JAIPUR ( मनीष गाेधा की रिपाेर्ट ). सामाजिक समरसता की दृष्टि से राजस्थान में हाल में एक बड़ा काम हुआ है। सरकार के देवस्थान विभाग के अधीन आने वाले मंदिरों में अब अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी वर्ग के लोग भी पुजारी का काम संभालेंगे। करीब नाै साल के लंबे इंतजार के बाद राजस्थान के देवस्थान विभाग ने हाल में इनकी नियुक्ति के आदेश ताे जारी कर दिए हैं, मगर उसी के साथ विवाद भी शुरू हाे गया है। कई ब्राह्मण संगठन इसे परंपरा का उल्लंघन बताते हुए आंदाेलन की बात कर रहे हैं।
भाजपा सरकार में हुआ था फैसला
दरअसल फरवरी 2014 में तत्कालीन भाजपा सरकार के समय देवस्थान विभाग के मंदिरों में मैनेजराें, पुजारियों और सेवागिरों के 65 पदों के लिए भर्ती परीक्षा हुई थी। इसके लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता संस्कृत शिक्षा के तहत प्रवेशिका परीक्षा उत्तीर्ण रखी गई थी। चूंकि सरकारी भर्ती थी, इसलिए आरक्षण के नियमों का पालन जरूरी था। इसी के तहत परीक्षा कराई गई, लेकिन इसका परिणाम नौ साल रुका रहा और विभागीय सूत्रों की मानें तो परिणाम रुकने के पीछे आरक्षण व्यवस्था के तहत आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों का चयन ही था। पिछले वर्ष सितंबर में मौजूदा सरकार ने परिणाम जारी किया और चयनित अभ्यर्थियों को प्रशिक्षण दिलाकर अब उनके नियुक्ति आदेश जारी कर दिए गए हैं। विभागीय सूत्रों के अनुसार इससे पहले पुजािरयों की भर्ती 1989 में हुई थी, लेकिन आरक्षित वर्ग को नियुक्तियां पहली बार ही दी गई हैं। इन सभी पुजारियों को पूजा- पाठ की विधि, मंदिर के कपाट खोलने, भोग लगाने और आरती आदि का प्रशिक्षण दिया गया है। नियुक्ति पाने वाले सभी पुजारी बीए, बीएड, एमएड और पीएचडी तक की उपाधियां रखते हैं। वहीं कुछ राष्ट्रीय स्तर के सेमिनार में भी भाग ले चुके हैं।
परंपराओं का पालन जरूरी: शास्त्री काैसलेन्द्र दास
मंदिरों में पुजारी का काम ब्राह्मण पुरुष वर्ग ही करता आया है। ऐसे में यह नियुक्ति कितनी शास्त्र सम्मत है, इस बारे में हमने राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष शास्त्री काैसलेन्द्र दास से बात की तो उनका कहना था कि जगद्गुरू रामानंदाचार्य ने अपने ग्रंथ “वैष्णव मताब्ज भास्कर“ में स्पष्ट लिखा है कि भगवान की भक्ति का अधिकार सभी को है। भगवान की भक्ति के लिए कुल, बल, काल और शुद्धता की आवश्यकता नहीं है। लेकिन मंदिरों में भगवान की सेवा पूजा शास्त्र विधि के अनुसार ही होनी चाहिए। देवस्थान विभाग की जिम्मेदारी है कि वह यह देखे कि प्राचीन मंदिरों की पूजा व सेवा विधि का क्रम वही रहे जो उनकी प्रतिष्ठा के समय तय किया गया था। प्रतिष्ठा के समय तय किए गए नियमों का पालन होना चाहिए।
विप्र फाउंडेशन विराेध में, अन्य ब्राह्मण संगठनों से भी एकजुटता की अपील
उधर विप्र फाउंडेशन ने ब्राह्मणों के साथ अन्य वर्ग के अभ्यर्थियों को दी गई नियुक्ति का पुरजोर विरोध किया है। विप्र फाउंडेशन के प्रदेशाध्यक्ष के प्रदेशाध्यक्ष एडवोकेट राजेश कर्नल कहते हैं कि इस तरह की भर्ती को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इन नियुक्तियों को तत्काल प्रभाव से रद्द नहीं किया गया तो इस मांग को लेकर प्रदेशव्यापी आंदोलन किया जाएगा। विप्र फाउंडेशन ने देवस्थान विभाग में पुजारी भर्ती पर आपति दर्ज कराते हुए कहा है कि सरकार ने न केवल सदियों से चली आ रही परम्परा को तोड़ा है, बल्कि सरकार के ये प्रयास समाज को बांटने वाले हैं। जो कार्य मुस्लिम शासकों और अंग्रेजों तक ने नहीं किया वो राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने कर दिया। हिंदू मंदिरों में सेवा और पूजा कार्य भी विशेष प्रकृति का कार्य है, जिसे मात्र ब्राह्मण ही करते आए हैं। विप्र फाउंडेशन ने यह भी कहा है कि वर्तमान में देवस्थान विभाग को भंग कर मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की आवश्यकता है, क्योंकि हिंदुओ को छोड़ किसी अन्य वर्ग संप्रदाय के धार्मिक स्थल सरकारी नियंत्रण में ही नहीं हैं। विप्र फाउंडेशन ने अन्य ब्राह्मण एवं अन्य सामाजिक संगठनों से भी पुजारी भर्ती में अपनाई गई सरकारी नीति का एकजुटता के साथ विरोध की अपील की है और कहा कि सरकार ने इन भर्तियों को रद्द नहीं किया तो विरोध स्वरूप बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा। विप्र फाउंडेशन इस संबंध में राज्यपाल कलराज मिश्र को ज्ञापन देकर उनसे पुजारी पद पर सरकार के देवस्थान विभाग की ओर से की गई नियुक्तियों को हस्तक्षेप करने की मांग की है।
पुरातन परंपरा से न करें खिलवाड़
दलित पुजारियों की भर्ती के मामले में सर्व ब्राह्मण महासभा युवा प्रकोष्ठ के वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष राघव शर्मा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि यह प्रक्रिया पुरातन काल से चली आ रही है कि मंदिर शिवालय आदि की सेवा पूजा हो या फिर रख- रखाव, हमेशा से ही प्रासंगिक तौर पर ब्राह्मणों के द्वारा ही होती आई है। राजस्थान सरकार इस परंपरा को बदलने का प्रयास करती है तो यह इतिहास के साथ एवं पुराने समय से चली आ रही परंपरा के साथ छेड़छाड़ माना जाएगा। यह पूर्ण रूप से गलत है और ब्राह्मणों के हितों पर कुठाराघात है। यह सनातन धर्मियों के विश्वास और धार्मिक भावनाओं का प्रश्न है, जिस पर राशन सरकार को गौर करना चाहिए और गंभीरता से धार्मिक भावनाओं को आहत ना पहुंचे ऐसा फैसला लेना चाहिए।
“पीपुल्स यूनियन फ़ॉर सिविल लिबर्टीज “ के प्रदेश अध्यक्ष दलित चिंतक और साहित्यकार भंवर मेघवंशी का मानना है कि ब्राह्मण समाज को सरकार की पहल का विरोध करने के बजाए स्वागत करना चाहिए, क्योंकि अब तो यह एक संवैधानिक व्यवस्था है। सरकार ने जो नियुक्ति दी है, वह सरकार के मंदिरों में ही दी है। हर मंदिर पर इसे लागू नहीं किया गया है। यह सामाजिक समानता बढ़ाने वाला एक अच्छा कदम है, जिसका ब्राह्मण ही नहीं सभी वर्गों को स्वागत करना चाहिए। “अगर वंचित वर्ग के पुजारियों की नियुक्तियों का विरोध हो रहा है तो यह इस बात की ओर संकेत करता है की समाज में जात- पात और ऊंच- नीच का भेद अभी भी खत्म नही हो पाया है।
केरल में हैं दलित पुजारी
केरल के मंदिरों के लिए पहली बार आरक्षण के आधार पर पुजारी चुने गए थे। यहां 36 गैर ब्राह्मण हैं, जिनमें छह दलित भी शामिल हैं। पार्ट टाइम पुजारी के इन पदों के लिए लोक सेवा आयोग की तर्ज पर लिखित परीक्षा और इंटरव्यू लेने के बाद केरल देवस्वाम भर्ती बोर्ड ने इनकी लिस्ट जारी की थी।