संजय गुप्ता, INDORE. कर्नाटक चुनाव में पटखनी खा चुकी बीजेपी अब मप्र में कोई कसर नहीं रखना चाहती है। पीएम नरेंद्र मोदी की हर बूथ पर पहुंचने की योजना के तहत इंदौर के 28 मंडलों पर करीब सात दिन तक विस्तारक फीडबैक लेने और सर्वे करने के लिए जुटे रहे। इसमें बीजेपी के मौजूदा विधायकों के साथ ही हारे हुए उम्मीदवारों, कौन दावेदार लग रहा है? और कौन क्या काम कर रहा है? पार्टी की स्थिति कैसी है, इस तरह के दो दर्जन से ज्यादा सवालों की सूची पर बूथ स्तर पर जाकर कार्यकर्ताओं से फीडबैक लिया गया है। अब यह रिपोर्ट सीधे दिल्ली सौंपी जाएगी। इसमें सैंकड़ों कार्यकर्ताओं से जानकारी जुटाई गई है। सूत्रों के अनुसार इंदौर में यह 28 विस्तारक मुंबई से आए हुए थे।
विस्तारकों ने यह सवाल पूछे कार्यकर्ताओं से
1- बीजेपी विधायक की क्या मैदानी स्थिति है, यदि हारा हुआ उम्मीदवार है तो उसकी छवि की जानकारी ली गई।
2- इसके साथ ही सामने वाले दल कांग्रेस के विधायक या हारे हुए प्रत्याशी की छवि और उसके कामों की जानकारी ली गई, कि वह कितना मजबूत है
3- विधानसभा के लिए क्या समीकरण है, जातिगत से लेकर अन्य तरह के समीकरणों की स्थिति है
4- जीते या हारे हुए प्रत्याशी के सिवा किस नेता की छवि और आप अच्छी मानते हैं, किन्हें आप विधायक के तौर पर देखना पसंद करेंगे
5- दावेदारों से भी पूछा गया कि यदि आपको टिकट मिलता है तो पार्टी के लिए किस तरह काम करेंगे। यह भी पूछा गया कि यदि टिकट नहीं मिला तो फिर पार्टी के लिए किस तरह से काम करेंगे।
6- आपके क्षेत्र में बीजेपी के अन्य पदाधिकारी पार्षद किस तरह से काम कर रहे हैं
7- पार्टी में आपके क्षेत्र में नेताओं में आपसी विवाद, गुटबाजी तो नहीं है, ऐसा तो नहीं किसी एक को टिकट मिले तो दूसरा उसके खिलाफ काम करेगा।
8- क्या पार्टी के नेता आपसे मिलते रहते हैं, मैदान में आते हैं, आपकी समस्याएं सुनते हैं क्या
9- आपकी समस्याएं दूर करने के लिए शासन, प्रशासन, अधिकारियों से बात की जाती है या नहीं और होती है तो क्या उसका प्रभाव आपको नजर आता है
10- सरकारी योजनाओं का यह लाभ दिला पा रहे हैं या नहीं।
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नेता के ऊपर निर्भर है इंदौर में कार्यकर्ता के काम होंगे या नहीं
सूत्रों के अनुसार इंदौर से यह फीडबैक आया है कि यहां पर यदि अब मजबूत विधायक के साथ जुड़े हुए हैं तो ही कार्यकर्ता का काम होता है और समस्या दूर होती है। लेकिन यदि विधायक की पकड़ कमजोर है तो उसकी सुनवाई नहीं होती है। इंदौर में पार्टी की जगह विधायक के प्रति कार्यकर्ता की प्रतिबद्धता अधिक है, इसलिए वह पार्टी की जगह व्यक्ति विशेष के लिए काम करते हैं।
गुटबाजी और अफसरशाही भी आई नजर
इसके अलावा विस्तारकों को इंदौर में बीजेपी नेताओं के बीच की गुटबाजी भी साफ दिखी। यहां पर कई नेता टिकट के लिए दावेदार है और इनके भी आपस में गुट बने हुए हैं। इसलिए वह एक-दूसरे के हितों के विपरीत चलने में भी संकोच नहीं करते हैं। वहीं नेताओं से भारी अफसरशाही है, नेता की अधिकारियों पर ज्यादा नहीं चलती है।
कर्नाटक में सर्वे दरकिनार करने का खामियाजा भुगत चुकी पार्टी
कर्नाटक में भी इसी तरह के सर्वे हुए और टिकट के लिए दावेदार भी तय हुए लेकिन ऐनवक्त पर बीजेपी में चले गुटीय राजनीति के चलते सर्वे को ताक पर रख दिया गया और टिकट गुटों के आधार पर बंट गए। इस बार मप्र में ऐसा नहीं होने जा रहा है, इसके लिए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्ड़ा से लेकर पीएम मोदी और अमित शाह की तिकड़ी इसी पर काम कर रही है। ऐसे में यह सर्वे सबसे अहम होने जा रहे हैं।
हारे हुए उम्मीदवारों के लिए फीडबैक सही नहीं
सूत्रों के अनुसार विस्तारकों के पास हारे हुए विधायकों के साथ ही कई दावेदारों के लिए फीडबैक सही नहीं आए हैं। कार्यकर्ताओं ने कई जगह फीडबैक दिया कि इन्हें फिर से टिकट मिला तो यह फिर हारेंगे, ऐसे में नए व्यक्ति को ही टिकट दिया जाए। लोग मैदान में उनके साथ घूमने वालों, शासन-प्रशासन से उनके लिए काम करा सकने वाले दमदार व पढ़े-लिखे साफ छवि वाले उम्मीदवारों को पसंद कर रहे हैं। कई कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि कार्यकर्ता केवल चुनाव में ही याद आता है और उसकी कोई पूछपरख नहीं है, ऐसे में हारे हुए नेताओं की भी पूछपरख नहीं होना चाहिए और नए लोगों को ही सामने लाना चाहिए।