मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान में इस बार के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के ही समीकरण खासे जटिल होते दिखाई दे रहे हैं। दोनों ही दलों में बड़े नेताओं की आपसी खींचतान ने तारों को ऐसा उलझाया है कि इनकी गुत्थी सुलझाना आसान नहीं दिख रहा है। ताजा मामला राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल से जुड़ा है। एक समय बीजेपी के साथ रहे हनुमान बेनीवाल अब कांग्रेस के नजदीक जाते दिख रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि सरकारी विभागों में उनकी मागों की फाइलें सरपट दौड़ रही हैं, लेकिन कांग्रेस और हनुमान के साथ आने में सबसे बड़ा पेंच पश्चिमी राजस्थान में ''जाटों का बड़ा नेता कौन'' की लड़ाई है। पश्चिमी राजस्थान में कांग्रेस के एक बड़े जाट नेता हरीश चौधरी बेनीवाल के साथ आने का खुलेआम विरोध कर चुके हैं, वहीं पश्चिमी राजस्थान में कांग्रेस का दूसरा बड़ा जाट चेहरा दिव्या मदेरणा भी बेनीवाल और कांग्रेस के किसी गठबंधन को आसनी से स्वीकार नहीं करेंगी। ऐसे में सवाल यह है कि जब घर के लोग ही राजी नहीं होंगे तो क्या फिर भी कांग्रेस पार्टी बेनीवाल को अपने साथ लाएगी?
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जाट बैल्ट के नाम से जाना जाता है ये हिस्सा
दरअसल, राजस्थान का पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी हिस्सा जिसमें नागौर से लेकर बाड़मेर-जैसलमेर और सीकर से लेकर बीकानेर तक का हिस्सा आता है, यह जाट बैल्ट के नाम से जाना जाता है। राजस्थान में सबसे ज्यादा जाट बाहुल्य सीटें इसी क्षेत्र में है और राजस्थान में जाटों की पूरी राजनीति इसी क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई पर चलती है। राजस्थान के इस भाग के जाट मूल रूप से कांग्रेस के साथ रहे हैं और इसका एक बड़ा कारण यह रहा है कि पश्चिमी राजस्थान के दो बड़े जाट परिवार हमेशा कांग्रेस के साथ जुड़े रहे हैं। इनमें नागौर का मिर्धा परिवार और जोधपुर का मदरेणा परिवार शामिल है। इसके अलावा बाड़मेर और जैसलमेर में भी जाटों का झुकाव कांग्रेस की ओर ही रहा है।
हनुमान बेनीवाल की जाट परिवारों को को चुनौती
पश्चिमी राजस्थान के पुराने राजनीतिक जाट परिवारों को सबसे बड़ी चुनौती हनुमान बेनीवाल से मिली है। उन्होंने पहले नागौर में मिर्धा परिवार के वर्चस्व को चुनौती दी और फिर अपने दल राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को पूरे पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी राजस्थान तक फैलाया। पिछले चुनाव में पार्टी ने 58 सीटों पर प्रत्याशी खडे़ किए और तीन जीत भी गए। इस बार सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी है और कांग्रेस सरकार में जिस गति से उनके काम हो रहे हैं, वह बताता है कि पार्टी चुनाव में उन्हें अपने साथ लेने की तैयारी कर रही है। इस बारे में जब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा से पूछा गया था तो उन्होंने स्पष्ट रूप से इंकार नहीं किया था और यह कहा था कि यदि वे राष्ट्रीय स्तर पर बन रहे हमारे गठबंधन “इंडिया“ से जुड़ते हैं तो देखा जाएगा।
सरकार में ऐसे हो रहे हैं बेनीवाल के काम
सरकारी विभागों के सूत्र बताते हैं कि लगभग सभी विभागों में बेनीवाल के कामों को प्राथमिकता से पूरा किया जा रहा है। उनके खुद के जिले नागौर में डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन ट्रस्ट (डीएमफटी) में खदानों की रॉयल्टी से जमा होने वाले कोष में से सबसे ज्यादा पैसा बेनीवाल के विधायक भाई नारायण बेनीवाल और पार्टी सरकारी उपमुख्य सचेतक महेन्द्र चौधरी को दिया गया है। नागौर में कुल दस सीटें हैं और बाकी के आठ विधायकों को जिस अनुपात में पैसा मिलना चाहिए उस अनुपात में पैसा नहीं मिला है। खुद कांग्रेस के ही दो-तीन विधायकों ने इसकी पुष्टि की है। परबतसर से कांग्रेस विधायक रामनिवास गावड़िया का कहना है कि डीएमएफटी की राशि क्षेत्र में मौजूद खनन क्षेत्र के हिसाब से बंटनी चाहिए। नागौर को डीएमएफअी का इस वर्ष 22 करोड़ रुपए दिया गया है और मेरे क्षेत्र का हिस्सा करीब 16 प्रतिशत बनता है जो करीब तीन करोड़ होता है, लेकिन मुझे सिर्फ 46 लाख रुपए मिले हैं। वहीं एक अन्य कांग्रेस विधायक मुकेश भाखर का कहना है ऐसा नहीं है कि पैसा नहीं मिला है, लेकिन वे दिखवा रहे हैं कितना मिला है। एक अन्य कांग्रेस विधायक चेतन डूडी ने स्वीकार किया कि पैसा कम मिला है और कुछ जगह तो दिया भी नहीं गया। इसे लेकर उन्होंने चिट्ठी भी लिखी है। इसके अलावा कृषि विपणन विभाग ने भी खींवसर में एक साथ सात सड़कों के निर्माण के लिए करीब साढे़ पांच करोड़ रुपए मंजूर किए हैं। यही स्थिति अन्य विभागों की भी बताई जा रही है।
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इसलिए साथ आना चाहते हैं कांग्रेस और बेनीवाल
इस मामले में सबसे पहले यह जानते हैं कि आखिर बेनीवाल और कांग्रेस साथ क्यों आना चाहते हैं। दरअसल, जरुरत दोनों की है। पिछले चुनाव और इसके बाद हुए उपचुनाव में बेनीवाल की पार्टी ने अच्छा दमखम दिखाया है। पांच उपचुनाावों में तो बेनीवाल के उम्मीदवारों के कारण ही बीजेपी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। ऐसे में कांग्रेस को लग रहा है कि गठबंधन होता है तो भी फायदा है और यदि बेनीवाल कांग्रेस के प्रति झुकाव रखते हैं तो भी फायदा है, क्योकि वे कई सीटों पर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाएंगे और इससे फायदा कांग्रेस को ही होगा। उधर चूंकि कांग्रेस अभी सत्ता में है तो बेनीवाल को पार्टी के विस्तार और अपनी पकड़ मजबूत करने में सहायता मिलेगी। खासतौर पर सांसद के चुनाव में बेनीवाल को फायदा हो सकता है। पिछली बार उन्होंने एनडीए के साथ गठबंधन कर नागौर की संसदीय सीट जीती थी और बीजेपी के वोट उन्हें आसानी से मिल गए थे। इस बार कांग्रेस के साथ जाते हैं तो कांग्रेस के वोटो का साथ उन्हें जिता सकता है।
कांग्रेस के संकेत तो है, लेकिन इसके नेता राजी नहीं दिख रहे
चुनाव में फायदा उठाने के लिए सरकार तो हनुमान बेनीवाल के साथ जाने या उन्हें पक्ष में साधे रखने का संकेत दे रही है। खुद बेनीवाल ने भी हाल में गहलोत के विरोधी रहे पायलट के खिलाफ तीखा बयान दिया है और पायलट को लोग सिर्फ उनके पिता की वजह से जानते हैं, उनका खुद का वजूद नहीं है। पायलट को लेकर उनका यह बयान भी संकेत दे रहा है कि कांग्रेस और बेनीवल के बीच पींगे बढ़ रही हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी के पश्चिमी राजस्थान के जाट नेता शायद इस सम्भावित गठजोड़ को स्वीकार नहीं करेंगे। कम से कम पूर्व मंत्री हरीश चौधरी का बुधवार को दिया गया बयान तो यही संकेत दे रहा है।
हरीश चौधरी बाड़मेर के बायतू से विधायक हैं और बिना किसी बड़ी राजनीतिक पृष्ठभूमि के अपने दम पर आगे बढ़े हैं। वे इस समय पंजाब कांग्रेस के प्रभारी भी हैं और गांधी परिवार के नजदीकियों में उनकी गिनती होती है। वे पश्चिमी राजस्थान में कांग्रेस का तेजी से बढ़ता हुआ जाट चेहरा माने जा सकते हैं।
उन्होंने हनुमान बेनीवाल के साथ गठबंधन की सम्भावनाओं पर कहा कि जो कांग्रेस का व्यक्ति है, वह इस बारे में सोच भी नहीं सकता। इस बारे में वही सोच सकता है जिसने कांग्रेस का “चोला“ पहना हुआ है। इसके साथ ही उन्होंने ज्योति मिर्धा के बीजोपी में जाने को भी पार्टी का बड़ा नुकसान बताया।
दरअसल, हरीश चौधरी और बेनीवाल की राजनीतिक रंजिश बहुत पुरानी है और इस रंजिश के खत्म होने के कोई आसार भी नहीं है। कुछ यही स्थिति पश्चिमी राजस्थान के दूसरे तेजी से बढ़ते जाट चेहरे दिव्या मदेरणा की है। दिव्या मदेरणा कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे परसराम मदेरणा की पोती हैं और अभी ओसियां से कांग्रेस की विधायक है। अपनी पसंद नापसंद खुल कर जाहिर करती हैं। बेनीवाल से उनके रिश्ते भी बहुत अच्छे नहीं हैं। इसका कारण यह भी है कि मिर्धा परिवार के साथ दिव्या मदेरणा की रिश्तेदारी है। हनुमान बेनीवाल के साथ सम्भावित गठबंधन पर हालांकि दिव्या मदेरणा का कोई बयान नहीं आया है, लेकिन यह लगभग तय माना जा रहा है कि दिव्या इसे स्वीकार नहीं करेंगी।
यानी कुल मिला कर देखा जाए तो बेनीवाल यदि कांग्रेस के साथ आते हैं तो ना नागौर का मिर्धा परिवार खुश होगा, ना बाड़मेर के हरीश चौधरी राजी होंगे और ना ही जोधपुर का मदेरणा परिवार आसानी से स्वीकार करेगा। इसके बावजूद यदि कांग्रेस बेनीवाल को साथ लेती है तो आगे पश्चिमी राजस्थान की जाट राजनीति खासतौर पर कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति क्या शक्ल लेगी यह देखना रोचक होगा।