एक दिया जलाने से मनोकामना पूरी होती है मां बम्लेश्वरी मंदिर में... जानिए हजारों साल पुराना इतिहास

Maa Bamleshwari temple History : डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्थित शक्तिरूपा मां बमलेश्वरी देवी का विख्यात मंदिर आस्था का केंद्र है। इसका इतिहास हजारों साल पुराना है।

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Kanak Durga Jha
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Maa Bamleshwari temple History : डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्थित शक्तिरूपा मां बमलेश्वरी देवी का विख्यात मंदिर आस्था का केंद्र है। इसका इतिहास हजारों साल पुराना है। ऐसा माना जाता है कि मां बमलेश्वरी मंदिर में एक दिया मात्र जलाकर सच्चे दिल से मांगी हुई हर मनोकामना पूरी होती है। मंदिर के कई किस्से-कहानियां यहां के रहवासी आज भी सुनाते हैं। इतना ही नहीं हिन्दू आस्था से जुड़े इस शक्तिपीठ मंदिर में कई चमत्कार भी देखने को मिला है।

बड़ी बम्लेश्वरी के समतल पर स्थित मंदिर छोटी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है मां बमलेश्वरी के मंदिर में प्रति वर्ष नवरात्र के समय दो बार विराट मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें लाखों की संख्या में दर्शनार्थी भाग लेते हैं। चारो ओर हरे भरे वनो पहाड़ियों छोटे बड़े तालाबों एवं पश्चिम में पनियाजोब जलासय उत्तर में धारा जलस्य तथा दाक्षिर में मड़ियाँ यहां पहाड़ी पर स्थित मंदिर पर जाने के लिए सीढ़ियों के अलावा रोपवे की सुविधा भी है।

 

हजारों साल पुराना है मंदिर का इतिहास

Bamleshwari Mandir Dongargadh: पढ़िए…2200 साल पहले स्थापित मां बम्लेश्वरी  मंदिर के बारे में, जो आप नहीं जानते होंगे | Bamleshwari Mandir Dongargadh:  Read…about Maa Bamleshwari Temple ...

इतिहासकारों और मंदिर के पुजारियों के अनुसार मां बम्लेश्वरी मंदिर का इतिहास करीब 2200 साल पुराना है। कहा जाता है कि राजा कामसेन ने मां बगलामुखी को अपने तपोबल से प्रसन्न कर पहाड़ों पर  विराजमान होने की विनती की थी और मां बगलामुखी मां बम्लेश्वरी के रूप में पहाड़ों पर विराजमान हो गईं। बता दें कि मां बम्लेश्वरी उज्जैन के राजा विक्रमात्दिय की कुलदेवी हैं। 

राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में स्थित मां बम्लेश्वरी का मंदिर देश-विदेश में अपनी खास पहचान रखता है। नवरात्रि के मौके पर यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। यहां मां अम्बे करीब 1600 फीट ऊंचे पहाड़ पर विराजमान हैं। यहां दर्शन के लिए भक्तों को करीब 1000 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए रुपवे का भी निर्माण किया गया है।

छत्तीसगढ़ की कामाख्या नगरी है डोंगरगढ़

मां बम्लेश्वरी शक्तिपीठ का इतिहास 2,200 वर्ष पुराना हैं। प्राचीन समय में डोंगरगढ़ वैभवशाली कामाख्या नगरी के रूप में जाना जाता था। मां बम्लेश्वरी को मध्यप्रदेश के उज्जयनी के प्रतापी राजा विक्रमादित्य की कुल देवी भी कहा जाता है। इतिहासकारों और विद्वानों ने इस क्षेत्र को कल्चूरी काल का पाया है।

बता दें कि मंदिर की अधिष्ठात्री देवी मां बगलामुखी हैं, जिन्हें मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। जिसे मां बम्लेश्वरी के रूप में पूजा जाता है। मां बम्लेश्वरी के दरबार में पहुंचने के लिए 1100 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। रोप-वे की भी सुविधा है। पहाड़ी के नीचे छोटी बम्लेश्वरी का मंदिर है, जिन्हें बड़ी बम्लेश्वरी की छोटी बहन कहा जाता है। यहां बजरंगबली मंदिर, नाग वासुकी मंदिर, शीतला मंदिर भी है।

राजा कामसेन को माता ने दिया था दर्शन

डोंगरगढ़ शहर पहले कामावती नगरी के नाम से जाना जाता राजा कामसेन अपने तपोबल से मां बगलामुखी को प्रसन्न कर पहाड़ों में विराज मान होने की विनती की और मां बगलामुखी मां बम्लेश्वरी के स्वरूप में भक्तों के कल्याण हेतु पहाड़ों पर विराज मान हो गई ।
घना जंगल होने के कारण भक्तों को दर्शन लाभ प्राप्त ना होते देख राजा कामसेन दुखी हो पुनः मां से विनती करते हुए पहाड़ों के नीचे विराजमान होने के लिए आग्रह किया। मां बम्लेश्वरी राजा कामसेन की भक्ति और प्रजा के प्रति चिन्ता को देख प्रसन्न हो पहाड़ों से नीचे छोटी मां बम्लेश्वरी एवम् मंझली मां रणचंडी के स्वरूप में जागृत अवस्था में विराजमान हुई।
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