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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने रेलवे ठेकेदार व उद्योगपति सुशील झाझरिया उर्फ सुशील कुमार अग्रवाल की उस रिट याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने सीबीआई द्वारा दर्ज एफआईआर को निरस्त करने की मांग की थी। फिलहाल याचिकाकर्ता न्यायिक हिरासत में हैं। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया।
कब दर्ज हुई थी एफआईआर
ज्ञात हो कि, सीबीआई ने 25 अप्रैल 2025 को एफआईआर दर्ज की थी। मामला भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 7, 8, 9, 10 और 12 तथा भारतीय न्याय संहिता की धारा 61(2) के तहत दर्ज हुआ था। गिरफ्तारी के बाद से ठेकेदार व उद्योगपति झाझरिया न्यायिक हिरासत में हैं।
याचिका में क्या थी मांग
याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर करते हुए सीबीआई की कार्रवाई को अवैध बताया और कई अहम बिंदुओं पर सवाल उठाए।
याचिका में कहा गया था कि—टेलीफोन कॉल इंटरसेप्शन में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों और कानूनी प्रावधानों का पालन नहीं हुआ।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत पूर्व स्वीकृति अनिवार्य थी, जो ली ही नहीं गई।
सीबीआई ने अपनी ही क्राइम मैनुअल 2020 का उल्लंघन किया।
एफआईआर में रिश्वत मांगने जैसे आवश्यक तथ्यों का उल्लेख नहीं है, जिससे अपराध का मेन्स-रिया (इरादा) साबित ही नहीं होता।
गिरफ्तारी के समय आरोप स्पष्ट नहीं बताए गए, जो अनुच्छेद 22(1) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 50 का उल्लंघन है।
केस डायरी और जरूरी दस्तावेज जानबूझकर छिपाए गए, जिससे निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार प्रभावित हुआ।
सीबीआई का पक्ष
सीबीआई की ओर से अधिवक्ता बी. गोपा कुमार ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि विस्तृत जांच के बाद एफआईआर दर्ज की गई और अब चार्जशीट भी दाखिल कर दी गई है। मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा संज्ञान लिया जाना शेष है।
हाई कोर्ट का फैसला
सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि, जब चार्जशीट दाखिल हो चुकी है और ट्रायल कोर्ट संज्ञान लेने की प्रक्रिया में है, तो सीधे हाई कोर्ट से एफआईआर रद्द करने का आदेश नहीं दिया जा सकता।
याचिकाकर्ता को अब यह स्वतंत्रता है कि वे चार्जशीट और संज्ञान आदेश के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया के तहत उचित मंच पर चुनौती दें। इस आधार पर कोर्ट ने याचिका को वापस लेने की अनुमति देते हुए खारिज कर दिया।
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