इंदौर की स्वच्छता पर पहली PHD,प्लेग के समय पहली बार साल 1800 में दिया था सफाई पर ध्यान, इसलिए मिला सफाई सिटी का तमगा

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BP Shrivastava
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इंदौर की स्वच्छता पर पहली PHD,प्लेग के समय पहली बार साल 1800 में दिया था सफाई पर ध्यान, इसलिए मिला सफाई सिटी का तमगा

संजय गुप्ता, INDORE. इंदौर देश में सफाई में छक्का लगा चुका है, छह बार लगातार वह देश में नंबर वन आ चुका है और अब 11 जनवरी को सातंवीं बार पहले नंबर पर आने की भी उम्मीदें बंधी हुई है। उधर, इस सफाई को लेकर पहली बार पीएचडी हुई है। जिसमें बताया गया है कि साल 1800 में पहली बार प्लेग फैलने पर शहर में सफाई पर ध्यान दिया गया। हाल के सालों में शहर ने जो सफलता पाई है, उसकी सबसे अहम वजह है कि राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं हुआ और सभी ने सफाई को लेकर कोई समझौता नहीं किए।

देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी ने कराई है पीएचडी

पीएचडी इंदौर के देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला ने करवाई है। खास बात यह है कि शोध में इंदौर की स्वच्छता का 223 वर्षों का इतिहास सामने आया है। पीएचडी का शीर्षक 'इंदौर शहर में स्वच्छता के प्रति जागरूकता में मीडिया की भूमिका' है। जितेन्द्र जाखेटिया ने यह शोघ किया है। शोध में जाखेटिया ने देश में चल रहे स्वच्छता अभियान पर इंदौर को केंद्रित कर अपना शोधकार्य प्रस्तुत किया। शोध में 700 लोगों, खासकर स्वच्छता कर्मियों से प्रश्नावली भरवाई और 300 किताबों और आलेख का गहन अध्ययन करने के बाद अपना शोध कार्य किया। इंदौर के स्वच्छता अभियान संबंधी सभी कदमों को उपयोगिता के मापदंड पर परखने के लिए मध्यप्रदेश के अन्य 4 शहरों भोपाल, जबलपुर, उज्जैन, ग्वालियर से इंदौर की तुलना भी की गई।

इस तरह सफाई में आगे बढ़ा इंदौर

शोध में इंदौर के पिछले 223 वर्ष के स्वच्छता के इतिहास को विस्तार के साथ उजागर किया गया है । इंदौर मैं स्वच्छता पर पहली बार काम वर्ष 1800 में शुरू हुआ था। 1810 में फैली प्लेग महामारी से लेकर वर्तमान काल तक के स्वच्छता के कार्यों को जगह मिली। राजनीतिक माहौल का भी असर स्वच्छता अभियान पर साफ दिखाई दिया और यह सामने आया की नेता और अन्य राजनीतक संबध वाले लोग अपने करीबियों को कार्रवाई से नहीं बचा रहे थे।

कब से स्वच्छता को मिला बढ़ावा

 वहीं दूसरी तरफ 2014 से सभी नेताओं ने स्वयं स्वच्छता को बढ़ावा दिया और स्वच्छता अभियान में बाधा बनने वाले लोगों का विरोध किया। गंदगी से फैलने वाली बीमारियों को ध्यान में रखकर निजी और सरकारी शौचालयों का निर्माण करवाया, लोगों से कचरा अलग-अलग कर डस्टबिन में डालने का आग्रह किया और मीडिया की मदद से जनता तक सभी जरूरी सूचनाएं पहुंचाई गई।

यह रहा शोध का निष्कर्ष

शोध में यह निष्कर्ष रहा कि मीडिया के माध्यम से ही जनता को हर महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध हुई । जिससे की जनता शिक्षित हुई और एक जन जागरण का आगाज हुआ जिसमे राजनीतिक इच्छाशक्ति भी सम्मिलित हुई। इंदौर को देश का सबसे स्वच्छ शहर बनाने के लिए जनता के व्यवहार में परिवर्तन में इस शहर के प्रिंट मीडिया ने सबसे अहम भूमिका का निर्वहन किया। प्रिंट मीडिया के द्वारा जिस तरह से जनता को शिक्षित और जागरूक करने का काम किया गया उसी का परिणाम है कि वर्ष 2017 में पहली बार जब इंदौर स्वच्छता में नंबर एक बना तो फिर तब से लेकर अब तक नंबर एक की ही स्थिति में है ।

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