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छत्तीसगढ़ में कॉलेजों में अतिथि शिक्षकों की भर्ती को लेकर राज्य सरकार का हालिया आदेश विवादों के घेरे में आ गया है। इस आदेश में बाहरी राज्यों के उम्मीदवारों को भी आवेदन का अवसर देने की बात कही गई है, जिससे प्रदेश के पढ़े-लिखे युवाओं में आक्रोश फैल गया है।
स्थानीय युवा इस फैसले को अपने हितों पर कुठाराघात मान रहे हैं और इसे अन्यायपूर्ण करार दे रहे हैं। हालांकि, सरकार ने स्पष्ट किया है कि समान अंकों की स्थिति में छत्तीसगढ़ के उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाएगी, लेकिन यह शर्त भी स्थानीय युवाओं का गुस्सा शांत करने में नाकाफी साबित हो रही है।
क्या है विवाद का कारण?
छत्तीसगढ़ शासन ने पहले अतिथि शिक्षक भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था, जिसमें प्रदेश के मूल निवासियों को प्राथमिकता देने का स्पष्ट उल्लेख था। इस घोषणा से स्थानीय युवाओं में उत्साह था, और नेट-सेट उत्तीर्ण कई उम्मीदवारों ने इस अवसर को अपने करियर की शुरुआत के रूप में देखा। लेकिन हाल ही में जारी नए आदेश ने इस नीति में बदलाव ला दिया।
अब बाहरी राज्यों के उम्मीदवारों को भी भर्ती प्रक्रिया में शामिल होने की अनुमति दी गई है, और केवल समान अंकों की स्थिति में ही छत्तीसगढ़ के उम्मीदवारों को प्राथमिकता मिलेगी। इस बदलाव ने स्थानीय युवाओं के बीच असंतोष की लहर पैदा कर दी है।
स्थानीय युवाओं का आक्रोश
नेट और सेट जैसी कठिन परीक्षाएं उत्तीर्ण करने वाले छत्तीसगढ़ के युवाओं ने इस फैसले को अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ बताया है। उनका कहना है कि अन्य राज्यों में भर्ती प्रक्रियाओं में स्थानीय उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में उल्टा नियम लागू करना स्थानीय युवाओं के साथ नाइंसाफी है।
एक नेट उत्तीर्ण उम्मीदवार, रवि साहू (बदला हुआ नाम), ने कहा, "हमने दिन-रात मेहनत करके नेट और सेट पास किया, ताकि अपने ही राज्य में नौकरी पा सकें। लेकिन अब बाहरी उम्मीदवारों को मौका देना हमारे सपनों को तोड़ने जैसा है।"
युवाओं का यह भी तर्क है कि छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में, जहां बेरोजगारी पहले से ही एक बड़ी समस्या है, स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता देना न केवल तर्कसंगत है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय की दृष्टि से भी जरूरी है। कई युवाओं ने सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जाहिर की है और शासन से इस आदेश को तत्काल वापस लेने की मांग की है।
समान अंक होने पर स्थानीय को प्राथमिकता
राज्य सरकार ने अपने नए आदेश में स्पष्ट किया है कि भर्ती प्रक्रिया में मेरिट के आधार पर चयन होगा, और यदि दो उम्मीदवारों के अंक समान होते हैं, तो छत्तीसगढ़ के मूल निवासी को प्राथमिकता दी जाएगी। सरकार का तर्क है कि यह नीति भर्ती प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और समावेशी बनाती है, साथ ही उच्च योग्यता वाले उम्मीदवारों को अवसर प्रदान करती है। हालांकि, इस शर्त को स्थानीय युवा पर्याप्त नहीं मान रहे हैं। उनका कहना है कि समान अंकों की स्थिति दुर्लभ होती है, और इस नीति से बाहरी उम्मीदवारों को अधिक लाभ मिलने की संभावना है।
विरोध के स्वर और मांग
छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों में नेट-सेट उत्तीर्ण उम्मीदवारों ने इस आदेश के खिलाफ आवाज बुलंद की है। कई युवा संगठनों और छात्र समूहों ने इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई है। उनकी मांग है कि भर्ती प्रक्रिया में केवल छत्तीसगढ़ के मूल निवासियों को ही अवसर दिया जाए, जैसा कि पहले के विज्ञापन में वादा किया गया था। कुछ उम्मीदवारों ने यह भी सुझाव दिया है कि यदि बाहरी उम्मीदवारों को शामिल करना ही है, तो स्थानीय उम्मीदवारों के लिए कम से कम 80% पद आरक्षित किए जाएं।
क्या हैं भविष्य की संभावनाएं?
यह विवाद न केवल शैक्षणिक भर्ती नीतियों पर सवाल उठाता है, बल्कि छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी और स्थानीय युवाओं के अवसरों की कमी जैसे गंभीर मुद्दों को भी उजागर करता है। यदि सरकार इस मुद्दे पर युवाओं की मांगों को गंभीरता से नहीं लेती, तो यह आंदोलन और व्यापक रूप ले सकता है। दूसरी ओर, सरकार के सामने यह चुनौती भी है कि वह भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और योग्यता को बनाए रखे, ताकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित हो सके।
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