संजय गुप्ता, INDORE. मप्र विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस इस बार सर्वे के आधार पर टिकट देने की बात कर रही है। राहुल गांधी से लेकर कमलनाथ की टीम द्वारा सर्वे हो रहे हैं। वहीं इंदौर जिले की नौ विधानसभा सीटों को लेकर सामने आ रहा है कि इंदौर के लिए तय किया जा रहा है कि जीते हुए विधायकों के टिकट फिर से रिपीट किए जाएंगे। यानि इंदौर विधानसभा एक, देपालपुर और राउ में फिर से जीते हुए विधायक ही चुनाव मैदान में उतरेंगे। इन तीनों जगह पर सिंगल नामों को ही आगे बढ़ाया जा रहा है। उधर अन्य सीटों के लिए पैनल बनाने की बात कही जा रही है, जिस पर अंतिम मुहर पार्टी में उच्च स्तर पर लगेगी।
इस तरह नामों को बढ़ाया जा रहा है आगे
इंदौर विधानसभा एक
यहां से वर्तमान कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला को ही आगे बढ़ाया जा रहा है, पार्टी के पास उनकी विधानसभा को लेकर फीडबैक ठीक है। बीते चुनाव में उन्होंने बीजेपी के सुदर्शन गुप्ता को आठ हजार से ज्यादा वोट से हराया था, हालांकि उनके लिए निगम चुनाव बड़ा झटका साबित हुए जहां वह अपनी विधानसभा में हार गए थे। राहत की बात यही है कि अभी बीजेपी से दावेदार तय नहीं है।
इंदौर विधानसभा दो
यहां से निगम नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे के नाम को आगे बढ़ाया गया है। यह सीट साल 1993 से ही यानि 230 साल से बीजेपी के पास है और यहां बीते चुनाव में कांग्रेस 71 हजार वोट से हारी थी, इसके पहले 2013 में रिकॉर्ड 91 हजार वोट से हारी थी। इसके चलते चौकसे भी चाहते हैं कि पहले से ही पार्टी नाम घोषित कर दे ताकि काम शुरू कर सकें। यह उन 66 सीटों में शामिल है जिस पर पूर्व सीएम दिग्विजिय सिंह दौरा कर रिपोर्ट दे चुके हैं।
इंदौर विधानसभा तीन
यहां से जोशी परिवार के चाचा-भतीजा अश्विन जोशी और पिंटू जोशी के बीच ही टिकट की फाइट है लेकिन रेस में आगे पिंटू है और इस बार अश्विन को पीछे हटने के लिए कहा जाएगा। वह दो बार से लगातार चुनाव हार रहे हैं। अरविंद बागड़ी भी टिकट मांग रहे हैं लेकिन जिस तरह से उनके कमल प्रेमी होने और बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय के करीबी होने की मुहर लगी है, ऐसे में विजयवर्गीय के पुत्र व विधायक आकाश के सामने उन्हें टिकट मिलना दूर की कौड़ी ही है।
विधानसभा चार
यह भी विधानसभा दो की तरह बीजेपी का गढ़ है और 1990 से यह सीट बीजेपी के पास है। इसमें 30 साल से तो गौड़ परिवार के पास ही सीट है। यहां भी पार्टी 40 हजार वोट से जीत हासिल करती है। फिलहाल दावेदारी में राजा मंधवानी आगे निकल रहे हैं, वह सक्रिय हो गए हैं और बताया जा रहा है प्रचार-प्रसार के खर्चे में कमी नहीं रख रहे हैं। पीछे-पीछे शिक्षाविद अक्षय बम भी दौड़ रहे हैं और उन्होंने भी आयोजन शुरू कर दिए हैं। हालांकि इस क्षेत्र में सिंधी समाज अधिक है, ऐसे में मंधवानी का दावा आगे निकल रहा है। उधर गोलू अग्निहोत्री के लिए मुश्किल है, शहराध्यक्ष के लिए उनके द्वारा की गई लॉबिंग ही भार पड़ रही है। सुरजीत सिंह चड्ढा भी बाहर ही है।
विधानसभा पांच
यह सीट हाथ आया और मुहं को नहीं आया, इस कहावत जैसी ही है कांग्रेस के लिए। 2003 से ही कांग्रेस हार रही है, साल 2018 में मात्र 1132 वोट से कांग्रेस के सत्तू पटेल हार गए। इस बार उन्हें बदले हुए माहौल में फिर से परचम लहराने का भरोसा है, लेकिन बीच में शिक्षाविद स्वप्निल कोठारी आड़े आ रहे हैं। टिकट की दौड़ इन्हीं के बीच है, कोठारी कमलनाथ के भरोसे हैं तो फिर सत्तू सीधे प्रियंका गांधी के जरिए ही टिकट हासिल करने में लगे हुए हैं, उन्हें दिग्विजय सिंह का भी साथ मिल सकता है।
विधानसभा राउ
इस विधानसभा से लगातार दो बार से चुनाव जीत रहे कांग्रेस के जीतू पटवारी ही तय है। दूसरा कोई दावेदार नहीं है। वह यहां प्रभाव रखने वाले खाती समाज से है और पहला चुनाव हारने के बाद लगातार दो चुनाव जीते हुए हैं। यहां से सिंगल ही नाम है और वह विधानसभा में पहले से सक्रिय है। वहीं पंडोखर महाराज तो हाल ही में उनके दोगुने मार्जिन से चुनाव जीतने की बात लिख कर दे गए, यह भी कि मेहनत करेंगे तो 40 हजार वोट से भी जीत जाएंगे।
विधानसभा देपालपुर
इस विधानसभा से वैसे तो सीट पलटी होती है, एक बार बीजेपी तो एक बार कांग्रेंस जीत हासिल करती है। कांग्रेस से तो विशाल पटेल फिर से तय है, अभी सीट उन्हीं के पास है। लेकिन बीजेपी के लिए अभी प्रत्याशी तय करना ही सबसे बड़ी दुविधा है। पटेल कमलनाथ की भी पसंद है, ऐसे में उनके लिए कोई समस्या नहीं है।
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विधानसभा सांवेर
इस विधानसभा पर भी बीजेपी और कांग्रेस की हार-जीत चलती रहती है। 2018 में यह सीट कांग्रेस वाले तुलसीराम सिलावट के पास आई थी और दल-बदल के बाद साल 2020 के उपचुनाव में बीजेपी वाले बन गए सिलावट के पास चली गई। कांग्रेस से प्रेमचंद गुड्डु की बेटी रीना सेतिया टिकट की दौड़ में सबसे आगे हैं और वह लंबे समय से तैयारियों में भी जुटी हुई है। हालांकि बंटी राठौर का भी नाम पैनल में चल रह है।
विधानसभा महू
यह विधानसभा भी कांग्रेस को लगती है कि उनके पास आएगी लेकिन यहां भी बीजेपी का बाहरी प्रत्याशी आकर जीत हासिल कर जाता है, साल 2008 और 2013 में कैलाश विजयवर्गीय जीते तो 2018 में ऊषा ठाकुर ने जीत हासिल की। यहां से कांग्रेस से लगातार चुनाव लड़ रहे अंतर सिंह दरबार के मुकाबले में कांग्रेस के पास शक्ति सिंह और कैलाश पांडे का भी नाम सामने आ रहा है। यहां कांग्रेस इतनी जल्दी टिकट तय करने की स्थिति में नहीं है और पैनल बनाकर सर्वे और अन्य फीडबैक के बाद ही टिकट तय करेगी।