/sootr/media/post_banners/5fbad51bd3e88a56051154adc81c7582660f56b4427f3908f595753bcd90c7ef.jpeg)
मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस बार प्रदेश के हर जाति-समुदाय को खुश करने में जुटे हुए हैं। बड़े वोट बैंकों को साधने के लिए ओबीसी आरक्षण बढ़ाने का दांव खेल चुके गहलोत छोटे जाति समुदायों के लिए अलग-अलग बोर्ड बना उन्हें साध रहे हैं। अब तक 20 से ज्यादा नए बोर्ड गठित किए जा चुके हैं। जबकि प्रदेश में पहले ही 13 बोर्ड बने हुए थे।
अब तक प्रदेश में 24 बोर्ड
इन्हें मिलाकर प्रदेश में अब 24 बोर्ड हो चुके हैं। विभिन्न प्राधिकरण, आयोग, निगम, ट्रस्ट आदि अलग है। दिलचस्प बात ये है कि ये सभी 21 बोर्ड पिछले डेढ़ वर्ष के अंतराल में गठित किए गए हैं और इनमें से नियुक्तियां सिर्फ दो में की गई हैं। बाकी सभी के सिर्फ आदेश जारी किए गए हैं। राजस्थान में अब तक जो बोर्ड बने हुए थे उनमें से ज्यादातर जाति समुदाय आधारित नहीं हो कर क्षेत्रों के विकास या सेक्टर्स के विकास से जुड़े हुए थे। ये पहला मौका है कि जब प्रदेश जाति और समुदाय तथा विशेष तरह का व्यवसाय करने वाले समुदायों के लिए बोर्ड बनाए गए हैं। स्थिति ये है कि अब हर छोटा-बड़ा जाति समुदाय सरकार से अपने के लिए अलग बोर्ड की मांग उठाने लगा है।
ब्राह्मणों से लेकर गाड़िया लुहारों तक के लिए बनाए बोर्ड
गहलोत ने जो बोर्ड गठित किए हैं उनमें ब्राह्मणों जैसे बड़े वर्ग से लेकर गाड़िया लुहारों तक के लिए बोर्ड शामिल हैं। प्रदेश का सामजिक ढांचा कुछ ऐसा है कि कुछ व्यवसाय कुछ विशेष जाति समुदायों तक ही सीमित है। जैसे तेल घाणी का ज्यादातर काम तेली समुदाय करता है वहीं सोने-चांदी का काम सुनार समुदाय के लोग करते हैं। गहलोत ने समुदायों के नाम से बोर्ड ना बना कर व्यवसाय के नाम से बोर्ड बना दिए हैं। जैसे स्वर्ण रजत कला विकास बोर्ड या तेली घाणी विकास बोर्ड जिसका सबंध सीधे तौर पर तेली समुदाय से है। इस तरह गहलोत ने उनके व्यवसाय के साथ ही उस समुदाय को साधने का प्रयास किया है।
यह खबर भी पढ़ें...
राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए होंगे ढेरों मौके
गहलोत ने जो भी बोर्ड गठित किए हैं, उनमें से सिर्फ विप्र कल्याण बोर्ड और देवनारायण बोर्ड में ही नियुक्तियां की गई हैं। बाकी सभी बोर्ड गठित करने के सिर्फ आदेश हुए हैं। इनमें किसी की नियुक्तियां नहीं की गई है। ऐसे में चुनाव के बाद जो सरकार बनेगी, उस पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए सरकार में भागीदारी यानी राजनीतिक नियुक्तियों के ढेरों अवसर होंगे। एक बोर्ड में अध्यक्ष सहित औसतन 5 से 7 लोगों की नियुक्ति की गुंजाइश है। ऐसे में एक बार में डेढ़ से 200 कार्यकर्ताओं को एडजस्ट किया जा सकेगा और चूंकि बोर्ड का कार्यकाल अधिकतम तीन वर्ष रखा गया है। ऐसे में सरकार बनते ही नियुक्तियां की जाती हैं तो एक कार्यकाल में 300-400 कार्यकर्ताओं को सरकार में भागीदारी मिल सकती है।
टिकट वितरण की नाराजगी दूर करने का जरिया
चुनाव मे टिकट वितरण के दौरान अक्सर जिन्हें टिकट नहीं मिलता वे नाराज हो जाते हैं। इन बोर्डो के गठन को नाराज कार्यकर्ताओं को सरकार में भागीदारी का दिलासा देने का जरिया भी माना जा रहा है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा कह चुके हैं कि जो कार्यकर्ता अच्छा काम करेंगे, उन्हें सरकार बनते ही राजनीतिक नियुक्तियां दे कर एडजस्ट किया जाएगा। हालांकि, इस मामले में गहलोत का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है। इस बार भी पिछले वर्ष फरवरी यानी 3 साल बाद बोर्ड या निगमों में नियुक्तियां दी गईं थी।
आने वाली सरकार पर बड़ा बोझ
ये बोर्ड आने वाली सरकार पर बड़ा आार्थिक बोझ भी बनेंगे। मौजूदा कांग्रेस सरकार ने पहले से बने जिन बोर्ड निगमों में अध्यक्षों को नियुक्त किया हुआ है, उन्हें राज्यमंत्री और कुछ को तो केबिनेट मंत्री का दर्जा दे रखा है और उनके वेतन भत्ते केबिनेट या राज्य मंत्री जैसे ही हैं। नए बने बोर्डो के लिए सरकार ने अभी कुछ ऐसा तय नहीं किया है, लेकिन आदेश में कहा गया है कि इनके वेतन भत्ते सरकार तय कर सकेगी।
देखिए बोर्ड गठन से सीएम गहलोत ने किन जातियों को साधा
- विप्र कल्याण बोर्ड- ब्राह्मण
इनके अलावा ये बोर्ड भी बनाए
- भिखारियों या निर्धन व्यक्तियों का पुनर्वास बोर्ड
पिछली सरकारों के समय बने हुए थे ये बोर्ड
- राजस्थान स्टेट एग्रो इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बोर्ड
राजस्थान में बने हुए आयोग
- राजस्थान किसान आयोग
इनमें भी होती हैं राजनीतिक नियुक्तियां
- 20 सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन एवं समन्वय समिति