/sootr/media/media_files/2025/08/14/chhattisgarh-education-budget-2025-08-14-16-40-25.jpg)
Photograph: (thesootr)
RAIPUR. देश एक बार फिर आजादी की वर्षगांठ मना रहा है। इसी के साथ छत्तीसगढ़ 25 साल का हो गया है। राज्य अपना रजत जयंती वर्ष सेलेब्रेट कर रहा है, लेकिन छत्तीसगढ़ में शिक्षा व्यवस्था आज भी ऐसी हालत में है कि हर कदम पर बच्चों की जान खतरे में है।
साल 2015-16 से लेकर 2025-26 तक यानी दस सालों में शिक्षा पर 2 लाख 4 हजार 988 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। इस बजट में स्कूल शिक्षा से जुड़े तमाम खर्च, मसलन शिक्षकों का वेतन, कॉपी, किताबें, ड्रेस आदि सब शामिल हैं।
इसी बजट में से स्कूलों के निर्माण और मरम्मत पर 9 हजार 953 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, लेकिन स्थिति बदतर होती जा रही है। यह आंकड़ा सिर्फ खर्च का है, लेकिन असली हकीकत यह है कि स्कूलों की हालत बच्चों के लिए घातक बनी हुई है।
राजस्थान के झालावाड़ में हाल ही में स्कूल की छत गिरने से हुई बच्चों की मौत ने देश को झकझोर दिया, लेकिन छत्तीसगढ़ में यही हाल बरसों से जारी है। कोई सुध लेने वाला नहीं है।
5 हजार 995 स्कूल जर्जर
छत्तीसगढ़ में जर्जर स्कूल के आंकड़े किसी को भी सिहराने के लिए काफी हैं। कुल 55 हजार 947 स्कूलों में से 5 हजार 995 स्कूल जर्जर हैं। मतलब, ये बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हैं। कभी भी गिर सकते हैं।
ऐसे ही 10 हजार 719 स्कूलों में बाउंड्रीवाल तक नहीं हैं, जिससे बच्चे हर खतरे के लिए खुले हैं। 519 स्कूलों के भवन ही नहीं हैं, यानी बच्चे खुले में या फिर झोपड़ियों में पढ़ने को मजबूर हैं। 2 हजार 240 स्कूलों में बिजली नहीं है, जिससे न पढ़ाई हो रही है, न सुरक्षा।
अब सोचिए सरकार स्कूलों में कम्प्यूटर भेज देती है, लेकिन बिना बिजली ये चलें कैसे? एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन यहां तो स्कूल की बिल्डिंग्स तक नहीं हैं।
कागजों में बोल रहा विकास
इन आंकड़ों को देख कर साफ है कि बच्चों की जान की कोई कीमत नहीं है। अफसरशाही की सुस्ती और भ्रष्टाचार ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। इतने अरबों रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन बच्चों के लिए सुरक्षित, संरक्षित और योग्य स्कूल गिने चुने ही हैं।
स्कूलों के निर्माण और मरम्मत पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद जर्जर भवन, टूटी-फूटी छतें, बिना बाउंड्रीवाल और बिजली की अनुपस्थिति बताती है कि यह पैसा कहीं और चला गया है, कागजों में चमकता है, अफसरों की तिजोरी में जमा है या बस लालफीताशाही के कारण काम नहीं हुआ।
छत्तीसगढ़ में शिक्षा का बजट...
(बजट और खर्च की राशि करोड़ रुपए में) |
ये आंकड़े कहते हैं कि स्कूलों के कंस्ट्रक्शन पर 10 वर्षों में 9 हजार 953 से ज्यादा करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, इसमें भी 2019-20, 2021-22, 2022-23 और 2025-26 के आंकड़े शामिल नहीं हैं।
क्या बेजा भ्रष्टाचार हुआ है?
इस पूरे दशक में शिक्षा विभाग ने सिर्फ आंकड़ों में सुधार दिखाने का प्रयास किया, लेकिन जमीन पर बच्चों के लिए स्थिति भयावह है। यह सीधे तौर पर बच्चों की जान पर खेलने के बराबर है। जर्जर स्कूल और बाउंड्रीवाल की कमी, खुले में पढ़ाई करने वाले बच्चे, बिजली और मूलभूत सुविधाओं का अभाव यह बताता है कि राज्य सरकार की प्राथमिकता में बच्चों की सुरक्षा शामिल नहीं है। यह सिर्फ दुर्भाग्य नहीं, यह गंभीर अपराध और लापरवाही का परिणाम है। 25 सालों में छत्तीसगढ़ ने शिक्षा पर अरबों रुपए खर्च किए, लेकिन लगता है कि भ्रष्टाचार ने इस रकम को बेअसर कर दिया।
15 साल सीएम रहे रमन सिंह के गृह क्षेत्र के स्कूल खतरनाक
रमन सिंह के गृह क्षेत्र राजनांदगांव के स्कूल अपनी दास्तां खुद बयां करते हैं। 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे डॉ.रमन सिंह के क्षेत्र के स्कूल इतने जर्जर हैं कि बच्चों की जान खतरे में है और अफसर धीरे-धीरे कार्रवाई करने में व्यस्त हैं। 'द सूत्र' ने जब राजनांदगांव के एक स्कूल का दौरा किया तो नजारा दिल दहला देने वाला था।
सीन: शासकीय प्राथमिक शाला, सदर बाजार, राजनांदगांव
बाहर से यह स्कूल गुलाबी रंग से पुता है, लेकिन अंदर जाने पर तस्वीर पूरी तरह बदल जाती है। छत का प्लास्टर गिर चुका है, दीवारों में दरारें हैं, टपकती छत और सीलन की बदबू से वातावरण भारी और खतरनाक है। बच्चों की हंसी और पढ़ाई की आवाज इन जर्जर दीवारों के बीच गूंज रही है, लेकिन यह सिर्फ मोहजाल है, असली खतरा हर पल मंडरा रहा है।
राजनांदगांव जिले के कई सरकारी स्कूलों की हालत इतनी खराब है कि भवन अब बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं रहे। स्कूल भवन जर्जर हो चुके हैं, छतों से प्लास्टर गिर रहा है, दीवारें कमजोर और दरक चुकी हैं। हजारों बच्चे ऐसे खतरनाक भवनों में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। जिम्मेदार विभागों के पास इन भवनों को गिराने के प्रस्ताव तो हैं, लेकिन कार्रवाई कछुए की चाल से हो रही है। विभाग सिर्फ कागजों में काम दिखा रहा है, बच्चों की सुरक्षा के बारे में सोचना किसे चाहिए, यह किसी ने तय नहीं किया।
यहां स्थित प्राथमिक शालाएं इस बात की गवाही हैं कि सरकारी लापरवाही बच्चों के जीवन के लिए खतरा बन चुकी है। कई स्कूलों के कमरे अब उपयोग लायक भी नहीं हैं। कुछ स्कूलों में तो पेड़ों की जड़ें भवन में घुस गई हैं। दरवाजे और खिड़कियां टूट चुकी हैं, फफूंदी से दीवारें सड़ चुकी हैं। ऐसे वातावरण में पढ़ाई करना बच्चों के लिए जीवन और मौत के बीच की लड़ाई है।
क्या दुर्घटना का इंतजार कर रहे जिम्मेदार?
स्थानीय लोग कहते हैं कि शिक्षा विभाग को तुरंत इन जर्जर भवनों को गिराकर नए भवनों का निर्माण करना चाहिए। बच्चों का भविष्य खतरे में है और कोई बड़ी दुर्घटना होने से पहले कदम उठाना जरूरी है। लेकिन अफसरशाही की लालफीताशाही ने इसे नजरअंदाज किया है। रमन सिंह के गृह क्षेत्र के स्कूल खुद इसकी गवाही दे रहे हैं कि सरकार बच्चों की सुरक्षा के प्रति कितनी लापरवाह है। बच्चों की पढ़ाई और जीवन अब भी जर्जर भवनों की दरारों और टपकती छतों के बीच खड़ा है और हर दिन एक नई दुर्घटना का खतरा लिए हुए है।
ये स्कूल खराब क्यों होते हैं? क्योंकि नेता-अफसरों के बच्चे तो विदेश में पढ़ते हैं...
अंत में सवाल यही उठता है कि आखिर स्कूल इतने खराब क्यों हैं? इसका कारण सीधे-सादे शब्दों में यह है कि नेता और अफसर इन स्कूलों की सुध लेने के लिए प्रेरित ही नहीं हैं, क्योंकि उनके बच्चे तो विदेश में पढ़ रहे हैं।
याद कीजिए, जब आपके क्षेत्र में कोई नेताजी या बड़ा अफसर आता है तो वहां का स्कूल या भवन चमकने लगता है। लेकिन आम बच्चों के लिए स्कूलों की दशा सुधरती नहीं। इसका कारण साफ है कि नेताओं और अफसरों के बच्चे शहरों के निजी स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं और जब बड़े होकर विदेश जाते हैं तो उनके लिए स्थानीय सरकारी स्कूलों की कोई अहमियत नहीं बचती। छत्तीसगढ़ में ऐसी लंबी फेहरिस्त है, जिनमें राज्य के नामी नेता और अफसर शामिल हैं, जिनके बच्चे विदेश में पढ़ाई कर चुके हैं या अभी कर रहे हैं।
'द सूत्र' की पड़ताल...
देखिए ये लिस्ट...
पूर्व मंत्री शिव डहरिया की बेटी लंदन में पढ़ी।
पूर्व मंत्री टीएस सिंहदेव का भतीजा हार्वर्ड यूनिवर्सिटी।
पूर्व मंत्री अमरजीत भगत के बेटे ने US से हायर एजुकेशन किया।
पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड की बेटी UAE में।
IPS दीपांशु काबरा का बेटा यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका रहा।
रिटायर्ड IPS मुकेश गुप्ता की बेटी ने US से LLM किया।
IPS आनंद छाबड़ा की बेटी लंदन में।
प्रबल प्रताप सिंह जूदेव यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका।
DFO एसडी बड़गैया के बेटे ने लंदन में कोर्स किया।
ये महज बानगी है। इस फेहरिस्त से साफ है कि राज्य के बड़े नेता और अफसर अपने बच्चों के भविष्य के लिए तो अरबों रुपए और हायर एजुकेशन का इंतजाम करते हैं, लेकिन सामान्य बच्चों के लिए सुरक्षित और योग्य स्कूल की कोई प्राथमिकता नहीं रखते। यही कारण है कि राजनांदगांव जैसे जिले में स्कूलों की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है।
छत्तीसगढ़ शिक्षा | छत्तीसगढ़ शिक्षा बजट | छत्तीसगढ़ स्कूल रिपोर्ट | छत्तीसगढ़ में स्कूलों की स्थिति
thesootr links
- मध्यप्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- छत्तीसगढ़की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- राजस्थान की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- रोचक वेब स्टोरीज देखने के लिए करें क्लिक
- जॉब्स औरएजुकेशन की खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें
- निशुल्क वैवाहिक विज्ञापन और क्लासिफाइड देखने के लिए क्लिक करें
अगर आपको ये खबर अच्छी लगी हो तो 👉 दूसरे ग्रुप्स, 🤝दोस्तों, परिवारजनों के साथ शेयर करें📢🔃🤝💬👩👦👨👩👧👧