BHOPAL. भोपाल मास्टर प्लान 2031 के प्रारूप प्रकाशन पर इस बार रिकॉर्ड आपत्ति आई हैं। सबसे ज्यादा आपत्तियां भोपाल के बड़े तालाब के कैचमेंट से ही जुड़ी हुई है। इसका कारण भोपाल मास्टर प्लान 2031 के प्रारूप में अमीरों और गरीबों के लिए अलग—अलग नियम का होना है। भोपाल का बड़ा तालाब एक ही है, ऐसे में उससे संबंधित नियम भी सभी जगहों पर एक जैसे होना चाहिए, लेकिन कलम की बाजीगरी दिखाते हुए इसे लेकर शहरी क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्र में अलग—अलग नियम प्रस्तावित कर दिए गए जो सबसे बड़े विवाद की वजह बने। लोगों ने शासन के इस दोहरे रवैये का जमकर विरोध किया और झोले में भर—भरकर आपत्तियां लगा दी।
क्या होता है जेडओआई
वॉटर बॉडी में zone of influence उस क्षेत्र को कहा जाता है जो उस वाटर बॉडी के लिए संवेदनशील क्षेत्र होता है। प्रदूषण को रोकने और जलस्तर बनाए रखने के लिए यहां निर्माण प्रतिबंधित होता है। जाहिर सी बात है यह किसी एक वॉटर बॉडी के लिए एक जैसा ही होगा, लेकिन भोपाल में इसे अलग—अलग कर दिया गया।
गरीबों का बंटाधार, वीवीआईपी को किया सेफ
भोपाल मास्टर प्लान 2031 का एक महीने पहले ही जून में जो प्रस्तावित प्लान सामने आया उसमें बड़े तालाब का ZOI (zone of influence) ग्रामीण क्षेत्र और शहरी क्षेत्र में अलग—अलग निर्धारित कर दिया गया। ग्रामीण क्षेत्र में यह 250 मीटर है, जिसके कारण गांव में इस दायरे के अंदर बने गरीबों के घर अवैध हो जाएंगे। वहीं शहरी क्षेत्र में यह 50 मीटर प्रस्तावित किया गया है, इसका मतलब यह हुआ कि भोपाल शहर में 50 मीटर के बाहर वीवीआईपी के बने सभी निर्माण वैध हो जाएंगे। सोशल एक्टिविस्ट राशिद नूर खान का कहना है कि शासन का यह दोहरा रवैया ठीक नहीं है।
कैचमेंट को खत्म करने लंबे समय से खेला जा रहा खेल
भोपाल बड़े तालाब के संरक्षण की जिम्मेदारी मध्यप्रदेश वैटलैंड अथारिटी की है। वैटलैंड के संरक्षण और संवर्धन के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2010 में जो वैटलैंड रूल्स बनाए थे, उन्हें वर्ष 2017 में रिवाइस किया गया। नियम के मुताबिक नए संसोधन के लिए मिनिस्ट्री आफ इंवारमेंट, फॉरेस्ट एंड क्लाइमेंट चेंज यानी एफओईएफ में पहले अथारिटी को रजिस्ट्रेशन कराना था, ताकि कोई भी संसोधन से पहले पब्लिक हीयरिंग कर सभी पक्षों पर गौर कर सके, पर मध्यप्रदेश वैटलैंड अथारिटी ने ऐसा नहीं किया क्योंकि इसमें आपत्तियों की भरमार आने की आशंका थी। वैटलैंड अथॉरिटी ने राज्य शासन के बड़े अधिकारियों के साथ मिलकर अलग से ही आदेश निकाल दिया। जिसमें कैचमेंट शब्द खत्म कर जेडओआई यानी जॉन ऑफ इंफ्लूऐंस शब्द लाया गया। जिसके अनुसार शहरी क्षेत्र में 50 मीटर और ग्रामीण क्षेत्र में 250 मीटर को आरक्षित किया गया। मतलब इस एरिए को छोड़कर बाकि बंदिशे खत्म जैसी ही मानी जाए।
हाईकोर्ट में मामला पहले से है विचाराधीन
कैचमेंट को खत्म कर जेडओआई किए जाने को लेकर हाईकोर्ट में मामला पहले से विचाराधीन है। हाईकोर्ट ने पूरे मामले में किसी तरह का कोई स्टे नहीं दिया है, मतलब बड़े तालाब के कैचमेंट को खत्म कर जोन आफ इंफुलेंस व्यवस्था लागू करने के लिए जो प्रक्रिया भी चल रही है, उस पर कहीं कोई रोक नहीं है, लेकिन इसी मामले को लेकर हाईकोर्ट में याचिका लंबित है जिस पर रूल निसि लागू है। याचिकाकर्ता डॉ. सुभाष सी पांडे कहते हैं कि ऐसी स्थिति में जेडओआई से संबंधित 16 मार्च 2022 के आदेश को हाईकोर्ट के फैसले आने तक नहीं लिया जाना चाहिए, इसे लेकर डॉ. सुभाष सी पांडे ने मास्टर प्लान के ड्राफ्ट पर आपत्ति भी लगाई है।
कैचमेंट का यह है महत्व
कैचमेंट वह जलग्रहण क्षेत्र होता है जिसमें बारिश के समय बरसने वाला पानी नदी—नालों के माध्यम से उस वॉटर बॉडी तक पहुंचता है। जाहिर सी बात है...यह उस वॉटर बॉडी के लिए कभी कम तो हो ही नहीं सकता। यानी बड़ा तालाब में आज हम जो पानी देख रहे हैं यह कैचमेंट में हुई बारिश के समय वहां के नदी नालों से होता हुआ बड़े तालाब तक पहुंचा। कैचमेंट में निर्माण को लेकर सख्ती ही इसलिए की जाती है ताकि बारिश के समय वॉटर बॉडी तक पानी जाने में कोई रूकावट न आए।
विधायक रामेश्वर शर्मा भी जता चुके हैं आपत्ति
भोपाल की हूजूर विधानसभा के विधायक रामेश्वर शर्मा ने भी मास्टर प्लान के प्रस्ताव को लेकर आपत्ति दर्ज की है। उनका कहना है कि प्रस्तावित मास्टर प्लान 2031 उच्च वर्ग का मास्टर प्लान है। इसे गांव, गरीब, किसान और मध्यम वर्ग के भविष्य को ध्यान में रखकर तैयार नहीं किया गया है।