राजस्थान विधानसभा का सत्रावसान नहीं करने पर राज्यपाल की आपत्ति, राष्ट्रपति के कार्यक्रम में बोले- एक ही सत्र को लम्बा ना चलाएं

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BP Shrivastava
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राजस्थान विधानसभा का सत्रावसान नहीं करने पर राज्यपाल की आपत्ति, राष्ट्रपति के कार्यक्रम में बोले- एक ही सत्र को लम्बा ना चलाएं

JAIPUR. सत्रावसान किए बिना ही वर्ष में दो-तीन बार विधानसभा की बैठकें बुलाने पर राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र की आपत्ति शुक्रवार (14 जुलाई) को खुल कर सामने आ ही गई। विधानसभा में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के सम्बोधन के मौके पर राज्यपाल ने  कहा कि विधनसभा के एक ही सत्र को लंबा नहीं चलाएं, सत्रावसान की कार्यवाही भी समय पर हो, इसकी आज सख्त आवश्यकता है। इसके साथ ही उन्होंने सदन में बार-बार हंगामे को भी अनुचित बताया।



राजस्थान विधानसभा का सत्र शुरू



राजस्थान विधानसभा का सत्र आज यानी शुक्रवार (14 जुलाई) से शुरू हुआ है और इसकी शुरूआत राष्ट्रपति के संबोधन से हुई है। इसी मौके पर राज्यपाल कलराज मिश्र का संबोधन भी हुआ था। उन्होंने कहा कि सदन में नियमों और प्रक्रियाओं का ध्यान रखा जाए। सदन चलना चाहिए। सदन की बैठकें समय पर आहूत हों। सत्रावसान की कार्रवाई हो। एक सत्र को लम्बा नहीं चलाया जाए।



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सदन की मर्यादा बनाए रखें



उन्होंने पर कहा कि विधानसभा में कई बार देखते हैं कि कुछ विधायक सदन में गरिमा से आचरण नहीं करते हैं। हंगामा करते हैं। यह आचरण ठीक नहीं है। इससे सदन का कीमती समय खराब होता है और निर्णय नहीं हो पाते हैं। सदन में बोले जाने वाला एक-एक शब्द महत्वपूर्ण होता है। सदन की मर्यादा के लिए सभी स्तरों पर काम करना चाहिए। अपनी बात रखें, मजबूती से रखें, लेकिन दूसरे पक्ष को सुनने के लिए भी तत्पर रहें। जब हम अपने विरोधी की बात सुनने से इनकार कर देते हैं तो उसका अर्थ है कि हम विवेक और तर्क का द्वार बंद कर रहे हैं। दूसरे पक्ष के प्रति किसी तरह का पूर्वाग्रह ना रखें। 



राज्यपाल ने कहा कि इस सदन के सभी सदस्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे सदन की मर्यादा को कायम रखते हुए काम करें। लोकतंत्र की असली ताकत सिर्फ जनता है। इसलिए हमारा सर्वोच्च कर्तव्य भी है कि जनता की अपेक्षाओं पर खरे उतर कर काम करें।



क्यों सामने आई राज्यपाल की आपत्ति



दरअसल, राजस्थान में पिछले तीन वर्ष से ऐसा हो रहा है कि सरकार साल के शुरू में बजट सत्र आहूत करती है, लेकिन इसका समय पर सत्रावसान नहीं कराती है और सितम्बर-अक्टूबर में जब फिर से सत्र बुलाना होता है तो उसी बजट सत्र को आगे बढ़ा दिया जाता है। इससे सरकार को सत्र आहूत करने के लिए राज्यपाल की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं पड़ती है। लेकिन इसका असर यह होता है कि संवैधानिक प्रमुख होने के नाते राज्यपाल की भूमिका गौण हो जाती है, क्योंकि विधानसभा का सत्र सरकार अपनी सुविधा के अनुसार बुला लेती है।



विधायकों को नहीं मिलता ज्यादा सवाल पूछने का मौका



एक ही सत्र को लम्बा चलाने की प्रवृत्ति से विधायकों को सवाल पूछने का मौका भी नहीं मिल पाता। इसका कारण यह है कि एक सत्र में विधायक अधिकतम 100 तारांकित प्रश्न पूछ सकता है और चूंकि बजट सत्र लम्बा चलता है, इसलिए सक्रिय विधायकों, विशेषकर विपक्ष के विधायकों के ज्यादातर प्रश्न बजट सत्र में ही पूरे हो जाते हैं। ऐसे में जब सितम्बर-अक्टूबर में फिर से विधानसभा की बैठकें होती हैं तो उनके पास पूछने के लिए ज्यादा कुछ बचता नहीं है। इसे लेकर भाजपा के विधायक आपत्ति भी कर चुके हैं और राज्यपाल तक भी अपनी आपत्ति पहुंचा चुके हैं।



राजनीतिक संकट के समय निकाला सरकार ने ये रास्ता



एक ही सत्र को पूरे साल खींचने और सत्रावासन नहीं करने का रास्ता राजस्थान की कांग्रेस सरकार को अपने राजनीतिक संकट के कारण निकालना पड़ा। दरअसल 2020 में सरकार बजट सत्र का सत्रावसान करा चुकी थी। जुलाई 2020 में जब सरकार पर बगावत का संकट आया तो सरकार अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए आनन-फानन में सत्र बुलाना था, लेकिन राज्यपाल कलराज मिश्र ने नोटिस अवधि के नियम का हवाला देते हुए सत्र आहूत करने से मना कर दिया। इसके विरोध में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस के विधायकों को राजभवन में धरना तक देना पड़ा था। अगले वर्ष 2021 में भी बगावत का संकट मंडरा रहा था, ऐसे में सरकार ने सावधानी बरतते हुए सत्रावसान ही नहीं कराया और बजट सत्र को ही जारी रखा और तब से अब हर बार यही किया जा रहा है।


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