JAIPUR. केंद्र सरकार ने कोचिंग संस्थानों के लिए लागू किए नए नियमों में 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों की कोचिंग पर रोक तो लगा दी है, लेकिन इस समस्या की मूल जड़ है डमी स्कूलों का गड़बड़ी और इस व्यवस्था को सुधारने के लिए इसमें कोई खास प्रावधान नहीं किया गया।
क्यों पनप रही है डमी स्कूलों की व्यवस्था
राजस्थान में कोटा कोचिंग का सबसे बड़ा केंद्र है और यहां डमी स्कूलों की व्यवस्था लंबे समय से चली रही है, लेकिन इसे देखने वाला कोई नहीं है और अब तो कोटा ही नहीं अन्य शहरों में भी ये व्यवस्था पनप रही है। शिक्षा विभाग सिर्फ स्कूलों को मान्यता देता है। माध्यमिक शिक्षा बोर्ड संबद्धता दे देता है, लेकिन इन स्कूलों में कक्षाएं लग रही या नहीं, इसे देखने की कोई व्यवस्था नहीं है। शिक्षा विभाग के अधिकारी इन स्कूलों की मॉनिटरिंग ही नहीं करते हैं और नियमित निरीक्षण की भी कोई व्यवस्था नहीं है। सिर्फ कोई शिकायत मिलने पर कार्रवाई की जाती है। विभाग की ओर से निचले स्तर के अधिकारियों को निरीक्षण के जो निर्देश प्रदान किए जाते है, उनमें भी निजी स्कूलों के लिए कोई निर्देश नहीं होते। यही कारण है कि डमी स्कूलों की व्यवस्था इतनी आसानी से पनप गई है।
क्या हैं डमी स्कूल
डमी स्कूल वे स्कूल हैं जो छात्रों को प्रवेश तो देते है, लेकिन इन छात्रों की पढ़ाई कोचिंग संस्थान में होती है। जब परीक्षा का समय आता है तो इनके फॉर्म इसी स्कूल के नाम पर भरे जाते है, क्योंकि बोर्ड में ये स्कूल ही पंजीकृत होता है और जब बच्चा स्कूल छोड़ता है तो टीसी भी दी जाती है, लेकिन पढ़ाई का मुख्य काम कोचिंग में ही होता है। इसके बदले स्कूल संचालक बच्चों से भी फीस लेते हैं और कोचिंग संस्थानों से भी निश्च्ति राशि लेते हैं।
ये नई व्यवस्था भी पनप गई है
लंबे समय तक सरकारी स्कूल शिक्षक रहे शिक्षाविद् रामकृष्ण अग्रवाल बताते हैं कि अब कई निजी स्कूलों में एक नई व्यवस्था भी शुरू हो गई है। इसके तहत स्कूल संचालक इंजीनियरिंग या मेडिकल की तैयारी कराने के नाम पर कोचिंग संस्थानों से शिक्षकों को बुला कर पढ़ाई कराते हैं। इससे स्कूल ही अब कोंचिंग संस्थानों में तब्दील हो रहे हैं। ऐसे में सरकार ने जो 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कोचिंग नहीं कराए जाने का नियम लागू किया है, उसका रास्ता भी निकाल लिया गया है।
शिक्षा विभाग मॉनिटरिंग करे तो बात बने
रामकृष्ण अग्रवाल कहते हैं कि ये समस्या बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत गंभीर है और इसका एकमात्र उपाय यही है कि सरकार निजी स्कूलों को सिर्फ मान्यता या संबद्धता देने तक ही सीमित ना रहे, बल्कि इनका नियमित निरीक्षण भी कराए। सत्र के दौारान कम से कम दो बार ये देखा जाए कि जितने बच्चों का एनरोलमेंट दिखाया गया है, उतने बच्चे स्कूल में आ रहे हैं या नहीं। सरकार जब तक मॉनिटरिंग का सिस्टम नहीं सुधारेगी, तब तक कोचिंग संचालक सुधरने वाले नहीं है और वे नियमों से बचने के लिए नए रास्ते खोजते रहेंगे।