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राज्य के आंगनबाड़ी केन्द्रों में घटिया सामग्री सप्लाई करने वालों को ब्लैक लिस्ट कर सरकार भले ही अपना पीठ थका रही है लेकिन, इस कार्रवाई पर अब सवाल उठने लगे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर सप्लाई के दौरान इन चीजों को बिना जांचे केंद्र तक कैसे भेजा गया?
इससे भी बड़ा सवाल यह है की गड़बड़ी मिलने के बाद भी अधिकारियों को क्यों बचाया जा रहा है? क्यों आखिर अधिकारियों की भूमिका तय नहीं की गई? 'द सूत्र' इसके पीछे की हकीकत बताने जा रहा है। बताया जा रहा है कि अगर इन अधिकारियों पर कार्रवाई होगी तो ऐसे लोग के भी नाम सामने आ जाएंगे। जिसके आने से राज्य की राजनीति पर फर्क पड़ेगा। बताया जा रहा है कि इसके लिए मंत्री बंगले से ही निर्देश प्राप्त हो रहे थे।
कमेटी की जरिए होती है ख़रीदी
घटिया सामानों की खरीदी, महिला एवं बाल विकास विभाग के ICDS शाखा से हुई थी। शाखा ने बाकायदा अलग-अलग सामानों के लिए अलग-अलग कमेटियां भी बनाई थी। जिसमें जॉइंट डायरेक्टर दिलदार सिंह मरावी, डिप्टी डायरेक्टर सुनील शर्मा, फाइनेंस के ज्वाइंट डायरेक्टर भावेश दुबे शामिल थे। इनके अलावा उद्योग विभाग, केंद्र सरकार के सिपेट कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, NIT से जुड़े विशेषज्ञ शामिल होते थे।
जिनकी अनुशंसा पर सामानों की खरीदी होनी थी। उसके बावजूद गड़बड़ी कैसे हुई।हमने जब इसकी पड़ताल की तो सामने आया कि दरअसल कमीटियां तो बस दिखावे के लिए ही थीं। टेंडर निकलने के साथ ही एजेंसियों का निर्धारण भी हो गया था। इसके लिए सारा निर्देश खुद मंत्री बंगले से ही आता था। और इसी कारण से जांच के नाम पर केवल कंपनियों को जेम पोर्टल पर ब्लैक लिस्ट ही किया गया।
सप्लाई में गड़बड़ी, अफसर बचाए गए- सवाल उठ रहा है कि घटिया सामग्री जांचे बिना केंद्रों तक कैसे पहुंच गई और अफसरों की जवाबदेही क्यों तय नहीं हुई। कमेटियां बनी थीं, पर थी दिखावटी- सामग्री की खरीददारी के लिए कमेटी बनाई गई, लेकिन टेंडर पहले से तय एजेंसियों को ही दिए गए। मंत्री बंगले से मिलते थे आदेश- खरीदी और सप्लायर चयन के निर्देश सीधे मंत्री बंगले से आने की बात सामने आई है। केवल जेम पोर्टल पर ब्लैकलिस्टिंग- छह कंपनियों को ब्लैकलिस्ट किया गया, लेकिन केवल जेम पोर्टल पर — विभागीय स्तर पर नहीं। 16 करोड़ की खरीद का अंतर- जांच शुरू होने पर 40 करोड़ की बात कही गई थी, लेकिन फाइनल रिपोर्ट में खरीद मात्र 23.44 करोड़ रुपये बताई गई। |
6 कंपनियों को किया ब्लैक लिस्ट
जांच रिपोर्ट के आधार पर 6 सप्लायरों को दोषी पाए जाने पर जेम पोर्टल से ब्लैकलिस्ट कर दिया गया है। जिनमें मेसर्स नमो इंटरप्राइजेस, आयुष मेटल, अर्बन सप्लायर्स, मनीधारी सेल्स, ओरिएंटल सेल्स और सोनचिरिया कॉर्पोरेशन शामिल हैं। दावा किया जा रहा, इनसे खराब सामग्री वापस लेकर मानकों के अनुसार नई सामग्रियों की आपूर्ति कराई गई है।
ब्लैकलिस्टेड का दिखावा
घोटाले की रिपोर्ट आने के बाद महिला बाल विकास विभाग ने जिन 6 कंपनियों को ब्लैक लिस्ट किया है उनमें से तीन छत्तीसगढ़ की ही है। जब हमने इसकी भी हकीकत जाने की कोशिश की, तो पता चला कि इन कंपनियों को केवल जेम पोर्टल पर ही ब्लैकलिस्टेड किया गया है।विभाग से नहीं। इसका मतलब है ये विभाग के उन खरीदी में हिस्सा लेते रहेंगे। जिसमें जेम के तहत सप्लाई की आवश्यकता नहीं होगी। इसके अलावा कई मामलों में यह भी देखा जाता रहा है कि सरकारें ब्लैकलिस्टेड की समय सीमा निर्धारित नहीं करती हैं और कुछ दिन बाद ही मामला शांत होने पर इनके ऊपर से बैन हटा दिया जाता है।
40 करोड़ का आंकड़ा घट गया
महिला एवं बाल विकास विभाग के अनुसार वर्ष 2024-25 में 23.44 करोड़ रुपये की सामग्री खरीदी गई, जबकि जांच घोषणा के दौरान 40 करोड़ रुपये की खरीदी की बात आई थी। यानी जांच के बाद करीब 16 करोड़ रुपये कम हो गए।
इन 6 जिलों में घटिया समान की सप्लाई
जांच के दौरान मिली घटिया सामान दरअसल संचालनालय से ही खरीदी गईं थी। अनाज कोठी के लिए 8 गेज की स्टील शीट तय थी, लेकिन सप्लाई की गई कोठियां 4 गेज की थी। आलमारी का मानक वजन 75 किलो होना था। लेकिन चहेती फर्मों ने महज 45 किलो की आलमारियां सप्लाई की थी।
रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, बस्तर, अंबिकापुर और जांजगीर सहित पूरे प्रदेश में सप्लाई किया गया था। घटिया सामग्री खरीदी मामले में विभागीय अफसरों की मिलीभगत की भी जमकर चर्चा है। जांच अधिकारियों ने शुरुआती रिपोर्ट में भी स्वीकार किया है।
आंगनबाड़ी घोटाला | महिला एवं बाल विकास विभाग भ्रष्टाचार | मंत्री बंगले से निर्देश | ब्लैकलिस्टेड कंपनियों की मिलीभगत
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