स्टील स्लैग एग्रीगेट्स से सड़क की लागत 40% कम... बस्तर में हो रही तैयारी

बस्तर में टिकाऊ और कम लागत वाली सड़कों के निर्माण के लिए अब स्टील स्लैग तकनीक का उपयोग किया जाएगा। अब आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया द्वारा प्रोसेस्ड स्टील स्लैग एग्रीगेट्स का उपयोग किया जा रहा है।

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Kanak Durga Jha
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Road cost reduced by 40 due to steel slag aggregates
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बस्तर में निवद नेल्ला नार योजना के तात अंदरूनी इलाकों में सड़कों का जाल बिवल्या जा रहा है। सड़क निर्माण में पारंपरिक तरीके से निर्माण सामग्रियों के बजाय अब आर्सेलर मिलल निप्पॉन स्टील इंडिया के प्रोसेस्ड स्टील स्लैग एग्रीगेट्स का उपयोग करने की योजना है। इससे सड़के ज्यादा टिकाऊ होगी, जबकि निमांग में लागत 30 से 40 फीसदी तक कम हो जाएगी। 

मजबूत सड़कों का निर्माण करेगी कंपनी

आर्सेलर मिसल निप्पॉन स्टील इंडिया ने काउंसिल ऑफ साइटिफिक एंड इंडस्ट्रिक्त रिसर्च (सीएसआईआर) और सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्‌यूट (साराराई) की साझेदारी से प्रोसेस्ड स्टील स्लैग मेट्स के उपयोग की तकनिकी को लागू करने पर जोर दे रही है।

ऐसे में ये कंपनी देश की ऐसी पहली कंपनी बन गई है जो सीएमआईआर स्वैआहआरआई से स्टील स्लैग वैल्यूनेशन टेक्नोलॉजी का लाइसेंस ले चुकी है। बताया जाता है कि इस तकनीक से बस्तर में सड़कों का निर्माण किया जाए तो कम लागत में ज्यादा मजबूत सड़कों का निर्माण किया जा सकेगा। 

सीएसआईआर-मआरआई से लाइसेंस मिलने के बाद अब कंपनी को स्टील स्लैग सांगेिट्स का उत्पादन बनने की अनुमति मिल चुकी है। कंपनी ने पहली ऑल स्टील स्लैग रोड का निर्माण भी गुबरात के हजीरा स्थित एक निजी पोर्ट में किया है।

वहीं सूरत के एनएच 53 डायमंड बुलं रोड में भी आर्सेलर मित्तल कंपनी ने इसका उपयोग किया है। वर्तमान में कंपनी का सालाना उत्क्दन 1.70 मिलियन टन है। इसे सीएसआईआर सीआरई की तकनीक के अनुस्वार प्रोसेसर किया जाया है।

अब भी पारंपरिक निर्माण सामग्रियों का उपयोग

बस्तर में अब तक पारंपरिक तरीके से डामर, बनये, गि‌ट्टी-मुरूम से सड़क का निर्माग किया नाता रहा है। आर्सेलर मित्तल की इस नई तकनीक के बाद अब पारंपरिक निमीग सामरियों के मनाय स्टील स्लैग खोगेट्स का उपयोग किया जाएगा। इसे लेकर उत्पादन भी शुरू कर दिया गया है। कंपनी अपने गुजरात के हन्दीरा स्थित प्रमुख संयंत्र में विशेष तकनीक से स्टील स्लैग एग्रीगेट्स का वैज्ञानिक रूप से प्रसंस्करण करेगी।

  • नई तकनीक का उपयोग: बस्तर में स्टील स्लैग एग्रीगेट्स से टिकाऊ सड़कें बनाई जाएंगी।

  • कम लागत में निर्माण: स्टील स्लैग तकनीक से लागत में 30-40% तक की कमी संभव।

  • राष्ट्रीय स्तर पर परीक्षण: गुजरात के हजीरा और सूरत में इस तकनीक से सड़कें बन चुकी हैं।

  • सरकारी मान्यता प्राप्त: CSIR-CRRI से वैल्यूएशन टेक्नोलॉजी का लाइसेंस प्राप्त।

  • 2030 तक बड़ा लक्ष्य: भारत का स्टील उत्पादन लक्ष्य 300 मिलियन टन और स्लैग 60 मिलियन टन तक।

2030-31 तक स्टील उत्पादन 300 मिलियन टन

भारत के स्टील उत्पादकों द्वारा वित्त वर्ष 2030-31 तक स्टील उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 300 मिलियन टन तक पहुंचाने वा लक्ष्य रखा गया है। इसके तहत स्टील स्लैग उत्पादन भी 60 मिलियन टन तक पहुंचने कर अनुमान है। स्टील मंत्रालय ने इस तकनीक को अपनाने विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय व सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के साथ इस औद्योगिक बायकोडष्ट कर व्यापक उपयोग करने की रणनीति पर काम कर रहा है।

FAQ

बस्तर में सड़क निर्माण में कौन सी नई तकनीक अपनाई जा रही है?
प्रोसेस्ड स्टील स्लैग एग्रीगेट्स तकनीक, जिससे सड़कें टिकाऊ और सस्ती होंगी।
इस तकनीक से निर्माण की लागत में कितनी कमी आने की संभावना है?
लगभग 30 से 40 प्रतिशत तक लागत में कमी आ सकती है।
इस तकनीक को किन संस्थानों से मान्यता प्राप्त है?
CSIR और Central Road Research Institute (CRRI) से यह तकनीक मान्यता प्राप्त है।
स्टील स्लैग रोड का प्रयोग पहले कहां किया जा चुका है?
गुजरात के हजीरा पोर्ट और सूरत के NH-53 डायमंड बुलेवार्ड में।
भारत का स्टील उत्पादन लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक क्या है?
भारत का लक्ष्य 300 मिलियन टन स्टील और 60 मिलियन टन स्टील स्लैग उत्पादन का है।

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