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हरियाली अमावस्या 24 जुलाई गुरुवार को है। सावन कृष्ण अमावस्या तिथि को हर साल हरियाली अमावस्या मनाई जाती है। इस बार की हरियाली अमावस्या पर गुरु पुष्य योग और सिद्ध योग बन रहा है। स्थाई उन्नति के लिए यह योग शुभ माना जाता है। घर-घर गुरहा (गुड़) चीला और सोहारी जैसे पारंपरिक पकवान बनेंगे।
गेड़ी चढ़ेंगे युवा
कृषि औजारों की पूजा की जाएगी। गली-मोहल्लों में गेड़ी चढ़कर बच्चों व युवाओं की टोलियां भी निकलेंगी। वहीं, श्रावण मास की अमावस्या होने की वजह से शहर के सभी शिवालयों में दिनभर विशेष पूजन-अनुष्ठान होंगे। इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण के अलावा शहर में कई धार्मिक और सामाजिक संगठन विभिन्न स्थानों पर पौधे रोपेंगे।
इनकी पूजा करेंगे पितर
व्यंकटेश मंदिर के महंत डॉ. कौशलेंद्र प्रपत्राचार्य ने बताया कि हरियाली अमावस्या पर शिव-पार्वती पूजन के साथ ही तुलसी, आम, बरगद, नीम आदि के पौधे रोपने से देव और पितु दोनों प्रसन्न होते हैं। राशि और नक्षत्रों को ध्यान में रखकर पौधे लगाना अधिक लाभदायक होता है।
गुरु पुष्य योग में होगा पर्व- 24 जुलाई को हरियाली अमावस्या गुरु पुष्य और सिद्ध योग के संयोग में मनाई जाएगी, जिससे इसका धार्मिक महत्व और बढ़ गया है। गेड़ी, चीला और लोक परंपराएं- बच्चे व युवा गेड़ी चढ़ेंगे, और घरों में पारंपरिक व्यंजन जैसे गुरहा चीला व सोहारी बनेंगे। शिवालयों में विशेष पूजन- श्रावण अमावस्या होने के कारण सभी शिवालयों में भव्य पूजा, अभिषेक और अनुष्ठान आयोजित होंगे। पितरों के लिए तर्पण- ब्रह्म मुहूर्त या सूर्योदय के बाद तर्पण किया जाएगा। यह पितरों को प्रसन्न कर वंशजों को आशीर्वाद दिलाता है। पौधरोपण से मिलेगी पुण्यफल- बरगद, आम, नीम और तुलसी जैसे पौधों का रोपण देवता और पितर दोनों को संतुष्ट करता है। |
डॉ. प्रपन्नाचार्य ने बताया कि सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 24 जुलाई को 02:28 एएम में हो रही है। वहीं हरियाली अमावस्या का समापन 25 जुलाई को रात 12:40 एएम में होगा। लेकिन उदयातिथि के अनुसार हरियाली अमावस्या का पर्व 24 जुलाई को मनाया जाएगा।
हरियाली अमावस्या पर तर्पण का समय
पीतांबरा पाठी के पीठाधीश्वर आचार्य दिनेश महाराज ने बताया कि हरियाली अमावस्या के दिन पितरों के लिए तर्पण करने की परंपरा है। हरियाली अमावस्या का स्नान ब्रह्म मुहूर्त में कर सकते हैं या फिर सूर्योदय 05:38 बजे या उसके बाद कर सकते हैं। स्नान के बाद काले तिल, सफेद फूल और पानी से कुशा की मदद से तर्पण दें। तर्पण का जल पितरों को मिलता है, जिससे वे तृप्त होकर खुश होते हैं। अपने वंश को सुख, समृद्धि, संतान, शांति, उन्नति आदि का आशीर्वाद देते हैं।
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