JAIPUR. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने न्यायपालिका पर भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप लगाया है और इसके चलते वे न्यायपालिका से जुड़े लोगों खासकर वकीलों के निशाने पर आते दिख रहे हैं। उनके बयान के विरोध में उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई करने की मांग राजस्थान मुख्य न्यायाधीश तक पहुंच गई है। पर अब राजस्थान भर में लोगों के बीच चर्चा इस बात की है कि आखिर गहलोत ने अचानक न्यायपालिका को निशाने पर क्यों लिया है?
संजीवनी घोटाले से जुड़े सवाल पर बोले गहलोत
दरअसल यह बयान ही नहीं, बल्कि दो दिन पहले जोधपुर में एक वकील को लेकर दिया गया उनका बयान भी चर्चा में हैं जिसमें संजीवनी घोटाले से जुड़े एक सवाल के जवाब में गहलोत ने कहा था “इसमें भी बड़ा रहस्य है। हमारे अधिवक्ता ने कोर्ट में कैसे बोल दिया कि केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत दोषी नहीं है। यह मेरी समझ से परे है जबकि जांच एजेंसियों ने उन्हें जांच में दोषी मान लिया था।'' इस पर जब किसी ने पूछा कि क्या वकील भी मिला हुआ है तो गहलोत ने कहा कि यह रहस्य है। समझो भाई यही तो रहस्य है। अहम बात यह है कि गहलोत ने वकील का नाम नहीं लिया था, लेकिन यह वकील कांग्रेस के बड़े नेता और हाल में कांग्रेस कार्यसमिति में शामिल किए गए अभिषेक मनु सिंघवी हैं जो इस संजीवनी मामले में राजस्थान पुलिस की एसओजी यानी स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप की ओर से पेश हुए थे।
यह है इस मामले की कहानी
हुआ यूं था कि केंद्रीय मंत्री शेखावत ने जोधपुर हाईकोर्ट याचिका पेश कर संजीवली मामले में एसओजी की ओर से एफआईआर को चुनौती देते हुए उसे निरस्त करने की मांग की थी। इसके साथ ही मामले की जांच सीबीआई को रेफर करने की भी मांग की गई थी। राज्य सरकार की ओर से पैरवी करते हुए सीनियर अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में कहा कि शेखावत को एसओजी की एफआईआर में न तो आरोपी माना है और न ही गिरफ्तार कर रहे हैं। इस पर हाईकोर्ट ने गजेंद्र सिंह की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।
हालांकि, जब यह सामने आया कि एक बड़ी गलती हो गई है तो इस आदेश के बाद उसी दिन संशोधन के लिए प्रार्थना-पत्र पेश किया गया। इसमें शेखावत को आरोपी मानने की बात कही गई थी। इसे कोर्ट ने स्वीकार तो कर लिया, लेकिन गजेन्द्र सिंह शेखावत की गिरफ्तारी पर रोक अभी भी जारी है। वहीं दूसरी ओर शेखावत ने संजीवनी मामले में ही गहलोत के बयानों के आधार पर उनके खिलाफ मानहानि का मामला दिल्ली की एक कोर्ट में दायर कर रखा है, जिसमें गहलोत को वीसी के जरिए पेश होना पड़ रहा है।
ऐसे में अब राजनीतिक, प्रशासनिक और न्यायिक गलियारों में गहलोत के इन बयानों के पीछे के कारणों की खोज चल रही है, क्योंकि यह माना जाता है कि गहलोत कोई भी बयान चलते में नहीं देते हैं। उसके पीछे कोई ना कोई कारण जरूर होता है। ऐसे क्या कारण हो सकते हैं, इस बारे में हमने सरकार के विधि विभाग से भी पड़ताल करने की कोशिश की, लेकिन वहां किसी भी अधिकारी ने किसी भी तरह की कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश तक पहुंची गहलोत के खिलाफ कार्रवाई की मांग
इन बयानों के बाद वकील गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोलते दिख रहे हैं। बार काउंसिल ऑफ राजस्थान के पूर्व उपाध्यक्ष और बार एसोसिएशन ऑफ जयपुर के पूर्व अध्यक्ष योगेन्द्र सिंह तंवर ने राजस्थान के मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेज कर कहा है कि गहलोत ने अपने बयान से न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाई है। ऐसे में उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि की कार्रवाई की जानी चाहिए। तंवर का कहना है कि गहलोत किसी केस के बारे में कुछ कहते तो बात समझ में आती, लेकिन वे पूरी न्यायपालिका पर ऐसे आरोप कैसे लगा सकते हैं? कुछ अन्य वकील भी इस मामले में गहलोत के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
बीजेपी बना रही मुद्दा
इधर बीजेपी भी इस मामले को मुद्दा बनाती दिख रही है। नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने ट्वीट कर कहा कि मुख्यमंत्री को खुद की सरकार में भ्रष्टाचार नजर नहीं आता और न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को लेकर सीधे हमला कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि संविधान के तीसरे स्तंभ के रूप में न्यायपालिका को कई व्यापक अधिकार मिले है। संविधान के आर्टिकल 121 और 211 के अनुसार राज्य की विधायिका सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और अधीनस्थ न्यायालयों के किसी भी न्यायाधीश के आचरण और कर्तव्य के बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर सकती।