Raigarh Missing Gulapi Gupta Mystery Case : छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां एक पत्नी ने पति की जलती चिता में कूदकर अपनी जान दे दी। महिला की पहचान गुलापी गुप्ता (Gulapi Gupta) के रूप में हुई है। इस मामले में पुलिस ने महिला की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू की है। फिलहाल गांव वालों के साथ महिला के परिजन ने मान लिया है कि गुलापी अब इस दुनिया में नहीं है। आइए जानते हैं गुलापी की गायब होने की कहानी ...
यह है मामला
दरअसल, रायगढ़ जिले के चिटकाकानी गांव की गुलापी गुप्ता के पति जयदेव गुप्ता की मौत 14 जिलाई 2024 को हुई थी। शाम को उनके अंतिम सस्कार के बाद गुलापी समेत सभी अपने- अपने घर लौट गए थे। देर रात करीब 11 बजे गुलापी रहस्यमयी तरीके से गायब हो गई। गुलापी के पुत्र सुशील गुप्ता ने गांव वालों के साथ मिलकर अपनी माँ को हर जगह ढूंढा लेकिन वो कहीं नहीं मिली। इसके बाद वो श्मशान पहुंचे। बेटे ने दवा किया कि उसने अपनी की साड़ी, चप्पल और उनका पैर पिता की चिता में जलते हुए देखा था।
चिता में देखे माँ के जलते पैर
गुलापी गुप्ता के बेटे सुशील गुप्ता और गांववालों का मानना है कि गुलापी अपने पति की चिता पर जिंदा जल गईं। जब सुशील श्मशान पहुंचे, तो उन्होंने अपनी मां के जलते हुए पैर को देखा, जिससे उनकी आशंका और बढ़ गई। पुलिस ने इस मामले को गुमशुदगी का केस मानकर जांच शुरू की है और चिता की राख और अन्य वस्त्रों के नमूने फॉरेंसिक जांच के लिए भेजे हैं।
पुलिस सुलझा रही गुत्थी
इस मामले में पुलिस ने गुलापी की गम होने की रिपोर्ट दर्ज की है। रायगढ़ एसपी दिव्यांग पटेल का कहना है कि मामले की गहन जांच की जा रही है और हर एंगल से जांच की जा रही है। फॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है ताकि मामले की सच्चाई सामने आ सके।
क्या है सती प्रथा
सती प्रथा एक प्राचीन भारतीय सामाजिक कुरीति थी जिसमें किसी महिला (विधवा) को अपने मृत पति की चिता पर स्वयं को जीवित जलाने के लिए फोर्स किया जाता था। यह प्रथा समाज में विधवाओं की स्थिति को लेकर बनी मान्यताओं और अंधविश्वासों का परिणाम थी।
सती प्रथा के प्रमुख पहलू:
स्वेच्छा और दबाव: सती प्रथा में अधिकांश महिलाएं सामाजिक दबाव और पारिवारिक प्रताड़ना के कारण सती हो जाती थीं। हालांकि, कुछ महिलाएं स्वेच्छा से भी सती होती थीं, यह बहुत दुर्लभ था।
धार्मिक और सामाजिक मान्यताएं: सती को धार्मिक और सामाजिक कर्तव्य के रूप में देखा जाता था। माना जाता था कि सती होने से महिला और उसका परिवार पुण्य अर्जित करेगा और अगले जन्म में बेहतर जीवन मिलेगा।
संस्कृति और परंपराएं : इस प्रथा का पालन कई समुदायों में धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के तहत किया जाता था।
सती प्रथा का अंत :
1829 में ब्रिटिश गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक ने "बंगाल सती विनियमन" के तहत सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया। राजा राम मोहन राय जैसे समाज सुधारकों ने सती प्रथा के खिलाफ जनमत तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सती प्रथा का कानूनी प्रतिबंध :
भारत में सती प्रथा को समाप्त करने और इस प्रथा में शामिल लोगों को दंडित करने के लिए कड़े कानून बनाए गए हैं। सती प्रथा के खिलाफ सबसे प्रमुख कानून "राजस्थान सती निषेध अधिनियम, 1987" और "सती (निषेध) अधिनियम, 1987" हैं।
सती (निषेध) अधिनियम, 1987: इस अधिनियम के तहत सती को प्रोत्साहित करना, उसे अनुष्ठान के रूप में आयोजित करना, या किसी भी प्रकार से इस कृत्य में शामिल होना दंडनीय अपराध है।
सजा
मृत्युदंड या आजीवन कारावास: यदि कोई व्यक्ति किसी महिला को सती बनने के लिए उकसाता है, बाध्य करता है, या किसी भी प्रकार से सहायता करता है, तो उसे मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
अन्य दंड: सती स्थल की पूजा करना, महिमा मंडन करना, या किसी प्रकार से इस घटना को प्रोत्साहित करना भी दंडनीय है। इसमें शामिल लोगों को 1 साल से लेकर 7 साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है।
राजस्थान सती निषेध अधिनियम, 1987:
राजस्थान सरकार ने सती प्रथा को रोकने के लिए यह अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम में भी सती प्रथा को प्रोत्साहित करने, अनुष्ठान आयोजित करने, और इस प्रकार की घटनाओं में शामिल लोगों के लिए कठोर सजा का प्रावधान है।
अन्य प्रावधान:
- सती स्थल: सती स्थल का निर्माण, पूजा, या महिमा मंडन करना भी अपराध माना जाता है।
- प्रचार: सती प्रथा के पक्ष में प्रचार करना या किसी भी प्रकार से इसे बढ़ावा देना दंडनीय है।
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