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बिलासपुर के उपभोक्ता आयोग ने एक अहम मामले में बैंक की लापरवाही साबित होने पर ग्राहक के पक्ष में बड़ा आदेश दिया है। आयोग ने बैंक को खाते से निकाले गए 20 हजार रुपए ब्याज सहित लौटाने को कहा है। साथ ही मानसिक क्षति के लिए पांच हजार और मुकदमे पर हुए खर्च के पांच हजार रुपए देने के आदेश दिए हैं। आदेश आयोग के अध्यक्ष आनंद कुमार सिंघल, सदस्यों आलोक पांडेय और पूर्णिमा सिंह की पीठ ने दिया है।
ऐसे की ठगी
खमतराई निवासी चंचल कुमार पात्रा का आईसीआईसीआई बैंक, तेलीपारा में खाता था। 27 जुलाई 2018 को उसके खाते से अचानक 20 हजार रुपए अनाधिकृत निकासी हो गई। सुबह 11:09 बजे ग्राहक को बैंक से संदेश मिला कि उसके डेबिट कार्ड से 20 हजार रुपए की खरीदारी की गई है। ग्राहक ने तुरंत शिकायत दर्ज कराई और उसी दिन बैंक ने उसका डेबिट कार्ड ब्लॉक कर दिया।
बाद में पता चला कि यह लेनदेन पेटीएम के माध्यम से चार अलग-अलग ट्रांजक्शन से किया गया। जबकि ग्राहक ने समय रहते शिकायत कर दी थी, लेकिन बैंक ने न तो तुरंत लेनदेन रोका और न ही पैसे ट्रांसफर हो रहे खातों को फ्रीज करने का प्रयास किया। बैंक से पत्राचार करने के बाद भी पैसे वापस नहीं मिलने पर उपभोक्ता आयोग में मामला प्रस्तुत किया गया। आयोग ने बैंक को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
बैंक ने कहा-एटीएम या ओटीपी से लेनदेन
बैंक ने आयोग के सामने दलील दी कि लेनदेन ऑनलाइन और 3-डी सिक्योर पिन अथिटिकेशन से हुआ, जिसमें ग्रक्षक का एटीएम पिन या ओटीपी इस्तेमाल किया गया। बैंक का कहना था कि यदि यह जानकारी तीसरे पक्ष को मिली तो इसमें उसकी कोई गलती नहीं है और इसके लिए ग्राहक खुद जिम्मेदार है। बैंक प्रबंधन ने आरबीआई के सर्कुलर का हवाला देते हुए कहा कि ग्राहक की लापरवाही से जानकारी साइस होती है, तो बैंक जिम्मेदार नहीं होगा।
तुरंत शिकायत करने पर बैंक जिम्मेदार
आयोग ने कहा कि आरबीआई के सर्कुलर के अनुसार ग्राहक ने तुरंत जानकारी दी और लेनदेन तीसरे पक्ष द्वारा किया गया है, तो ग्राहक जिम्मेदार नहीं होगा, ऐसी स्थिति में जिम्मेदारी बैंक की होगी। इस आधार पर आयोग ने ग्राहक को ब्याज के साथ 20 हजार रुपए लौटाने के आदेश दिए हैं। मानसिक क्षति के लिए पांच हजार और मुकदमा सखर्च 5,000 रुपए अलग से देने के निर्देश दिए गए हैं। भुगतान आदेश की कॉपी मिलने के 45 दिनों के भीतर करना होगा।
आयोग ने कहा- ग्राहक ने समय पर की शिकायत
आयोग ने तथ्यों और दस्तावेजों की पड़ताल में पाया कि ग्राहक ने समय पर शिकायत दर्ज कराई थी और बैंक के पास पर्याप्त समय थाकि यह राशि को रोक सके या लाभार्थी खाते को ब्लॉक करवा सके। लेकिन बैंक ने ऐसा करने कोई ठोस प्रयास नहीं किया।
आयोग ने कहा कि आरबीआई के 2017 और 2021 के दिशा निर्देशों के अनुसार अनधिकृत लेनदेन की जानकारी मिलते हो बैंक तुरंत पेमेंट वॉलेट या प्राप्तकर्ता बैंक से संपर्क कर रकम ट्रांसफर हो रहे खाते को फ्रीज करना अनिवार्य है। बैंक ऐसा करने में नाकाम रहा और सिर्फ ग्राहक को दोषी ठहराया।
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