मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव कैसे बने BJP की पहली पसंद, ये हैं तीन खास खास वजह?

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव कैसे बने BJP की पहली पसंद, ये हैं तीन खास खास वजह?

BHOPAL. मध्यप्रदेश के नए मुखिया बने हैं मोहन यादव और दो डिप्टी सीएम बने हैं राजेंद्र शुक्ल और जगदीश देवड़ा। इस फैसले के साथ बीजेपी ने फिर वही किया जो वो हमेशा से करती आई है। अपने हर फैसले से चौंकाना और सारे सवालों को बिना जवाब दिए ही खत्म कर देना। मोदी, शाह और नड्डा की बीजेपी का यही अंदाज रहा है। और, मध्यप्रदेश में वही हुआ भी है।

तीन बार विधानसभा का चुनाव जीते मोहन यादव

शिवराज सिंह चौहान इस बार सीएम नहीं बनेंगे, ये तय था। इसके बावजूद अटकलों के बाजार में उनका नाम गुम नहीं हुआ था। कहीं न कहीं से ये सुगबुगाहट शुरू हो ही जाती थी कि शिवराज सिंह को फिर मौका मिल सकता है। इसके अलावा मोदी कैबिनेट का हिस्सा रहे नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल इस पद की रेस में सबसे आगे माने जा रहे थे। इसके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया और वीडी शर्मा का नाम भी बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा था। मध्यप्रदेश में पर्यवेक्षक आए। विधायक दल की बैठक शुरू हुई। तब उम्मीद इन्हीं में से किसी नाम के ऐलान की थी, लेकिन जो हुआ वो उम्मीद से बिलकुल परे था। तीन बार विधानसभा का चुनाव जीते मोहन यादव को शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी सौंप दी गई। और उनसे कहीं ज्यादा वरिष्ठ दो विधायकों को डिप्टी सीएम का पद दिया गया है।

भारी चेहरों के बीच मोहन यादव के चेहरे पर मोहर कैसे

इसके बाद से ये सवाल उठ ही रहे हैं कि आखिर मोहन यादव को अचानक बीजेपी ने कैसे चुन लिया। 163 विधायकों की लंबी चौड़ी फौज। जिसमें नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, जयंत मलैया, गोपाल भार्गव, खुद राजेंद्र शुक्ल, जगदीश देवड़ा जैसे सीनियर नाम शामिल हैं। उन बड़े भारी चेहरों के बीच बीजेपी ने आखिर मोहन यादव के चेहरे पर मोहर कैसे लगा दी।

मोहन यादव के सुरेश सोनी से उनके घनिष्ठ संबंध रहे हैं

बीजेपी की इस पसंद का सियासी समीकरण काफी गहरा है। जिसका एक सबसे बड़ा फैक्टर है संघ से करीबी। मोहन यादव संघ के करीबी और पुराने कर्मठ कार्यकर्ताओं में से एक हैं। जो संघ के प्रमुख नेताओं में शामिल भैयाजी जोशी और सुरेश सोनी के बेहद करीबी हैं। मोहन यादव का ससुराल राजगढ़ से है। इस नाते सुरेश सोनी से उनके घनिष्ठ संबंध रहे हैं। धर्मेंद्र प्रधान से भी उनका लंबा नाता रहा है। इसके अलावा पार्टी प्रमुख यानी कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से उनके पारिवारिक संबंध रहे हैं।

मोहन यादव एक निर्विवादित चेहरा हैं

मध्यप्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य की कमान थामने के लिए इतनी ही क्वालिटी होना काफी नहीं है। मोहन यादव को सीएम बनाने से पहले बीजेपी ने और भी पहलुओं पर विचार किया है। जिसमें से एक है मोहन यादव का किसी खेमे का हिस्सा न होना। यादव तीन बार से विधायक हैं, लेकिन पिछले पंद्रह सालों से उन पर किसी एक खेमे का ठप्पा नहीं लग सका। वो न शिवराज खेमे के माने जाते हैं। मालवा से होकर भी उनका विजयवर्गीय खेमे से कोई गहरा ताल्लुक नहीं है। न ही वो उमा भारती खेमे के नेता रहे हैं न ही सिंधिया खेमे से उनका कोई लेना देना है। इस नाते मोहन यादव एक निर्विवादित चेहरा हैं। जिन पर एतराज होने की गुंजाइश न के बराबर है।

देवड़ा के बहाने दलित वर्ग को भी आगे रखा है

इसके अलावा मोहन यादव के चेहरे के सहारे बीजेपी ने ओबीसी फेक्टर को भी साध ही लिया है। जिस ओबीसी मुद्दे को कांग्रेस ने देशभर में जिलाए रखा है उसे मध्यप्रदेश में फिर बीजेपी ने निल कर दिया है। बीजेपी की सरकार जब से प्रदेश में सत्ता में आई है तब से ओबीसी या पिछड़ा वर्ग को ही नेतृत्व की कमान मिलती आई है। उमा भारती, बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह चौहान और अब मोहन यादव भी ऐसा ही चेहरा हैं जो विपक्ष की एक और चाल को कमजोर तो कर ही रहे हैं। पिछड़े वर्ग को भी पहचान दे रहे हैं। उनके साथ राजेंद्र शुक्ल को डिप्टी सीएम का पद देकर ब्राह्मण और विंध्य के वोटर्स का मान बढ़ाया है। जगदीश देवड़ा के बहाने दलित वर्ग को भी आगे रखा है। अब जरा तफ्सील से नजर डालते हैं मोहन यादव के सियासी सफर पर। मोहन यादव ने साल 1982 में छात्र जीवन से ही राजनीति की दुनिया में कदम रख दिया था। वो माधव विज्ञान महाविद्यालय छात्रसंघ के सह-सचिव बने। इसके बाद वो 1984 में यहीं अध्यक्ष बने और इसी साल अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए और नगर मंत्री बने। 1988 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद मध्यप्रदेश के प्रदेश सहमंत्री एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और 1989-90 में परिषद की प्रदेश इकाई के प्रदेश मंत्री रहे। 1991-92 में उन्हें परिषद का राष्ट्रीय मंत्री बनने का मौका मिला।

पर्यटन विकास के लिए उन्हें राष्ट्रपति ने भी पुरस्कार दिया

इसके बाद उनकी जड़े आरएसएस में गहरी होती गईं। साल 1993 से 95 तक वो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह खंड कार्यवाहक रहे। साल 1997 में वो भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़े। इसके बाद वो अलग-अलग समिति और पदों में रहे। साल 2000 से उनका सफर बीजेपी के साथ शुरू हुआ। जब वो निगर जिला महामंत्री बने। 2004 में उन्हें प्रदेश कार्यसमिति का सदस्य बनने का मौका मिला। 2004 से 2010 में उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष भी रहें। अलग-अलग पदों पर रहते हुए मोहन यादव हमेशा ही उज्जैन के विकास के प्रति रुझान रखते रहे। जिसकी वजह से उन्हें अप्रवासी भारतीय संगठन शिकागो ने उन्हें महात्मा गांधी पुरस्कार और इस्कॉन इंटरनेशनल फाउंडेशन ने सम्मानित भी किया। मध्यप्रदेश में पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष रहते हुए पर्यटन विकास के लिए उन्हें राष्ट्रपति ने भी पुरस्कार दिया। साल 2013, 2018 और 2023 में मोहन यादव विधायक का चुनाव जीते। और, अब प्रदेश की कमान उनके हाथ है। उम्मीद यही जताई जा रही है कि अपनी बाकी उपलब्धियों की तरह वो इस पद पर रहते हुए भी ऐसे ही कामों को अंजाम देंगे। हालांकि, अभी लोकसभा की चुनौती उनके सामने है। उससे पहले लोकसभा छोड़ कर बतौर विधायक अपने सदन में बैठने वाले दिग्गजों को साधना भी उनके लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।

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