वन टाइम प्रमोशन स्कीम की खुली पोल, 10 साल तैनाती की शर्त पर लिया प्रमोशन, 6 साल में ही लौटे

नक्सल विरोधी अभियान को मजबूत करने के लिए पुलिस में लागू की गई वन टाइम प्रमोशन स्कीम छलावा साबित हो रही है। दरअसल नक्सल क्षेत्र पोस्टिंग 10 साल के लिए की गई थी, लेकिन जवानों ने 6 साल के अंदर ही मैदानी इलाकों में पोस्टिंग करवा ली।

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Dolly patil
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15 अगस्त 2012 को नक्सल प्रभावित जिलों के चिह्नित थानों में चयनित प्लाटून कमांडर समेत 243 उपनिरीक्षकों और प्लाटून कमांडरों की पोस्टिंग की गई थी। जानकारी के मुताबिक 2010 में पुलिस विभाग ने इसका विज्ञापन जारी किया था।

जिसके बाद 2011 में चयनित जवानों को ट्रेनिंग दी गई। इसके बाद पोस्टिंग के समय ये तर्क दिया गया कि नक्सल क्षेत्र में खासकर बस्तर संभाग और राजनांदगांव एरिया में उपनिरीक्षक, छसबल की इकाई, कंपनियों के लिए स्वीकृत प्लाटून कमांडर के पद रिक्त हैं। 

इसी के साथ बताया गया कि जो मौजूद हैं वे अधिक उम्र के हैं। इस वजह से वे अभियान में प्रभावी भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं। इसलिए वन टाइम प्रमोशन स्कीम को जरूरी माना गया। 

मैदानी इलाकों में पोस्टिंग

इसके बाद अफसरों की मेहरबानी से आधे से ज्यादा लाभार्थियों ने समय से पहले मैदानी इलाकों में पोस्टिंग करवा ली। इसी तरह सीधी भर्ती के तहत उप निरीक्षक, टीआई और सीएसपी स्तर के अफसरों के लिए भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र में तैनाती के नियम थे। 

इस स्कीम के मुताबिक 2022 तक पुलिसकर्मियों को नक्सल क्षेत्र में रहना था पर रिपोर्ट्स की मानें तो  100 से ज्यादा ऐसे पुलिसकर्मी मिले जो जॉइन करने के कुछ वर्षों बाद ही पीएचक्यू, जिला मुख्यालय की शाखाओं में, नक्सल सेल और मैदानी इलाकों के कोतवाली क्षेत्रों में लौट आए। 

क्या है वन टाइम प्रमोशन स्कीम

दरअसल इस योजना का लाभ केवल वे ही पुलिसकर्मी उठा सकते हैं जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सक्रिय रूप से ड्यूटी पर तैनात हैं। 

इस योजना के तहत, पात्र पुलिसकर्मियों को एक रैंक की पदोन्नति दी जाएगी। उदाहरण के लिए एक कांस्टेबल को हेड कांस्टेबल, एक हेड कांस्टेबल को असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर (ASI) और इसी तरह प्रमोशन दिया जा सकता है।

जानकारी के मुताबिक इस योजना का उद्देश्य नक्सल विरोधी अभियानों में शामिल पुलिसकर्मियों का मनोबल बढ़ाना और उन्हें बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित करना है।  हालांकि इसका लक्ष्य अनुभवी और कुशल कर्मियों को नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात करना भी है।   

कौन से थाने व चौकी हुए थे चिन्हित

  • जिला दंतेवाड़ा बारसूर,कटेकल्याण,कुआकोण्डा,गादीरास,जगरगुण्डा,चिन्तागुफा,कोन्टा,दोरनापाल,गोलापल्ली,किस्टाराम,भेजी,मरईगुडा,एर्रावोर,चौ चिन्तलनार,अरनपुर,पोलमपल्ली,सिलगेर,टेटरई
  • जिला कांकेर
  • ​​​​​​​​​​​मावेड़ा,दुर्गकोंदल,बडगांव,कोडेकुसी,अंतागढ़,ताडोकी,रावघाट,कोयलीवेड़ा,बांदे,परतापुर,सिकसोड(अरगांव),सितरम (छोटे बेतिया)
  • जिला ​​​​​​​बीजापुर
  • गंगालूर, मोदकपाल, तोयनार, भैरमगढ़, नेतसनार, मिरतूर, जांगला, कुटरु, देदरे, फरसेगढ़, आदापल्ली, उसूर, वासागुड़ा, भोपालपटनम, मद्देड़, भद्राकाली, तारलागुड़ा, केरपे, सेण्ड्रा, पिल्लूर
  • ​​​​​​​नारायणपुर जिला
  • रायणपुर,झाकाबेड़ा,सोनपुर,झीरमघाटी,बेनूर,ओरछा,धनोरा,छोटेडोंगर,घौडाई,फरसगांव,आदेर जिला राजनांदगांव: औंधी,बकरकट्टा,मदनवाड़ा,सीतागांव,गातापार,चिल्हाटी,तरेगांव

राज्य पुलिस सेवा संवर्ग

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक  निरीक्षक से उप पुलिस अधीक्षक के पद पर पदोन्नत अधिकारी को प्रथम पदस्थापना नक्सली जिला पुलिस बल में ही दी जाएगी। यहां उसे कम से कम 3 वर्ष तक अथवा 54 वर्ष होने तक जो भी पहले हो अनिवार्यत पदस्थ रखा जाएगा।

नक्सल क्षेत्र में काम नहीं तो प्रमोशन नहीं 

जानकारी के मुताबिक नियम में स्पष्ट था कि डीजीपी की बनाई चयन समिति भर्ती प्रक्रिया को पूरा करेगी। इसके तहत उप निरीक्षक पद के लिए जिला बल के आरक्षक, प्रधान आरक्षक, सहायक उपनिरीक्षक और प्लाटून कमांडर पद के लिए छसबल के केवल आरक्षक, प्रधान आरक्षक के साथ सहायक प्लाटून कमांडर ही स्कीम में भाग ले सकेंगे।

 इसके मुताबिक कम से कम 10 साल नक्सल क्षेत्र में काम करना अनिवार्य होगा। इसी के साथ शारीरिक अक्षमता और नक्सल क्षेत्र में काम करने की इच्छा नहीं होने पर प्रमोशन वापस ले लिया जाएगा।

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