राजस्थान में शिक्षा विभाग फिर सुर्खियां; पाठ्यक्रम में बदलाव के संकेत, विभाग की कमान एक बार फिर मुखर हिंदूवादी नेता के हाथ

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BP Shrivastava
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 राजस्थान में शिक्षा विभाग फिर सुर्खियां; पाठ्यक्रम में बदलाव के संकेत, विभाग की कमान एक बार फिर मुखर हिंदूवादी नेता के हाथ

मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में शिक्षा विभाग एक बार फिर अपने फैसलों के चलते सुर्खियां बटोरता दिख रहा है। विभाग की कमान एक बार फिर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े एक मुखर हिंदूवादी नेता को दी गई है और इस बार जिन्हें कमान मिली है वे अपने विवादास्पद बयानों के लिए भी चर्चित रहे हैं।

मुखर हिंदूवादी नेता हैं मंत्री दिलावर

राजस्थान में इस बार शिक्षा विभाग की कमान मदन दिलावर को दी गई है। मुखर हिंदूवादी नेता की छवि रखने वाले दिलावर ने प्रण किया था कि जब तक राम मंदिर का निर्माण शुरू नही हो जाता वे बिस्तर पर नहीं सोएंगे और मंत्री बनने के बाद जब उनसे राम मंदिर निर्माण के बारे में प्रतिक्रिया पूछी गई तो उनके शब्द थे- ' कलंकित ढांचे को गिराने में मेरी भी आंशिक भूमिका रही है।' यही नहीं उन्होंने राम जन्मभूमि के साथ कृष्ण जन्मभूमि की मांग भी कर डाली थी और कहा था कि राम जन्मभूमि तो हमें मिल गई अब कृष्ण जन्म भूमि भी हमें दे दी जाए अन्यथा कानून अपना काम करेगा।

खुलकर रखते हैं हिंदुत्ववादी विचार

यह बयान तो सिर्फ मंत्री पद संभालने के 10 दिनों के भीतर के बयान है। इसे पहले भी मदन दिलावर बहुत खुलकर अपनी हिंदुत्ववादी विचारधारा सामने रखते रहे हैं। वे इस बार छठी बार विधायक बने हैं और तीसरी बार मंत्री बने हैं। इससे पहले वे समाज कल्याण मंत्री रह चुके हैं। पहली बार उन्हें शिक्षा मंत्री बनाया गया है और उनके बयान और राम मंदिर निर्माण के लिए उनका संकल्प काफी कुछ संकेत दे रहा है कि राजस्थान में शिक्षा विभाग में आगे क्या होने वाला है।

मंत्री दिलावर ने यह भी कहा

मंत्री पद संभालते ही दिलावर ने देश की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कक्षा 1 से 5 तक मातृभाषा में शिक्षा देने के नाम पर कांग्रेस सरकार के समय खोले गए महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की समीक्षा करने की बात कही। वहीं इसके साथ ही पाठ्यक्रम को रिव्यू करने की बात भी कहीं। दिलावर ने कहा- पूर्व कांग्रेस सरकार के वक्त सिलेबस में भी बदलाव किया गया है। ऐसे में हमारी सरकार फिर से सिलेबस का रिव्यू करेगी। क्योंकि अगर दो और दो को पांच पढ़ाया जा रहा होगा। वह पूरी तरह गलत होगा। जो घटनाएं हुई ही नहीं होगी, अगर उन्हें पढ़ाया जा रहा है। इसका बदलाव करना बेहद जरूरी है।

 सरकार बदलने के साथ ही बदलता है पाठ्यक्रम

राजस्थान में स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चों के लिए सरकार का बदलना पाठ्यक्रम में बदलाव का कारण भी बन जाता है। हर 5 साल में सरकार बदलती है। भारतीय जनता पार्टी आती है तो सावरकर पाठ्यक्रम में आ जाते हैं। नेहरू और इंदिरा का योगदान कम हो जाता है और कांग्रेस आती ही तो सावरकर बाहर कर दिए जाते हैं और नेहरू, इंदिरा का योगदान फिर बढ़ जाता है।

पहले भी इस तरह बदल चुका पाठ्यक्रम

पिछली भाजपा सरकार के समय शिक्षा मंत्री का दायित्व वासुदेव देवनानी के पास था। देवनानी भी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बेहद करीबी नेताओं में गिने जाते हैं। तत्कालीन सरकार में महाराणा प्रताप और अकबर में से महान कौन है। इसे लेकर लंबा विवाद चला था और कुछ तथ्य बदले भी गए थे। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने दसवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की किताबों के इतिहास खंड में बदलाव को मंजूरी दे दी थी और पाठ्यक्रम  संशोधित लिखा गया एक कि 16वीं शताब्दी के हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने मुगल सम्राट अकबर को निर्णायक रूप से हराया था।

कांग्रेस सरकार ने भी कोर्स में बदलाव किया

2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो इसने फिर एक बार पाठ्यक्रम में बदलाव कर दिया और दसवीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान की किताब में महाराणा प्रताप के हल्दीघाटी युद्ध के जीतने के बारे में उल्लेख किए गए तथ्यों को भी हटा दिया गया। यही नहीं इस किताब में यह भी साफ कर दिया गया है कि महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुआ युद्ध कोई धार्मिक युद्ध नहीं था बल्कि वह एक राजनीतिक युद्ध था।

पाठ्यक्रम में कुछ बदलाव तय

जानकारों का मानना है कि इस बार भी पाठ्यक्रम में कुछ बदलाव होना तय है। हालांकि अब राजस्थान में भी एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम ही पढ़ाया जा रहा है, लेकिन कुछ किताबें स्थानीय स्तर पर भी चलती हैं और इनमें बदलाव किया जाना तय हैं और यह बदलाव होंगे तो एक बार फिर शिक्षा के भगवाकरण और शिक्षा पर संघ का एजेंडा थोपने जैसे आरोप सामने आ सकते हैं।

अखिल भारतीय राजस्थान शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष रामकृष्ण अग्रवाल का कहना है कि पिछली सरकार के समय 2 वर्ष पहले पूरा पाठ्यक्रम एनसीईआरटी का ही कर दिया गया है इसलिए पाठ्यक्रम में बहुत ज्यादा बदलाव की गुंजाइश नहीं है। स्थानीय स्तर की कुछ किताबों में बदलाव किया जा सकता है।

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