BHOPAL. तीन दिसंबर 1984 की भोपाल गैस त्रासदी का मंजर आज भी लोग याद करते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं, इस त्रासदी में जिन लोगों ने अपने परिजनों को खोया था आज भी उन्हें इसे सोचकर डर लगता है। इस बड़े हादसे के 39 साल बीत जाने के बाद भी पीड़ितों को न्याय का इंतजार है। विश्व की सबसे बड़े औद्योगिक हादसे के मामले में शनिवार को जिला न्यायालय में अंतिम सुनवाई हुई। मामले में करीब 5 घंटे तक बहस चली। सुनवाई के बाद कोर्ट ने 18 जनवरी तक फैसला सुरक्षित रखा है। इसके बाद ही कोर्ट अपना फैसला जारी करेगा। लंबे समय से गैस त्रासदी के पीड़ितों को कोर्ट से न्याय की उम्मीद है। बता दे कि गैस कांड के 39 साल बाद भी जिम्मेदार एक भी विदेशी अभियुक्त और विदेशी कंपनी को आज तक सजा नहीं हुई है।
गैस कांड मामले में सुनवाई
भोपाल गैस त्रासदी मामले में गैस पीड़ितों और परिजनों ने याचिका लगाई थी, जिसको लेकर शनिवार को भोपाल के जिला न्यायालय में सुनवाई हुई। JMFC विधान महेश्वरी ने इस मामले में सुनवाई करते हुए 18 जनवरी तक फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट में इस मामले में 5 घंटे बहस चली। डाव केमिकल की तरफ से पक्ष रखने के लिए 15 वकील पेश हुए। इनमें सीनियर अधिवक्ता सिदार्थ लुथरा (भारत सरकार के पूर्व ASG) और रविंद्र श्रीवास्तव शामिल थे। भोपाल ग्रुप फॉर इन्फोर्मेशन एंड एक्शन की तरफ से अवि सिंह और सीबीआई की तरफ से सियाराम मीना ने पैरवी में हिस्सा लिया। पूरी बहस इस बात पर थी कि क्या डीओडब्ल्यू (DOW) केमिकल कंपनी भारत की अदालत के अधिकार क्षेत्र में आती है कि नहीं।
बता दें, इससे पहले पिछली सुनवाई में विशेष न्यायाधीश विधान माहेश्वरी ने डाउ केमिकल्स मामले की सुनवाई की थी। इस सुनवाई में भी डाउ केमिकल्स कंपनी की तरफ से 10 वकील कंपनी का पक्ष रखने के लिए पहुंचे थे। इसके बाद जज ने मामले में अगली सुनवाई के लिए 6 जनवरी 2024 की तारीख दी थी। बता दे कि कंपनी को 39 सालों में कुल सात बार समन भेजा गया है। इसमें 7वां समन तामील हुआ। इसके बाद 39 साल पहली बार कंपनी की ओर से कोई प्रतिनिधि कोर्ट में पक्ष रखने उपस्थित हुआ था। ये मामला अमरीकी संसद में भी उठ चुका है।
पिछली सुनवाई में क्या हुआ था...
मामले में हुई पिछली सुनवाई में भी कंपनी के वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा था कि इस न्यायालय का क्षेत्राधिकार न होने पर आगामी स्तर पर तर्क करना चाहते हैं। साथ ही उन्होंने कहा था कि उनका क्लाइंट एक मल्टी नेशनल अमरीकी कंपनी है। ऐसे में भारत की अदालत उनके ऊपर किसी भी प्रकार का कोई जूरिडिक्शन नहीं रखती है। इस पर भोपाल ग्रुप फोर इन्फोरमेशन एवं एक्शन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अवी सिंह ने आपत्ति जताई थी। सिंह ने कहा था कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 2012 में क्षेत्राधिकार के मुद्दे पर फैसला किया था। इस प्रकार डाउ केमिकल को मामले में आरोपी बनाया जाना चाहिए।
गैस कांड पर एक नजर
1984 में 2 और 3 दरमियानी रात को डाउ केमिकल्स कंपनी की भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कंपनी में एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई थी। कंपनी के कारखाने से एक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। इसे भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी के नाम दिया गया। इस भयावह गैस त्रासदी में हजारों लोगों की जान गई थी। तो वहीं कई लोग शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए थे। कंपनी के टेंक से मिथाइलआइसोसाइनेट (MIC) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया जाता था।
मृतकों का आधिकारिक आंकड़ा अभी कहीं भी मौजूद नहीं है। जिसके चलते अनुमान पर विभिन्न स्त्रोतों की अपनी-अपनी राय होने से इसमें भिन्नता मिलती है। फिर भी पहले अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2259 थी। मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3787 लोगों की गैस से मरने वालों के रूप में पुष्टि की थी।