छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और बीजेपी ने तेज की चुनावी तैयारियां, विधानसभा सत्र से पता चला क्या होंगे दोनों पार्टियों के चुनावी मुद्दे

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Sushil Trivedi
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छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और बीजेपी ने तेज की चुनावी तैयारियां, विधानसभा सत्र से पता चला क्या होंगे दोनों पार्टियों के चुनावी मुद्दे

RAIPUR. पिछले सप्ताह छत्तीसगढ़ विधानसभा का अल्पकालीन सत्र सम्पन्न हुआ। इस सत्र में मुख्यमंत्री ने शासकीय कर्मचारियों के लिए राजकीय खजाने के सारे ताले खोल दिए। इसके तहत राज्य के कर्मचारियों के लिए केन्द्र के समान मंहगाई भत्ता मंजूर कर दिया गया और पंचायत सचिवों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, मितानिनों, संविदाकर्मियों, दैनिक वेतन भोगियों सहित अन्य के लिए मासिकभुगतान बढ़ा दिया गया। फलस्वरूप, शासकीय कर्मचारियों की लम्बी हड़ताल का समापन हो गया और कर्मचारियों ने मुख्यमंत्री को धन्यवाद दे दिया। बहरहाल, प्रदेश के संविदाकर्मी और दैनिक वेतन भोगी नियमितिकरण की मांग को लेकर हड़ताल पर बैठे हुए हैं। बीजेपी के बड़े नेताओं ने इन हड़ताली कर्मियों के पंडाल में जाकर घोषणा कर दी है कि चुनाव के बाद उनकी सरकार आने तक संविदाकर्मियों को नियमित कर दिया जाएगा।



विधानसभा में कांग्रेस सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव



विधानसभा में बीजेपी ने कांग्रेस सरकार के विरुद्ध 109 आरोपों के साथ अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किया। सत्र के अंतिम दिन इस प्रस्ताव पर 13 घंटे तीखी बहस हुई। इस बहस में बीजेपी ने सरकार के ऊपर कोयला परिवहन, जिला खनिज फंड, राशन वितरण, शराब बिक्री, सिंचाई, जल-जीवन मिशन आदि विषयों के 48 घोटालों पर ज्यादा जोर दिया। शासन पक्ष ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया और विकास संबंधी दावों को दमदार तरीके से प्रस्तुत किया। अंत में विपक्ष ने सदन का बहिष्कार किया और विपक्ष की अनुपस्थिति में अविश्वास प्रस्ताव अस्वीकृत कर दिया गया।



क्या होंगे चुनावी मुद्दे ?



विधानसभा में जिस तरह से कार्रवाई चली, उससे यह स्पष्ट हो गया कि विधानसभा के लिए नवंबर में होने वाले चुनाव के मुद्दे क्या होंगे। अगर सत्ता पक्ष धान और किसान को सबसे बड़ा मुद्दा बनाएगा और सरकारी कर्मचारियों सहित समाज के सभी वर्गों को पहुंचाए गए लाभ को आधार बनाएगा, तो बीजेपी राज्य सरकार में हुए तथाकथित घोटालों के आरोपों और केन्द्रीय योजनाओं को लागू करने में असफलता को अपना मुख्य अस्त्र बनाएगी। इस दौरान राज्य में बस्तर क्षेत्र में आदिवासियों और धर्मांतरित आदिवासियों के बीच विभेद की नई खाई सामने आई है। पूजा-अर्चना, पूजा-स्थल और अंतिम संस्कार को लेकर विवाद पहले से ही बना हुआ था, अब खेती-बोनी को लेकर रीति-रिवाज के पालन को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है। कांग्रेस के एक शीर्ष नेता के धर्म को लेकर सोशल मीडिया पर अवांछित टिप्पणी की जा रही है। ये बातें यह संकेत देती हैं कि चुनाव में आदिवासी समाज एक जुट नहीं रह पाएगा और उसके बीच धर्म को लेकर बन गई खाई का राजनीतिक स्वरूप सामने आएगा। इस बीच केन्द्र सरकार ने 12 जनजातियों को अनुसूचित जनजातियों और 2 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का निर्णय लिया है। बीजेपी इस मुद्दे को अपना चुनावी दांव अवश्य बनाएगी क्योंकि ये जातियां काफी समय से अनुसूचित घोषित होने के लिए संघर्षरत थीं। अनुसूचित घोषित होने पर इन जातियों का आरक्षण संबंधी लाभ तथा अन्य सुविधाएं मिलने लगेंगी।



बीजेपी तैयारी में नहीं छोड़ना चाहती कोई कसर



इस बार छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, अन्य वरिष्ठ मंत्रियों और बीजेपी के शीर्ष नेताओं की लगातार यात्राएं हो रही हैं और वे यहां के चुनिंदा बीजेपी नेताओं के साथ निरंतर बैठकें कर रहे हैं, उससे ये स्पष्ट है कि बीजेपी छत्तीसगढ़ में चुनावी तैयारी में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती। केन्द्रीय नेता राज्य में बीजेपी की आंतरिक गुटबाजी को दूर कर सबको एक साथ काम करने के लिए सख्ती से संदेश दे रहे हैं। बीजेपी के केन्द्रीय नेताओं के लगातार दौरों के बाद, चुनावी रणनीति मेंएक बड़े राजनीतिक बदलाव का संकेत देते हुए, बीजेपी ने यहां 16 समितियों का गठन किया है जिसमें प्रदेश के पुराने और वरिष्ठ नेताओं को शामिल किया है। यह बात अलग है कि इन समितियों में कुछ युवा नेता और हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारियों को भी जगह दी गई है। और फिर, जैसा होता है, जो पुराने नेता इन समितियों में जगह पाने से वंचित रहे हैं वे जगह पाने के लिए नई जोड़-तोड़ कर रहे हैं। बहरहाल, यह तय है कि जमीनी स्तर पर बीजेपी का संगठन कमजोर बना हुआ है और आरएसएस के द्वारा जमीनी स्तर पर संगठन को फिर से खड़ा करने का कार्य किया जा रहा है।



कांग्रेस ने भी शुरू की तैयारी



इधर कांग्रेस संगठन ने भी विभिन्न राजनीतिक समितियों के गठन की कार्रवाई शुरू की है। इसके अंतर्गत प्रदेश चुनाव समिति की घोषणा कर दी गई है जिसमें अधिकांश वरिष्ठतम कांग्रेस नेता शामिल कर लिए गए हैं। इस समिति में क्षेत्र और जातिगत प्रतिनिधित्व पर बहुत ध्यान दिया गया है। अगले सप्ताह बूथ स्तर तक की समितियां बनने की संभावना है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहले ही राज्य के लगभग सभी विधानसभा क्षेत्रों में 'भेंट मुलाकात' का कार्यक्रम कर चुके हैं। अब इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने युवाओं से संभागवार मुलाकात का सिलसिला शुरू किया है और रायपुर संभाग का पहला कार्यक्रम बहुत जोर-शोर के साथ रायपुर में सम्पन्न हुआ है। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने युवाओं से सीधी बात कर उनकी बहुतेरी मांगों, जिनका संबंध शिक्षा और प्रशिक्षण से था, को सभा में ही स्वीकृत करने की घोषणा कर दी। उसके बाद उन्होंने नए युवा मतदाताओं से भेंट करने का कार्यक्रम बना लिया है। छत्तीसगढ़िया ओलंपिक के आयोजन के द्वारा भी कांग्रेस युवाओं से जुड़ने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस की चुनावी रणनीति में युवा वर्ग पर पहली बार इतना अधिक जोर दिया जा रहा है।



बहुत-सी सीटों पर दिखाई देंगे एकदम नए चेहरे



एक दिलचस्प बात यह है कि जानकार लोगों के बीच उन सर्वेक्षणों की बहुत चर्चा है जो कांग्रेस और बीजेपी द्वारा तथाकथित रूप से कराए गए हैं और जिनमें उनकी कमजोर सीटों का विशेष उल्लेख है। इस आधार पर यह अनुमान है कि ये दोनों ही दल, पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले, इस बार बहुत-सी सीटों पर एकदम नए चेहरे उतारेंगे। राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए के नए चुनावी संगठन, यूपीए के नए 'इंडिया' संगठन और इन दोनों ही संगठनों से बराबर के दूरी रखे 11 राजनीतिक दलों को लेकर यह कयास लगाया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में इनका प्रभाव पड़ेगा या नहीं। इस आधार पर छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी, वामपंथी दलों, बहुजन समाज पार्टी पर राजनीतिक निगाहें टिकी हैं कि वे क्या रूख अपनाएंगे, लेकिन यह तय है कि इन दलों का कोई भी निर्णय छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और बीजेपी के द्विध्रुवीय संघर्ष को बहुत प्रभावित नहीं करेगा।

अंत में हम पाते हैं कि 10 बिन्दुओं के चुनावी-स्केल पर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस 5.50 और बीजेपी 4.50 पर बनी हुई है।


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