BHOPAL. इंदौर में 1991 से बंद हुकुमचंद मिल के मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने शुक्रवार को अहम आदेश दिए थे। करीब 6 हजार मजदूर परिवारों को 32 साल बाद राहत मिली। हाईकोर्ट ने हाउसिंग बोर्ड को आदेश जारी करते हुए कहा कि 3 दिन के अंदर पूरी राशि श्रमिकों के खाते में जमा की जाए। सरकार को 425 करोड़ रुपए जमा करने होंगे। इनमें मजदूरों के ब्याज सहित 218 करोड़ रुपए भी हैं। 3 दिन में SBI में खाता खोलकर ये पैसे जमा कराने होंगे।
मजदूरों को मिली राहत में IAS संजय शुक्ला का अहम योगदान
हुकुमचंद मिल के मामले में सालों बाद मजदूरों को मिली राहत में मध्यप्रदेश के वरिष्ठ IAS संजय शुक्ला का अहम योगदान है। हुकमचंद मिल के मजदूर का करोड़ों रुपए का वेतन और बकाया राशि, बैंकों के लोन और वित्तीय संस्थाओं के कर्ज, ब्याज आदि की भारी-भरकम दशकों पुरानी अरबों रुपए की देनदारी का पहाड़ खड़ा था, जिससे पार पाना सरकार के लिए असंभव हो गया था। काफी सोच-विचार के बाद इस चुनौती भरी समस्या का समाधान करने का जिम्मा संजय शुक्ला को सौंपा गया था। इन्होंने बहुत कम समय में ठोस योजना बनाकर हुकमचंद मिल मजदूरों का समाधान करने वाला फॉर्मूला बनाया।
लैंड डेवलपमेंट का प्लान बनाया
संजय शुक्ला ने मिल की जमीन को विकसित कर धन अर्जन, रोजगार और व्यवसाय को केंद्रा में रखकर योजना बनाई। केंद्र और राज्य की सरकारों ने योजना को स्वीकार किया और समस्या का समाधान करने में शुक्ला और उनकी टीम के योगदान को नहीं भुलाया नहीं जा सकता।
संजय शुक्ला के काम आया पुराना अनुभव
संजय शुक्ला इंदौर के निगम आयुक्त भी रहे थे। उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव थे, तब उन्होंने हुकमचंद मिल के सालों पुराने इस काम की राह आसान की। सरकार के लिए करीब-करीब असंभव लगने वाले काम को अपनी दूरदृष्टि और मेहनत से आसान कर दिया। उस समय मुख्य सचिव ने इस बेहद कठिन चुनौती का समाधान करने का जिम्मा शुक्ला को दिया। सरकार को पूरा भरोसा था कि शुक्ला इस समस्या का पक्का समाधान निकालेंगे और ऐसा ही हुआ।
क्या कहते हैं संजय शुक्ला
संजय शुक्ला बताते हैं कि उन्होंने हुकमचंद मिल के लिए बहुआयामी समाधान ढूंढा था। उन्होंने सबसे पहले अपने विभाग के एमपीआईडीसी मप्र इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन को एजेंसी बनाया। मिल की जमीन का विकास करके इसे नॉलेज आधारित इंडस्ट्री और रोजगार के लिए विकसित करने की योजना बनाई। इस संपत्ति के विक्रय से मिलने वाली धनराशि से मिल मजदूर, बैंक और वित्तीय संस्थाओं का सारा पैसा अदा कर दिया जाता और करीब 30 हजार लोगों को रोजगार मिलता। साथ ही नगर निगम को हर साल करोड़ों रुपए के संपत्तिकर और अन्य कर से राजस्व की मिलता। इस योजना को काफी सराहना मिली। इस पर अमल करने का काम भी शुरू होने वाला था, लेकिन उस समय मुख्यमंत्री के करीबी स्वार्थी तत्वों ने शुक्ला का विभाग बदलवा दिया। इस कारण योजना लंबे समय तक ठंडे बस्ते में पड़ी रही। यही नहीं, इसमें अनावश्यक फेरबदल करने की भी कोशिश हुई।
हुकुमचंद मिल के समाधान को पीएम मोदी ने सराहा
हुकमचंद मिल के समाधान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सराहा है। वे गुजरात में बंद अनेक कपड़ा मिलों के श्रमिकों और वित्तीय संस्थानों की इसी तरह की समस्याओं का समाधान चाहते हैं। उनकी रुचि हुकमचंद मिल के इस मॉडल में है। देश-दुनिया में कपड़ा मिलों के बंद होने से काम करने वाले मजदूरों का जीवन संकट में आ जाता है। हमारे देश में उद्योगपति अक्सर कपड़ा मिलों को घाटे में बताकर हाथ ऊंचे कर देते हैं और उद्योग को दिवालिया घोषित कर मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ देते हैं। मजदूरों को न वेतन, न ही अन्य बकाया राशि मिल पाती है और अपना हक पाने के लिए सरकार और कोर्ट के चक्कर लगाते हुए पीढ़ियां खप जाती हैं।
हुकुमचंद मिल के जैसी दूसरी मिलों के केस को मार्क करके 7 दिन में रिपोर्ट पेश करने के लिए औद्योगिक नीति और प्रोत्साहन विभाग को नोडल विभाग बनाया गया है। इससे ऐसे मामलों को जल्द से जल्द समाधान हो सकेगा।