छत्तीसगढ़ में बड़े जतन से रायपुर से दूर नवा रायपुर बसाया जा रहा है। नवा रायपुर विकसित होने के साथ-साथ खूबसूरत हो इसका भी पूरा ध्यान रखा जा रहा है। विकास के लिए चौड़ी और चिकनी सड़कें बनाई गई हैं। तो खूबसूरती के लिए यहां पौधे लगाए जा रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा पीपल के पौधों को रोपा गया है क्योंकि नवा रायपुर को पीपल सिटी बनाना है। लोग इसे सिटी ऑफ पीपल के नाम से जाने इसके लिए यहां पर सड़कों के किनारे पीपल के पौधे लगाए गए हैं।
लेकिन इन पौधों को करॅप्शन का कीड़ा लग गया हैं। तीन करोड़ के पौधे 15 करोड़ में खरीदे गए। इतना ही नहीं भगवान के भरोसे लगाए गए ये पौधे या तो सूख गए या फिर ये गायों का निवाला बन गए। इनकी सुरक्षा के लिए ट्री गार्ड तक नहीं लगाए गए। यानी सिटी ऑफ पीपल के नाम पर कॅरप्शन का नया प्रोजेक्ट तैयार हो गया। आइए आपको दिखाते हैं उन पीपल की हालत जो पीपल सिटी में रोपे गए हैं।
ओपनिंग पीटीसी
नवा रायपुर को पीपल सिटी बनाने का बीड़ा अटल नगर विकास प्राधिकरण ने उठाया है। 15 करोड़ रुपए में नवा रायपुर के आसपास 42 हजार पौधे लगाने हैं जिसमें पीपल के पौधों की संख्या ज्यादा है। यहां के आसपास की सड़कों पर बारिश में पीपल के पौधे लगा दिए गए। कॅरप्शन की शुरुवात यहां से ही होती है।
यहां पर जिस किस्म के पीपल लगाए गए हैँ उनकी कीमत 70 से 250 रुपए तक है। यह पीपल छत्तीसगढ़ में आसानी से उपलब्ध हैं। इसके बाद भी इन पीपल को हैदराबाद से बुलावाया गया। हैदराबाद से आए इन पीपल के पौधों की कीमत 800 रुपए से 1200 रुपए तक है। यानी यहां लगाए जाने वाले कुल पौधों की कीमत करीब तीन करोड़ है जबकि इसके लिए पांच गुना ज्यादा कीमत यानी 15 करोड़ रुपए दिए गए हैं।
यह है पीपल सिटी की हालत
अब हम आपको पीपल सिटी दिखाते हैँ और पीपल की हालत भी बताते हैँ। ये हैं पीपल के पौधे जो सूख गए हैं। ये बांस की लकड़ियों के सहारे बमुश्किल खड़े हुए हैं। इनको देखकर यह समझ में नहीं आता कि लकड़ी कौन सी है और पीपल का पेड़ कौन सा है। मेन रोड के किनारे लगाए गए ये पीपल के पौधे अपनी अंतिम सांसें गिन रहे हैं।
पीपल के पौधे की उंचाई 10 से 12 फीट की होनी चाहिए लेकिन ये पौधे इस मापदंड को पूरा नहीं कर रहे हैं। इन पौधों में ट्री गार्ड लगने चाहिए थे लेकिन टेंडर लेने वाली फर्म ने इनकी सुरक्षा के लिए कोई उपाय नहीं किया है। इनकी जड़ों को भी मिट्टी और मुरम में गाड़ दिया गया है,जबकि एक्सपर्ट कहते हैं की कम से कम दो फीट गड्डा होना चाहिए जिसमें खाद और दूसरी सामग्री डालकर पौधों को लगाना चाहिए तभी पौधे आगे बढ़ते हैं और जीवित रहते हैं वरना पौधे कुछ दिनों में मर जाते हैं।
गायों का निवाला बने पीपल
अब आपको इस पीपल सिटी की दूसरी तस्वीर दिखाते हैं। यह देखिए गायों का झुंड और पौधारोपण। जहां यह पौधे लगाए गए हैं वहां पर गायों के चरने का स्थान है। इन पौधों के पत्तों को देखकर आप समझ सकते हैं कि ये गायों का निवाला बने हैं। आप यह गायें भी देख रहे हैं जो इन पौधों को चरती हुई भी नजर आ रही हैं।
अब यदि इन पौधों में ट्री गार्ड लगे होते तो शायद ये जानवरों का चारा बनने से बच भी जाते लेकिन इनकी सुरक्षा का कोई इंतजाम भी नहीं है। बरगद या पीपल के पौधे लगाने में एक बात का खास ध्यान रखा जाता है कि इनमें तने के साथ शाखाएं भी होनी चाहिए। लेकिन इन पीपल के पेड़ों में आपको सिर्फ तना ही दिखाई दे रहा है,शाखाओं का कहीं पता ही नहीं है। पीपल के पौधों के बीच में कम से कम दस फीट की दूरी होनी चाहिए लेकिन इसकी भी अनदेखी की गई है।
15 करोड़ का टेंडर
15 करोड़ के टेंडर में रोपे जाने वाले पौधों को चार केटेगरी में बांटा गया था,जिनकी हाइट भी तय की गई है। पीपल,पारस,नीम,बरगद,अशोक व अन्य पौधों की हाइट 7 से 10 फीट की होनी चाहिए। वैसे ही चंपा,रातरानी,मौलश्री,कचनार के पौधों की उंचाई 4_5 फीट निर्धारित है। लेकिन इन नियमों का पालन नहीं किया गया। यह टेंडर दो भागों में जून में निकाला गया था। यानी भरी बरसात में लगाए गए पौधे ही जीवित न रह पाए। ये है भ्रष्टाचार का नया मॉडल जो सरकार की नाक के नीचे ही चल रहा है।
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