Jaipur. दिल्ली की तरह राजस्थान में भी राजभवन और सरकार आमने-सामने आ गए हैं। मामला प्रदेश के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति का है। राजस्थाना की 4 अहम यूनिवर्सिटी में वाइस चांसलर की नियुक्तियों में सरकार और राजभवन तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं। राजभवन और सरकार दोनों ही विश्वविद्यालयों में अपने पसंदीदा कुलपति बैठाना चाहते हैं। राजभवन और सरकार के इस मतभेद के चलते मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर, बांसवाड़ा की गुरु गोविंद यूनिवर्सिटी और बीकानेर की महाराजा गंगासिंह यूनिवर्सिटी में कुलपति का एडीशनल चार्ज सौंप दिया गया है।
400 किलोमीटर दूर के वीसी को सौंपा चार्ज
विश्वविद्यालय के नियमों के मुताबिक कुलपति का कार्यकाल पूरा होने तक नया कुलपति नियुक्त नहीं होता तो कार्यवाहक कुलपति को चार्ज दिया जाता है। आमतौर पर नजदीकी विश्वविद्यालय के कुलपति को चार्ज दिया जाता है मगर जोधपुर यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ केएल श्रीवास्तव को 250 किलोमीटर दूर स्थित सुखाड़िया विश्वविद्यालय और 400 किलोमीटर दूर स्थित बांसवाड़ा यूनिवर्सिटी का चार्ज सौंपा गया है।
सरकार के मनपसंद हैं श्रीवास्तव
बताया जा रहा है कि जोधपुर यूनिवर्सिटी के वीसी सरकार के पसंदीदा हैं। इसलिए सुखाड़िया यूनिवर्सिटी की करीबी उदयपुर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वीसी को चार्ज नहीं सौंपा गया। इसी तरह बांसवाड़ा यूनिवर्सिटी के नजदीक उदयपुर यूनिवर्सिटी है लेकिन इसका चार्ज भी श्रीवास्तव को सौंपा है। उदयपुर यूनिवर्सिटी में राजभवन के पसंदीदा कुलपति के काबिज होने की वजह सामने आई है। इसी तरह बीकानेर यूनिवर्सिटी में भी कई समीपस्थ विश्वविद्यालय होने के बावजूद सीक यूनिवर्सिटी के वीसी को चार्ज सौंपा गया।
6 विश्वविद्यालयों में प्रभारी कुलपति
राजस्थान में वर्तमान में 6 ऐसे विश्वविद्यालय हैं जहां स्थाई कुलपति नहीं है। इनमें ट्राइबल यूनिवर्सिटी बांसवाड़ा, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय बीकानेर, सुखाड़िया यूनिवर्सिटी उदयपुर, स्किल यूनिवर्सिटी जयपुर, लॉ यूनिवर्सिटी जयपुर समेत स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी झुंझुनू का नाम शामिल है।
कई बिल रोक सकता है राजभवन
राजभवन और सरकार के बीच खिंची इस तलवार के चलते हाल में विधानसभा में सरकार द्वारा पास किए गए बिलों में रोड़े अटकने का भय है। राजस्थान के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में अब तक राज्यपाल का ही दबदबा रहा है। चर्चा यह भी है कि राज्यपाल उत्तरप्रदेश के हैं इसलिए वे वहां के शिक्षाविदों को ही तरजीह देते हैं, इसलिए सरकार भी अड़ चुकी है। अब देखना यह होगा कि इस लड़ाई का अंत कहां जाकर होता है।