RAIPUR. राजधानी के नवा रायपुर के तूता स्थित धरना स्थल से बड़ी खबर मिली है। नियमितीकरण के लिए आंदोलन कर रहे एक संविदाकर्मी की मौत हो गई। इस घटना के बाद धरना स्थल पर पंडाल में इस कर्मचारी की मौत की खबर मिलते ही सन्नाटा छा गया। आंदोलन कर रहे कर्मचारियों ने 2 मिनट का मौन रखकर मृत आंदोलनकारी को श्रद्धांजिल दी। जानकारी के अनुसार मृतक आंदोलनकारी पंडरिया के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में अटेंडेंट का काम करता था। मोतीलाल कौशिक नाम के इस आंदोलनकारी की सड़क दुर्घटना में मौत हुई है। वह 3 जुलाई से हड़ताल पर था और पंडरिया में हो रहे हड़ताल संबंधी कार्यक्रमों में शामिल होकर घर लौट रहा था। वहीं, बीजेपी नेता ओपी चौधरी ने हादसे में हुई मौत को कांग्रेस सरकार की धोखाधड़ी के हाथों हत्या बताया है।
पत्नी की चार महीने पहले हो गई थी मौत, 4 माह की बच्ची हुई बेसहारा
कर्मचारियों ने बताया कि मोतीलाल कौशिक की पत्नी का 4 महीने पहले प्रसव के दौरान निधन हो गया था। मोतीलाल की 4 माह की बच्ची है। बता दें कि प्रदेश के 45 हजार संविदाकर्मी हड़ताल पर हैं। धरना स्थल पर सुंदर पाठ करके संविदा कर्मचारियों ने अपनी मांग को पूरा करने की प्रार्थना की। कांग्रेस ने चुनावी घोषणापत्र में नियमितीकरण का वादा किया था। सरकार का कार्यकाल खत्म होने को है मगर वादा पूरा नहीं हुआ। संविदा कर्मचारी पिछले 25 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं। सरकार ने तीन दिन के भीतर काम पर लौटने का अल्टीमेटम दिया था, मगर कर्मचारी हड़ताल पर अड़े हैं।
संविदाकर्मी की मौत के बाद सियासत शुरू
इस हादसे के बाद अब सियासत भी शुरू हो गई है। पूर्व कलेक्टर व बीजेपी नेता ओपी चौधरी ने सोशल मीडिया पर कांग्रेस पर जमकर निशान साधा है। चौधरी ने ट्विटर पर लिखा कि भूपेश सरकार की वादाखिलाफी और ठगी के विरुद्ध आंदोलनरत एक नौजवान संविदाकर्मी भाई, श्री मोतीलाल कौशिक जी आंदोलन के दौरान शहीद हो गये। इस ह्रदयविदारक घटना ने सभी छत्तीसगढ़वासियों को अंदर तक झकजोर कर रख दिया है। मैं ईश्वर से शोकाकुल परिवार को असीम शक्ति देने की प्रार्थना करता हूँ। शोक की इस घड़ी में हम सब परिवार के साथ हैं। शहीद भाई मोतीलाल कौशिक जी की मौत का कारण कोई दुर्घटना नही बल्कि कांग्रेस सरकार की संविदाकर्मियों के विरुद्ध अमानवता, असंवेदनशीलता और धोखाधड़ी के हाथों हुई एक 'हत्या' है। वहीं, बीजापुर के जिला संयोजक रमाकांत पुनेठा ने कहा कि मोतीलाल संविदा प्रथा के खिलाफ लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। उनकी मृत्यु के बाद उनकी 4 माह की बच्ची के बारे में सोचने वाला कौन है। उस बच्ची को न किसी प्रकार का पेंशन मिलेगा और न ही कोई सामाजिक सुरक्षा का सरकार प्रबंध कर पाई है। मोतीलाल की मृत्यु सरकार के सामने एक प्रश्न बनकर हमेशा खड़ी हो चुकी है।