JAGDALPUR/RAIPUR. छ्त्तीसगढ़ परंपराओं और त्योहारों के लिए जाना जाता है। इसी क्रम में जगदलपुर में ऐतिहासिक गोंचा महापर्व मनाया गया। इस मौके पर भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र को 56 भोग लगाया गया। फल, मिठाई, चावल से लेकर कई तरह के भोग लगाकर करीब 615 साल से चली आ रही परंपरा निभाई गई। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी वर्चुअली जुड़े, जबकि स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव कार्यक्रम में पहुंचकर पूरे विधि-विधान से पूजा अर्चना की। इस महापर्व को संबोधित करते हए सीएम भूपेश ने कहा कि इन परंपराओं और संस्कृति-सभ्यताओं से बस्तर का इतिहास समझा जा सकता है।
ओडिशा का गुडिंचा पर्व बस्तर में आकर गोंचा पर्व हो गया
सीएम भूपेश ने कहा कि बस्तर के हजारों रंगों में से एक रंग गोंचा-महापर्व का भी है। यह गोंचा महापर्व आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तो है ही, यह सांस्कृतिक विकास को जानने-समझने के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। गोंचा महापर्व का इतिहास 616 वर्षों से भी पुराना है। ओडिशा का गुडिंचा पर्व बस्तर में आकर गोंचा पर्व हो गया। उन्होंने कहा कि श्रीराम वनगमन पर्यटन परिपथ परियोजना के माध्यम से हम उत्तर से लेकर दक्षिण तक भगवान राम के वनवास से जुड़े स्थलों को चिन्हित करके उन्हें पर्यटन तीर्थों के रूप में विकसित कर रहे हैं। इनमें जगदलपुर और सुकमा जिले का रामाराम भी शामिल है। हाल ही में हमने रायगढ़ में राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का आयोजन किया। इसमें विदेशों की रामलीला मंडलियों ने भी भाग लिया।
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भगवान जिस रथ में भ्रमण करते हैं वह भी अनूठा
बस्तर में जिस अंदाज से गोंचा पर्व मनाया जाता है, वह अंदाज बड़ा ही अनूठा है। भगवान जिस रथ में भ्रमण करते हैं, वह भी बड़ा ही अनूठा है। हमारे देव, हमारी देवगुड़ियां, हमारी मातागुड़ियां केवल आध्यात्मिक महत्व के स्थान नहीं है। ये स्थान हमारे मूल्यों से जुड़े हुए हैं। इसीलिए हमारी सरकार इन स्थानों को सहेजने और संवारने का काम कर रही है।