रायपुर का ट्रैफिक संभालने चाहिए 2400 जवान फील्ड पर तैनात सिर्फ 400, 8 साल में गाड़ियों की भीड़ लेकिन नहीं बढ़ा एक सिपाही

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर राजनीतिक,प्रशासनिक और व्यापारिक केंद्र है। राजधानी होने के बाद भी रायपुर का ट्रैफिक पूरी तरह पंचर हो चुका है। रायपुर का ट्रैफिक संभालने के लिए स्टैंडर्ड के अनुसार 2388 जवान चाहिए लेकिन फील्ड पर तैनात हैं सिर्फ 400 जवान।

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Arun Tiwari
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Raipur. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर राजनीतिक,प्रशासनिक और व्यापारिक केंद्र है। राजधानी होने के बाद भी रायपुर का ट्रैफिक पूरी तरह पंचर हो चुका है। रायपुर का ट्रैफिक संभालने के लिए स्टैंडर्ड के अनुसार 2388 जवान चाहिए लेकिन फील्ड पर तैनात हैं सिर्फ 400 जवान।

 इस हिसाब से एक जवान पर 10 हजार वाहनों की जिम्मेदारी आती है। पिछले 8 सालों में गाड़ियों की बेतहाशा भीड़ बढ़ गई है लेकिन एक भी सिपाही नहीं बढ़ा है। इतने समय में तीन सरकारें बदल गईं लेकिन रायपुर के पंचर हुए ट्रैफिक पर किसी का ध्यान नहीं गया। ट्रैफिक संभालने वाले जवान खुद सिस्टम के जाम में फंस गए हैं। 

रायपुर का ट्रैफिक पंचर : 

राजधानी की सड़कों पर रोज लगने वाला जाम अब महज ट्रैफिक की समस्या नहीं, बल्कि सिस्टम की विफलता का आइना बन चुका है। हालात यह हैं कि ट्रैफिक नियंत्रण की जिम्मेदारी जिन कंधों पर है, वही कंधे बीते आठ सालों से नजरअंदाज किए जा रहे हैं।

मानक के मुताबिक रायपुर में 2388 ट्रैफिक जवान होने चाहिए, लेकिन हकीकत में सड़कों पर महज करीब 400 जवान ही ड्यूटी निभा रहे हैं। यानी 80 प्रतिशत से ज्यादा स्टाफ की कमी है। शहर की आबादी 20 लाख पार कर चुकी है।

सड़कों पर 8 लाख से ज्यादा कारें और 35 लाख से अधिक दोपहिया वाहन दौड़ रहे हैं। दबाव इतना बढ़ गया है कि एक्सप्रेस-वे भी जाम से अछूते नहीं रहे। इसके बावजूद ट्रैफिक पुलिस का बल बढ़ाने की फाइलें सालों से दफ्तरों में धूल खा रही हैं।

एक जवान के हिस्से में 10 हजार वाहन : 

शहर की आबादी और वाहनों की संख्या देखें तो एक जवान के हिस्से में 10 हजार से ज्यादा वाहन की जिम्मेदारी आती है। पिछले 8 साल से पुलिस का स्टाफ नहीं बढ़ा जबकि हर साल 1 लाख नई गाड़ियां सड़क पर उतर आती हैं। हर दो-तीन महीने में उच्च स्तरीय बैठकें होती हैं, निर्देश भी जारी किए जाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर बल बढ़ाने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

बीते 8 वर्षों से ट्रैफिक पुलिस का स्टाफ नहीं बढ़ाया गया, उलटे करीब 400 जवान कम हो चुके हैं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि अगर पर्याप्त बल उपलब्ध हो, तो अलग से ईडीपी मूवमेंट विंग बनाकर गलत पार्किंग, नियम उल्लंघन और अव्यवस्थित यातायात पर सख्ती की जा सकती है। मगर स्टाफ की कमी के चलते न निगरानी हो पा रही है और न ही प्रभावी कार्रवाई।

बढ़ते वाहन,घटता स्टाफ : 

राजधानी में वाहन बढ़ते जा रहे हैं और स्टॉफ कम होता जा रहा है। साल 2016 में ट्रैफिक पुलिस में 700 अधिकारी और जवान थे। 2025 तक आते आते 400 जवान ही बचे हैं बाकी रिटायर हो गए। ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के मानकों के अनुसार रायपुर जैसे शहर में कम से कम 2000 ट्रैफिक जवान होने चाहिए, जबकि केंद्रीय मानक 2388 का है।

साल 2017 से बल नहीं दिए जाने और राजधानी का विस्तार होने से ट्रैफिक पुलिस पर वर्कलोड बढ़ता जा रहा है।ट्रैफिक जवान 10 से 12 घंटे तक ड्यूटी करते हैं, इसके बाद भी उन पर अव्यवस्था के आरोप लगाए जाते हैं।

जबकि सच्चाई यह है कि सीमित संसाधनों और कम बल के बावजूद जवान लगातार सड़कों पर डटे रहते हैं। जवानों के कंधों पर ट्रैफिक संभालने के साथ साथ वीआईपी मूवमेंट में भी ट्रैफिक को व्यवस्थित करना होता है।    

बढ़ रहे सड़क हादसे : 

इस लापरवाही का नतीजा सड़क हादसों में साफ नजर आ रहा है। साल 2025 में नवंबर तक जिले में 1896 सड़क दुर्घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 573 लोगों की जान गई और 1291 लोग घायल हुए। आंकड़े बताते हैं कि हादसे और मौतें दोनों बढ़ रही हैं।

साल 2024 में 1894 हादसे हुए थे जिनमें 524 लोगों की जान गई थी और 1385 लोग घायल हुए थे। बढ़ते सड़क हादसे चिंताजनक हैं। सरकार कहती है कि ट्रैफिक व्यवस्था को बेहतर करने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इस कमी को दूर करने के लिए भी गंभीरता से प्रयास किए जा रहे हैं।

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