स्पेशलिस्ट डॉक्टर बनने 20 साल लग रहे छत्तीसगढ़ में, बॉन्ड की गारंटी में कर्ज तले दबे कई मेडिकल स्टूडेंट

छत्तीसगढ़ में एक सरकारी आदेश यहां के डॉक्टरों और मेडिकल स्टूडेंट के लिए आफत बन गया है। एक सरकारी कागज का टुकड़ा डॉक्टरों को पीछे ढकेल रहा है।

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Arun tiwari
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takes 20 years become specialist doctor Chhattisgarh
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छत्तीसगढ़ में एक सरकारी आदेश यहां के डॉक्टरों और मेडिकल स्टूडेंट के लिए आफत बन गया है। एक सरकारी कागज का टुकड़ा डॉक्टरों को पीछे ढकेल रहा है। आमतौर पर दूसरे प्रदेशों में सुपर स्पेशलिटी डॉक्टर बनने में करीब 11 साल लगते हैँ लेकिन यहां के डॉक्टरों को ये डिग्री हासिल करने के लिए बीस साल लग जाते हैं।

यानी 12वीं पास लड़का जब डॉक्टरी की पढ़ाई शुरु करता है तो वो डीएम बनकर जब प्रेक्टिस करने की स्थिति में आता है तो वो दो बच्चों का पिता बन चुका होता है। इतना ही नहीं सरकार यहां के डॉक्टरों को बिना वीकऑफ के लगातार तीन साल काम कराती है और एक साल की पगार काट लेती है।

बॉन्ड की गारंटी ऐसी है कि इसको पूरा करने में कई मेडिकल स्टूडेंट कर्ज के बोझ तले दब गए हैं। प्रदेश में जब बांड की गारंटी का मसला उठा तो द सूत्र ने इसके सारे पहलुओं की पड़ताल की जिसमें ये सारे तथ्य सामने आए। आइए आपको दिखाते हैं कि क्या है ये पूरा मसला। 


बॅान्ड का बतंगड़


सबसे पहले आपको दिखाते हैं कि इस बॉन्ड का बतंगड़ क्यों बना है। क्या है वो सरकारी कागज जो डॉक्टरों पर आफत बनकर टूटा है। छत्तीसगढ़ में डॉक्टरों की बहुत कमी है। प्रदेश में डॉक्टरों की कमी पूरी करने के लिए भूपेश बघेल सरकार ने साल 2020 में एक आदेश निकाला।

इस आदेश में कहा गया कि छत्तीसगढ़ के सरकारी कॉलेजों में डॉक्टरी पढ़ने वाले छात्र एमबीबीएस पूरी करने के बाद दो साल छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचलों में काम करेंगे। यदि वे पीजी करेंगे तो उनको 25 लाख की संपत्ति या फिक्स डिपॉजिट सरकार के पास गिरवी रखना पड़ेगा।

ये तब छूटेगा जब वे एमबीबीएस के दो साल और पीजी के दो साल यानी कुल चार साल छत्तीसगढ़ में ग्रामीण इलाकों में काम करना पड़ेगा। यानी उनको 25 लाख का बॅान्ड भरना पड़ेगा। यही बॉन्ड पीजी के बाद डीएम करने वाले डॉक्टरों से भरवाया गया। उनकी रकम दोगुनी होकर 50 लाख हो गई। अब ये डॉक्टर यही बॅान्ड हटवाने के लिए सरकार के चक्कर काट रहे हैं। 


 
ये है बॉन्ड का असर


अब आपको बताते हैं कि इस बॉन्ड का आखिर डॉक्टरों और मेडिकल स्टूडेंट्स पर कितना पड़ा। आमतौर पर एमबीबीएस,पीजी और डीएम करने में दूसरे राज्यों में 11 साल लगते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ यह अवधि बढ़कर 20 साल हो जाती है। कैसे होते हैँ ये बीस साल ये भी आपको बताते हैं।  
5 साल एमबीबीएस
2 साल बांड की नौकरी
1 साल पीजी क्रेक करने की तैयारी
3 साल पीजी की पढ़ाई
2 साल बांड की नौकरी
1 साल डीएम यानी सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर बनने की परीक्षा तैयारी
3 साल डीएम की पढ़ाई
3 साल सीनियर डॉक्टर के अंडर काम का अनुभव
यानी 12वीं पास करने वाला लड़का जब सुपर स्पेशियलिटी डॉक्टर बनता है तो वो दो बच्चों का पिता बन जाता है। 

 


गारंटी में कर्जदार बन रहे डॉक्टर्स


अब इस बांड का दूसरा असर समझाते हैं। सरकार का ये बांड डॉक्टरी करने की अवधि तो बढ़ा ही रहा है साथ में युवाओं का कर्जदार भी बना रहा है। एमबीबीएस करने के बाद बैंक इनकी डिग्री के आधार पर इनको 13_14 फीसदी मोटी ब्याज दर पर कर्ज दे देते हैँ। इन डॉक्टर्स को पीजी करने के लिए 25 लाख की एफडी दिखानी पड़ती है।

इसका फायदा उठाकर बैंक इनको 25 लाख का लोन दे देते हैँ। जब ये लोग पीजी कर बॉंन्ड अवधि पूरी करने सरकारी डॉक्टर बनते हैं तो सरकार इनको स्टाइपेंड के रुप में 50-60 हजार रुपए ही देती है। इसमें इनको घर भी चलाना होता है और बैंक का ब्याज भी भरना होता है।

डॉक्टर्स ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक चार साल में करीब छह हजार डॉक्टर छत्तीसगढ़ से निकले हैं जिनमें से अधिकांश कर्जदार बन गए हैं। यहां बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी इलाकों से युवा डॉक्टर बनने आते हैं तो उनके पास 25 लाख जैसी बड़ी रकम नहीं होती। 

 

तीन साल की पढ़ाई में दो साल की सैलरी


इसमें एक और समस्या है। यह भी सरकार के स्तर की खामी है। एमबीबीएस करने के बाद जब डॉक्टर, एमडी बनने के लिए पीजी की पढ़ाई करते हैं तो सरकार इनको अध्ययन अवकाश देती है। यह अध्ययन अवकाश वेतन के साथ दिया जाता है। पीजी की पढ़ाई तीन साल की होती है।

लेकिन सरकार इनको दो साल का ही वेतन देती है यानी एक साल का वेतन इनको नहीं दिया जाता। यह भी सरकारी नियमों के चलते है। पहले पढ़ाई दो साल की होती थी इसलिए अध्ययन अवकाश में दो साल का वेतन दिया जाता था लेकिन अब तीन साल की हो गई है तो भी नियमों में इसे तीन साल का वेतन नहीं किया गया।

 
सरकारी डॉक्टरों को वीक ऑफ नहीं


छत्तीसगढ़ डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है। सीएजी की हाल ही की रिपोर्ट में ये बताया गया है कि ग्रामीण स्वास्थ्य की हालत चरमरा गई है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हों या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, कभीं पर भी डॉक्टर नहीं हैं। खासतौर पर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की बहुत कमी है।

देश का एवरेज एक हजार आबादी पर एक डॉक्टर है जबकि यहां का औसत पांच हजार की आबादी पर एक डॉक्टर है। इसी कमी को पूरी करने के लिए सरकार ने ये बॉन्ड सिस्टम निकला था। इसी कमी को दूर करने के लिए सरकारी डॉक्टरों को वीक ऑफ भी नहीं दिया जाता।

यहां पर एक तो डॉक्टरों की कमी है, दूसरी बात ये भी है जो डॉक्टर काम कर रहे हैं वे काम के बोझ के मारे हैं। ऐसे में यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट ऑर्गनाइजेशन ने अपने हक के लिए मुहिम शुरु की है। वे बॉन्ड में छूट चाहते हैं, तीन साल के अध्ययन अवकाश में तीन साल का वेतन चाहते हैं और साथ ही उन्होंने वीक ऑफ भी मांगा है। अगर सरकार ये मांग नहीं मानती है तो फिर ऑर्गनाइजेशन आगे कदम बढ़ाएगी।

 

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