JABALPUE/ BHOPAL. साल 1984 में हुई भोपाल गैस त्रासदी के बाद सिस्टम की लापरवाही पर जबलपुर हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने 11 साल पहले 9 अगस्त 2012 को भोपाल गैस पीड़ितों के अस्पताल और अन्य निर्धारित अस्पतालों को सुविधा, विशेषज्ञों और डॉक्टरों की नियुक्ति के अलावा मरीजों के रिकॉर्ड के डिजिटलाइजेशन के निर्देश दिए थे, लेकिन अभी तक गैस राहत अस्पतालों में 76 प्रतिशत विशेषज्ञ और 50 प्रतिशत डॉक्टरों के पद खाली हैं। साथ ही मरीजों के रिकॉर्ड का डिजिटलाइजेशन नहीं हुआ।
1247 पदों में से 498 पद भरे गए
जानकारी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने गैस राहत पीड़ितों को सुविओं और अन्य व्यवस्थाओं की मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी एक समिति के माध्यम से हाईकोर्ट को दी थी। कोर्ट में पेश मॉनिटरिंग कमेटी की रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि तकनीकी और गैर तकनीकी 1,247 पदों के एवज में मात्र 498 पद ही भरे जा सके हैं।
डिजिटलाइजेशन पूरा नहीं होने पर भी नाराजी जताई
बताते हैं 3.41 लाख गैस पीड़ितों के स्मार्ट कार्ड जारी हो चुके हैं, लेकिन अभी भी कई व्यवस्थाएं संतोषजनक नहीं हैं। जस्टिस शील नागू और जस्टिस देवनारायण मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह निराशाजनक है। साढ़े 10 साल से अधिक समय के बाद भी डिजिटलाइजेशन पूरा नहीं हुआ। ऐसे में सभी प्रतिवादियों के खिलाफ क्यों न अवमानना की कार्रवाई की जाए। हाईकोर्ट ने मामले पर अगली सुनवाई 16 जनवरी 2024 तय की है।