लान कह रहे हैं।
दूसरी तरफ सरकार निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव एक साल करने की भी तैयारी कर रही है। इसके लिए गठित समिति के पास प्रदेश भर से सुझाव आए हैं। जल्द ही समिति सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। आइए आपको बताते हैं कि क्यों आया सरकार के दिमाग में ये अफलातूनी प्लान।
क्यों बिना चुनाव के सरपंच बनाना चाहती है सरकार
पंचायत चुनाव अब तक बैलेट पेपर से होते रहे हैं। इसके लिए बाकायदा पंचायतीराज अधिनियम भी है। फिर सरकार के दिमाग में ऐसा क्यों आया कि बिना वोट डाले ही पंच,सरपंच बना लिए जाएं। डिप्टी सीएम और पंचायत मंत्री विजय शर्मा कहते हैं कि बिना वोट के गांव में जनप्रतिनिध चुन लिए जाएं लेकिन ये कैसे संभव होगा यह कहा नहीं जा सकता। पंचायत मंत्री ने कहा कि यह सरकार नहीं कर सकती लेकिन क्या ऐसा कोई आइडिया हो सकता है जिससे ये मुमकिन हो पाए।
विजय शर्मा ने कहा कि दरअसल यह विचार इसलिए आया क्योंकि पंचायत स्तर पर जब चुनाव होते हैं तो दो पक्षों में रंजिश पैदा हो जाती है। कभी कभी ये रंजिश हिंसक हो जाती है। जो जीत जाता है उसके मतभेद हमेशा दूसरे पक्ष से बने रहते हैं। पंचायत में बहुत कम वोट होते हैं इसलिए ये आसानी से अनुमान लग जाता है कि किसने किसे वोट दिया है और यही बात बड़े मतभेद का कारण बन जाती है।
कभी-कभी इससे परिवार टूट जाते हैं और परिवार के लोग भी एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं। विजय शर्मा ने कहा कि यह सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं है और यही कारण है कि हमने पंच-सरपंच और ग्रामीणों से ये सुझाव मांगे हैं कि क्या ऐसा मुमकिन हो सकता है।
निकाय और पंचायत चुनाव एक साथ कराने की तैयारी
डिप्टी सीएम एवं नगरीय प्रशासन मंत्री अरुण साव - छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव एक साथ हो सकते हें। इसकी तैयारी तेज हो गई है। पीएम मोदी हमेशा वन नेशन_वन इलेक्शन की बात करते हैं। यही कारण है कि लगभग एक समय में होने वाले दोनों चुनावों को एक साथ करा लिया जाए। सरकार ने इसके विचार के लिए एक समिति का गठन किया है।
समिति हर स्तर पर इसका अध्ययन कर रही है। सरकार मानती है कि निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव के बीच में बहुत समय का अंतर नहीं होता। एक चुनाव की आचार संहिता हटते ही दूसरे चुनाव की आचार संहिता लग जाती है जिससे विकास के काम प्रभावित होते हैं। समिति के पास इस संबंध सुझाव आ चुके हैं। जल्द ही समिति सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी। इस रिपोर्ट के बाद ही सरकार यह फैसला करेगी कि दोनों चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं या नहीं।
प्रदेश में 11 हजार से ज्यादा ग्राम पंचायतें
पिछले चुनाव के सरकारी आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ में 20619 गांव हैं। इन गांवों में 11664 ग्राम पंचायतें हैं। सरपंचों की संख्या 10976 है। अभी जिला पंचायत अध्यक्षों की संख्या 27 है। जिला बढ़ने के बाद अब जिला पंचायतों की संख्या बढ़ सकती है। जनपद पंचायतों की संख्या 146 है। नगरीय निकाय चुनाव नवंबर-दिसंबर में प्रस्तावित हैं जबकि इसके बाद जनवरी-फरवरी में पंचायतों के चुनाव का समय होता है। ऐसे में यदि दोनों चुनाव एक साथ होते हैं तो पैसे और संसाधनों की बचत भी हो सकती है।
यही कारण है कि सरकार एक साथ दोनों चुनाव कराने की तैयारी कर रही है। पिछले चुनाव के समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। हालांकि पंचायत चुनाव राजनीतिक दल के चुनाव चिन्ह के आधार पर नहीं होते हैं लेकिन ऐसा माना जाता है कि जिस दल की सरकार होती है उस दल की विचारधारा के सरपंच चुने जाते हैं। इसीलिए कांग्रेस निकाय और पंचायतों में अपने प्रतिनिधि होने का दावा करती है। अब बीजेपी की सरकार है लिहाजा इसका असर निकाय और पंचायत चुनाव पर भी पड़ेगा।
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