RAIPUR. इस समय छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों में अपने जमीनी कार्यकताओं को जोर-शोर से याद किया जा रहा है। दोनों ही दलों के नेताओं ने जिस तरह अपने कार्यकर्ताओं की पूछपरख शुरू की है, उसे देखकर कवि रहीम का दोहा याद आ रहा है- ‘‘दुख में सुमिरन सब करैं, सुख में करे न कोई; जो रहीम सुख में करें तो दुख काहे होए’’। कवि रहीम ने कहा था कि दुख पड़ने पर सब ईश्वर को याद करते हैं, किन्तु जब सुख होता है तब कोई ईश्वर को याद नहीं करता। रहीम का कहना है कि यदि सुख में ईश्वर का स्मरण करें तो दुख ही नहीं होगा। यह समय चुनाव का है और राजनीतिक दलों को अपने ईश्वर रूप में कार्यकर्ता याद आ रहे हैं जिन्हें इन दलों ने सत्ता के सुख के दिन में भुला दिया था। अगर सत्ता के दिनों में इन कार्यकर्ताओं को याद रखा जाता तो आज चुनाव के समय संकट उपस्थित ही नहीं होता।
बीजेपी के जमीनी संगठन पर क्षेत्रीय नेताओं की पकड़ नहीं
बीजेपी को कार्यकर्ता आधारित संगठन माना जाता है किंतु छत्तीसगढ़ में उसकी स्थिति विरोधाभासी है। बीजेपी के नेताओं ने 15 वर्ष के सत्ता काल में अपने जमीनी कार्यकर्ताओं को धीरे-धीरे भुला दिया था इसलिए बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। सत्ता से बाहर आने पर बीजेपी के पूर्व शक्ति संपन्न नेताओं ने पिछले 4 वर्षों में अपने कार्यकर्ताओं को जोड़ने की कोशिश नहीं की। इस वजह से बीजेपी का जमीनी संगठन एकदम छिन्न-भिन्न हो गया। संगठन पर बीजेपी के क्षेत्रीय नेताओं की पकड़ नहीं है और चुनावी साल में उसे संगठित करने के लिए बीजेपी के अनुषांगिक संगठन ने जिम्मेदारी उठा ली है।
बीजेपी को प्रधानमंत्री का भरोसा
बीजेपी ने 30 मई से महासंपर्क अभियान के अंतर्गत कार्यकर्ताओं के साथ बैठकों का दौर शुरू किया है। बैठकों में घर से टिफिन लाकर साथ भोजन करने पर जोर दिया जा रहा है। अब यह बात अलग है कि पिछले बीजेपी शासनकाल में उनके नेताओं और उनसे जुड़े लोगों की जीवनशैली हाईफाई हो गई थी और अब होने वाली बैठकों का तरीका कार्यकर्ताओं को रास नहीं आर रहा है। इसी अभियान के तहत बीजेपी हाईकमान के निर्देश पर केंद्र सरकार के मंत्री दौरे पर दौरे किए जा रहे हैं। इस माह बीजेपी के अध्यक्ष का दौरा प्रस्तावित है जबकि अगले माह प्रधानमंत्री मोदी आयेंगे। बीजेपी उम्मीद करती है कि प्रधानमंत्री के दौरे से राज्य में बीजेपी की विजय ही पृष्ठभूमि बन जाएगी।
कांग्रेस के सम्मेलन पर ‘भेंट मुलाकात’ की छाया
कांग्रेस के कार्यकर्ता नाराज हैं क्योंकि पिछले चार वर्षों में सरकार और संगठन के पदाधिकारियों ने उनकी पूछ-परख नहीं की। इन कार्यकर्ताओं को छोड़कर कुछ और लोग ही मंत्रियों और संगठन पदाधिकारियों के आस-पास एकत्र हो गए। कांग्रेस संभागीय स्तर के सम्मेलन आयोजित वह अपने जमीनी कार्यकर्ताओं से जुड़ने और उन्हें सक्रिय करने की कोशिश कर रही है। उसके ये सम्मेलन कांग्रेस हाईकमान की प्रतिनिधि कुमारी शैलजा की देख-रेख में हो रहे है। कुमारी शैलजा की यह भी कोशिश है कि कांग्रेस में सत्ता और संगठन के बीच ताल-मेल स्थापित हो। वैसे तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिछले कुछ माहों में राज्य के लगभग सभी विधान सभा क्षेत्रों में ‘‘भेंट मुलाकात’’ के कार्यक्रमों के जरिए अपनी सरकार के प्रदर्शन को जानने और कार्यकर्ताओं को साधने की कोशिश की है। इन कार्यक्रमों से भूपेश बघेल को जमीनी हकीकत का अनुमान तो हुआ है।
जय-वीरू की जोड़ी बनी रहेगी
छत्तीसगढ़ में चुनाव पूर्व कांग्रेस और बीजेपी में एक दूसरे दल से नेताओं और कार्यकर्ताओं को अपने में शामिल करने का सिलसिला चल रहा है। इस सिलसिले में बार-बार यह बात उठती रही कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता टीएस सिंहदेव असंतुष्ट हैं और वे कांग्रेस छोड़ सकते हैं। बहरहाल, आस्ट्रेलिया दौरे से लौटकर आने पर सिंहदेव ने यह खुलासा किया कि बीजेपी नेता उन पर बीजेपी में शामिल होने पर बहुत जोर डाल रहे थे और बीजेपी के शीर्ष नेता से उन्हें मिलाने की तैयारी कर रहे थे लेकिन सिंहदेव ने मना कर दिया। सिंहदेव के इस सार्वजनिक खुलासे के बाद मुख्यमंत्री बघेल ने घोषणा की कि वे दोनों मिल कर कांग्रेस की सफलता सुनिश्चित करेंगे और ‘जय-वीरू’ की जोड़ी बनी रहेगी। राज्य की चुनावी रणनीति में यह एक बड़ा मोड़ है।
आदिवासी वोटों में सेंध
छत्तीसगढ़ की चुनावी राजनीति में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों का बहुत महत्व है। इसे ध्यान में रखकर अपनी खोई हुई जमीन को फिर से पाने के लिए बीजेपी ने बस्तर और सरगुजा संभाग पर सर्वाधिक जोर दिया है। इस दौरान बीजेपी इन क्षेत्रों में अदिवासियों और धर्मांतरण अदिवासियों के बीच सामाजिक खाई पैदा करने में सफल हुई है। अब आगे बढ़कर इन क्षेत्रों के अदिवासियों द्वारा यह मांग की जा रही है कि धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाए जबकि धर्मांतरित आदिवासी संविधान के प्रावधान के अनुसार आरक्षण को बनाए रखने के लिए संघर्षरत हो गए है। आरक्षण के पक्ष और विपक्ष में हो रहे अभियान का संकेत यही है कि अब आदिवासी वोट एकजुट नहीं रहेंगे। आदिवासी वोटों में इस सेंध के लगने से बीजेपी को लाभ मिलता दिखाई दे रहा है।
भ्रष्टाचार का मुद्दा गरमाया
कांग्रेस ने जिस तरह राम और रामायण को साधा है उससे छत्तीसगढ़ में बीजेपी के हाथ से हिन्दूत्व का मुद्दा लगभग निकल गया है। बीजेपी का पूरा ध्यान इस समय कांग्रेस सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन में असफलता और कोयले, खनिज तथा शराब को लेकर भ्रष्टाचार के आरोपों पर जोर देने पर है। लेकिन ये मुद्दे जनता से जुड़ नहीं पा रहे हैं। बीजेपी ने अब राज्य के युवाओं को साधने के लिए लोक सेवा आयोग द्वारा किए गए चयन में गड़बड़ी के आरोप को बड़े जोर से उछाला है।
हम भी हैं मैदान में
इधर बसपा ने घोषणा की है कि उसके वर्तमान दोनों विधायक फिर से चुनाव में खड़े होंगे और बसपा का किसी अन्य पार्टी से गठबंधन नहीं होगा। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का संगठन पूरी तौर पर छिन्न-भिन्न है किन्तु उसके नेता अब छत्तीसगढ़ से बाहर के क्षेत्रीय दलों से गठबंधन कर राज्य में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी राज्य में संगठन जमाने में लगी है। इस बार चुनाव के पहले का एक दिलचस्प नजारा यह है कि कांग्रेस और बीजेपी के नेता टिकिट की उम्मीद में बड़े पैमाने पर वॉल पेंटिंग की प्रतियोगिता कर रहे हैं। एक-एक चुनाव क्षेत्र में एक ही पार्टी के कई-कई नेता अपनी पार्टी की टिकिट की दावेदारी पेश कर रहे हैं। मजे की बात यह है कि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार भी वॉल पेंटिंग की इस प्रतियोगिता में शामिल हो गए हैं। संकेत स्पष्ट है कि राजनीतिक दलों के भीतर टिकिट के लिए भारी खींचतान मची हैं। और कुल मिलाकर यह विधानसभा चुनाव बेहद खर्चीला सिद्ध होने वाला है। दस बिन्दुओं के चुनावी-स्केल पर कांग्रेस 5.50 और बीजेपी 4.50 पर बनी हुई है।