छत्तीसगढ़ में अपार ID पंजीकरण का 80% लक्ष्य अधूरा, तकनीकी बुनियादी ढांचे की चुनौती

छत्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों के लिए अपार (Automated Permanent Academic Account Registry) ID पंजीकरण की शुरुआत को एक साल बीत चुका है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी प्रगति बेहद धीमी रही है।

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Krishna Kumar Sikander
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छत्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों के लिए अपार (Automated Permanent Academic Account Registry) ID पंजीकरण की शुरुआत को एक साल बीत चुका है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी प्रगति बेहद धीमी रही है। शिक्षा मंत्रालय की इस महत्वाकांक्षी योजना का उद्देश्य प्रत्येक स्कूली बच्चे को एक विशिष्ट 12-अंकीय डिजिटल पहचान प्रदान करना है, जो उनकी शैक्षिक यात्रा को ट्रैक करने और सरकारी योजनाओं जैसे मिड-डे मील, स्कॉलरशिप और अन्य शैक्षिक लाभों को सुगम बनाने में मदद करे।

 हालांकि, जागरूकता की कमी, तकनीकी बुनियादी ढांचे की अपर्याप्तता, और प्रशासनिक चुनौतियों के कारण अधिकांश जिलों में केवल 20 प्रतिशत बच्चों का ही अपार ID बन पाया है यानी अभी भी 80 प्रतिशत लक्ष्य अधूरा है। यह स्थिति न केवल शिक्षा व्यवस्था में सुधार की गति को प्रभावित कर रही है, बल्कि बच्चों के अधिकारों और लाभों तक पहुंच को भी बाधित कर रही है।

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क्या है अपार ID और इसका महत्व

अपार ID भारत सरकार की एक पहल है, जिसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत लागू किया गया है। यह एक डिजिटल पहचान प्रणाली है, जो प्रत्येक स्कूली बच्चे को एक अद्वितीय 12-अंकीय पहचान संख्या प्रदान करती है। यह ID आधार कार्ड से जुड़ा होता है और इसका उद्देश्य बच्चों की शैक्षिक प्रगति को डिजिटल रूप से ट्रैक करना, स्कूलों के बीच स्थानांतरण को आसान बनाना, और सरकारी योजनाओं के लाभों को सीधे बच्चों तक पहुंचाना है। अपार ID के जरिए मिड-डे मील, स्कॉलरशिप, और अन्य शैक्षिक लाभों में पारदर्शिता और दक्षता लाने का लक्ष्य है। यह प्रणाली UDISE+ (Unified District Information System for Education Plus) और आधार के साथ एकीकृत है, जिससे बच्चों का डेटा एक केंद्रीकृत डेटाबेस में संग्रहीत होता है।

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पंजीकरण में धीमी प्रगति, केवल 20 प्रतिशत उपलब्धि

छत्तीसगढ़ में अपार ID पंजीकरण की शुरुआत एक साल पहले हुई थी, लेकिन प्रगति निराशाजनक रही है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश के अधिकांश जिलों में केवल 20 प्रतिशत स्कूली बच्चों का ही अपार ID बन पाया है। यह स्थिति खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में चिंताजनक है, जहां तकनीकी संसाधनों और जागरूकता की कमी ने इस प्रक्रिया को और जटिल बना दिया है। शहरी क्षेत्रों में स्थिति तुलनात्मक रूप से बेहतर है, लेकिन वहां भी पंजीकरण की गति अपेक्षा से कम है।

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प्रमुख चुनौतियां

जागरूकता की कमी : ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावकों और स्कूल प्रशासनों में अपार ID के महत्व और पंजीकरण प्रक्रिया के बारे में जागरूकता का अभाव है। कई अभिभावक, विशेष रूप से सीमांत और अशिक्षित समुदायों से, इस प्रणाली से अनजान हैं। इसके अलावा, आधार से लिंक करने की अनिवार्यता और डेटा सुधार की जटिल प्रक्रिया ने भी अभिभावकों के लिए कठिनाइयां बढ़ाई हैं। उदाहरण के लिए, आधार में नाम या जन्मतिथि में विसंगतियां होने पर अपार ID पंजीकरण रुक जाता है, और ग्रामीण क्षेत्रों में आधार सुधार केंद्रों तक पहुंच सीमित है।

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तकनीकी बुनियादी ढांचे की कमी : ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल उपकरणों की कमी अपार ID पंजीकरण में एक बड़ी बाधा है। कई स्कूलों में कंप्यूटर, स्कैनर, या विश्वसनीय इंटरनेट की सुविधा नहीं है, जिसके कारण डेटा अपलोड करने और UDISE+ पोर्टल पर जानकारी अपडेट करने में देरी होती है। इसके अलावा, आधार सत्यापन के लिए बायोमेट्रिक उपकरणों की अनुपलब्धता और बिजली की अनियमित आपूर्ति ने भी प्रक्रिया को प्रभावित किया है।

प्रशासनिक अड़चनें : स्कूल प्रशासकों और शिक्षकों पर पहले से ही पढ़ाई और अन्य प्रशासनिक कार्यों का बोझ है। अपार ID पंजीकरण के लिए अतिरिक्त जिम्मेदारी ने उनकी कार्यक्षमता पर दबाव बढ़ाया है। कई स्कूलों में प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी है, जो डेटा प्रविष्टि और सत्यापन को सही ढंग से कर सकें। इसके अलावा, मैनुअल डेटा प्रविष्टि में त्रुटियां, जैसे नाम या जन्मतिथि में गलतियां, पंजीकरण प्रक्रिया को और जटिल बना रही हैं।

आधार लिंकेज की अनिवार्यता : अपार ID के लिए आधार कार्ड का होना अनिवार्य है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में कई बच्चों के पास आधार कार्ड नहीं है। विशेष रूप से बेघर, आदिवासी, और अन्य हाशिए पर रहने वाले समुदायों के बच्चों को आधार पंजीकरण में कठिनाई होती है, क्योंकि उनके पास स्थायी पता या अन्य आवश्यक दस्तावेज नहीं होते। इसके अलावा, आधार डेटा में सुधार की प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली है, जिसके कारण कई बच्चे अपार ID से वंचित रह जाते हैं।

बच्चों और अभिभावकों पर असर

अपार ID की धीमी प्रगति का सबसे बड़ा प्रभाव स्कूली बच्चों और उनके अभिभावकों पर पड़ रहा है। बिना अपार ID के बच्चे सरकारी योजनाओं, जैसे मिड-डे मील, स्कॉलरशिप, और अन्य शैक्षिक लाभों से वंचित हो रहे हैं। कुछ स्कूलों में अपार ID की अनिवार्यता के कारण बच्चों को दाखिला देने से मना किया जा रहा है, जो कि शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 का उल्लंघन है।

ग्रामीण क्षेत्रों में अभिभावकों को आधार सुधार केंद्रों तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है, जो उनके लिए समय और धन की बर्बादी का कारण बनता है। इसके अलावा, डिजिटल साक्षरता की कमी के कारण कई अभिभावक इस प्रक्रिया को समझ नहीं पाते और हार मान लेते हैं।

सरकार के प्रयास और कमियां

छत्तीसगढ़ सरकार ने अपार ID पंजीकरण को गति देने के लिए कुछ कदम उठाए हैं, जैसे स्कूलों में जागरूकता अभियान और शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम। हालांकि, ये प्रयास ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभावी नहीं हो पाए हैं। UIDAI और शिक्षा विभाग ने ऑनलाइन पोर्टल और आधार सेवा केंद्रों के माध्यम से डेटा सुधार की सुविधा प्रदान की है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इन केंद्रों की संख्या और पहुंच सीमित है। इसके अलावा, सरकार ने अपार ID को आधार से जोड़ने की अनिवार्यता को सरल करने के लिए कोई ठोस नीति लागू नहीं की है, जिसके कारण अभिभावकों को बार-बार असुविधा का सामना करना पड़ रहा है।

समाधान के लिए सुझाव

जागरूकता अभियान : ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक जागरूकता अभियान चलाए जाएं, जिसमें स्थानीय भाषाओं में अपार ID और आधार के महत्व को समझाया जाए। पंचायतों, आंगनवाड़ी केंद्रों, और सामुदायिक संगठनों को इस प्रक्रिया में शामिल किया जाए।


तकनीकी बुनियादी ढांचे में सुधार : ग्रामीण स्कूलों में इंटरनेट, कंप्यूटर, और बायोमेट्रिक उपकरणों की उपलब्धता बढ़ाई जाए। मोबाइल आधार सेवा वैन को गांवों तक पहुंचाया जाए।


प्रशिक्षण और सहायता केंद्र : स्कूलों और ब्लॉक स्तर पर सहायता डेस्क स्थापित किए जाएं, जहां अभिभावक डेटा सुधार और पंजीकरण से संबंधित मदद ले सकें।


आधार लिंकेज में लचीलापन : अपार ID के लिए आधार की अनिवार्यता को अस्थायी रूप से हटाया जाए, ताकि बिना आधार वाले बच्चे भी पंजीकरण कर सकें।


प्रशासनिक सुधार : डेटा प्रविष्टि में त्रुटियों को कम करने के लिए स्कूल कर्मचारियों को नियमित प्रशिक्षण दिया जाए और प्रक्रिया को स्वचालित किया जाए।

तत्काल ठोस कदम उठाने की जरूरत 

छत्तीसगढ़ में अपार ID पंजीकरण की धीमी गति शिक्षा व्यवस्था में डिजिटल सुधार की राह में एक बड़ी चुनौती है। ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता और तकनीकी बुनियादी ढांचे की कमी ने इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया है। केवल 20 प्रतिशत बच्चों का पंजीकरण होना इस बात का संकेत है कि सरकार को तत्काल और ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

यदि इन चुनौतियों का समाधान नहीं किया गया, तो यह न केवल बच्चों के शैक्षिक अधिकारों को प्रभावित करेगा, बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लक्ष्यों को भी कमजोर करेगा। सरकार, स्कूल प्रशासन, और समुदाय को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा ताकि प्रत्येक बच्चे को उसकी डिजिटल पहचान और उससे जुड़े लाभ मिल सकें।

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