BHOPAL. तारीख 15 नवंबर। दो चुनावी राज्यों मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार का ये अंतिम दिन था। इन दोनों ही राज्यों के चुनाव में ताबड़तोड़ रैलियां करने वाले, भारतीय जनता पार्टी के प्रचार अभियान में सबसे आगे रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रचार के अंतिम दिन इन दोनों ही राज्यों से कहीं दूर झारखंड में थे। झारखंड में कोई चुनाव नहीं था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस राज्य के खूंटी जिले में थे। आपका क्या लगता है मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव के आखिर दिन पीएम मोदी का झारखंड में होना क्या बेमानी है। भले ही झारखंड कोसों दूर हो क्या उस प्रदेश में पीएम की मौजदूगी का असर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की राजनीति पर पड़ता है।
बिलकुल पड़ता है... कैसे ये मैं आपको बताता हूं। पीएम मोदी उन सियासतदानों में से एक है जिनका हर कदम हजार मंजिलें तय करता है। वो अगर झारखंड में भी हैं तो मकसद मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के वोटर्स को साधना ही है। अब आप ये भी सोच सकते हैं कि विधानसभा की बातें पुरानी हो चुकी हैं। अब मौका लोकसभा का है तब मैं ये पुरानी बातें लेकर क्यों बैठा हूं। इसकी वजह भी बताता हूं। बस आप सुनते चलिए। खासतौर से अब जो मैं बताने जा रहा हूं पहले तो उस घटनाक्रम को देखिए।
कुछ सोशल मीडिया पोस्ट के बारे में
असल में घटनाक्रम क्यों, मैं तो आपको कुछ सोशल मीडिया पोस्ट के बारे में बताने जा रहा हूं। इन पोस्ट को आप आम पोस्ट या सोशल मीडिया के मीम या फिर वॉट्सएप यूनिवर्सिटी कहे जाने वाले कुछ पोस्ट मत समझिए। ये गंभीर हैं। गंभीर इस लिहाज से क्योंकि फेसबुक पर ये पोस्ट करने वाला कोई आम व्यक्ति या सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर नहीं है। ये पोस्ट करने वाले शख्स मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ओएसडी रहे हैं। नाम है लक्ष्मणराज सिंह मरकाम। मध्यप्रदेश की अफसर बिरादरी में लक्ष्मण सिंह को किसी पहचान की जरूरत नहीं है। रसूख का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि फिलहाल सीएम हाउस में उच्च पद पर आसीन हैं।
एस पोस्ट में लिखा- कैसे एक जमीन जबरन वक्फ की हो गई
खैर अब उनके पद की बात नहीं करते। बात करते हैं उन पोस्ट की, जो जब निकलेगी तो बहुत दूर तलक जाएगी। लक्ष्मण राज सिंह मरकाम पिछले कुछ समय से अपने फेसबुक पर लगातार आदिवासियों के हक में कुछ जरूरी पोस्ट कर रहे हैं। मसलन उनका एक पोस्ट सवाल उठा रहा है कि कैसे एक जमीन जबरन वक्फ की हो गई। इस पोस्ट में मंडला जिले की जमीन का हवाला देते हुए आंकड़े भी दिखाए गए हैं। एक पोस्ट में उनका सवाल है कि 1994 में बना पंचायती एक्ट, आदिवासी अनुसूचित क्षेत्र में लागू नहीं हो सका। उसके लिए संसद में 1996 में पेसा एक्ट बनाना पड़ा, जबकि 1995 में बना वक्फ एक्ट बिना संसद की अनुमति के कैसे अनुसूचित क्षेत्र में लागू हो गया। इससे पहले उन्होंने एक पोस्ट और किया था जिसमें लिखा था कि देश के किसी भी कोने में यदि आदिवासी अनुसूचित क्षेत्र में यदि वक्फ बोर्ड की कोई भी संपत्ति है तो सूचित करें, हमारी लीगल टीम सहयोग करेगी उसे हटाने में। एक अन्य पोस्ट में उन्होंने वक्फ बोर्ड से पेसा क्षेत्र में स्थित जमीन वापस लौटने के लिए भी कहा है। अपने हर पोस्ट में लक्ष्मण सिंह ने संबंधित अनछुए और दूसरे बारीक तथ्यों का भी पूरा ध्यान रखा है।
उनके हर पोस्ट में विद्रोह का पुट नजर आता है
आदिवासी तबके से आने वाले प्रदेश के एक सीनियर अफसर ने वक्फ बोर्ड के खिलाफ मुहिम सी चला रखी है। सत्ता के नजदीक रहते हुए उनके हर पोस्ट में विद्रोह का पुट साफ नजर आता है। तो क्या आपको लगता है कि ये विद्रोह सरकार के खिलाफ है या सरकार की नाक के नीचे रह कर सरकार से ही कोई डिमांड है। इन पोस्ट को देखने और समझने का ये नजरिया है तो ये गलत है। ये पोस्ट अपनी ही सरकार को नुकसान पहुंचाने के इरादे से नहीं की गई हैं। अफसर होने के नाते और आदिवासी समाज से ताल्लुक होने की वजह से लक्ष्मण सिंह ये बातें लिख रहे हैं। इसके पीछे लक्ष्मण सिंह का खुद कोई सियासी मकसद हो या न हो लेकिन बीजेपी को जरूर इससे फायदा हो सकता है। या, एक पहलू ये भी हो सकता है कि खुद बीजेपी ने प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से लक्ष्मण सिंह को ये जिम्मेदारी सौंपी होगी।
पीएम ने खूंटी से विकसित भारत संकल्प यात्रा की शुरुआत की
अब इस जिम्मेदारी के मायने समझने के लिए आपको एक बार फिर पीएम मोदी के झारखंड दौर की याद दिलाता हूं। दरअसल, 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती थी और पीएम मोदी खूंटी जिले में स्थित उनके गांव उलिहातु पहुंचे थे। पीएम मोदी ने खूंटी से विकसित भारत संकल्प यात्रा की शुरुआत की, आदिवासी कल्याण के लिए 24 हजार करोड़ रुपए की परियोजनाओं की सौगात दी। बिरसा मुंडा को आदिवासी समाज में भगवान का दर्जा प्राप्त है। ऐसे में पीएम मोदी का ये दौरा ट्राइबल पॉलिटिक्स कहा जा सकता है। चुनावी नतीजे बताते हैं कि पीएम का ये दांव रंग लाया और इसका असर तीनों राज्यों की एसटी के लिए आरक्षित सीटों पर भरपूर नजर आया।
बीजेपी में शिफ्ट करने आदिवासियों का दिल जीतना ही होगा
सारा खेल प्रदेश की आदिवासी सीटों और आदिवासी मतदाताओं को रिझाने का ही था। बेसिकली बात करें तो आदिवासी वोटर, कांग्रेस का कोर वोटर रहा है। बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति आदिवासियों पर काम नहीं करती है। उनका अलग धर्म है और अलग ही भगवान हैं। जमीन से जुड़े इस तबके को डिगा पाना इतना आसान नहीं है। बार-बार लगातार जीतना है तो इस तबके के वोटबैंक को बीजेपी में शिफ्ट करना है तो आदिवासियों का दिल जीतना ही होगा। बीजेपी ये खूब अच्छी तरह समझ चुकी है। यही वजह है कि विधानसभा चुनाव से तकरीबन साल भर पहले से ही आदिवासियों को रिझाने की कोशिशें शुरू हो चुकी थीं।
पार्टी ने आदिवासियों को पार्टी से जोड़ने कई दांव चले
2018 के चुनाव में एसटी बेल्ट में करारी शिकस्त के बाद बीजेपी ने रणनीति में बदलाव किया। पार्टी ने आदिवासियों को पार्टी से जोड़ने के लिए एक के बाद एक, कई दांव चले। इसकी शुरुआत राष्ट्रपति चुनाव से ही हो गई थी। राष्ट्रपति चुनाव के लिए बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया। द्रौपदी मुर्मू देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति हैं। बीजेपी ने इसके बाद मध्य प्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ तक, आदिवासी प्रतीकों को लेकर मुहिम शुरू की। भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर करने के साथ ही रानी दुर्गावती गौरव यात्रा निकाली। बिरसा मुंडा की जयंती को राष्ट्रीय स्तर पर जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाना शुरू किया। जबलपुर में सरकार ने शंकर शाह-रघुनाथ शाह के नाम पर स्मारक भी बनवाया। बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में भी आदिवासियों को साधने के लिए पुरखौती सम्मान यात्रा निकाली। अंत में मोदी के खूंटी दौरे ने आदिवासी समाज को बड़ा संदेश दे दिया और पार्टी तीनों ही राज्यों में एसटी लैंड से बड़ी लीड लेने में सफल रही।
पार्टी इस बार 24 सीटें जीतने में सफल रही है
हिंदी पट्टी के तीनों चुनावी राज्यों में एसटी के लिए आरक्षित सीटों पर बीजेपी का प्रदर्शन जबरदस्त रहा। मध्य प्रदेश में एसटी के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। 2018 के चुनाव में बीजेपी इन एसटी आरक्षित सीटों में से 16 ही जीत सकी थी। पार्टी इस बार 24 सीटें जीतने में सफल रही है। इसी तरह बीजेपी छत्तीसगढ़ की एसटी आरक्षित 29 में से महज तीन सीटें ही जीत सकी थी। वहीं, पार्टी इस बार 17 सीटों पर विजयी रही है। अब यही प्रदर्शन बीजेपी लोकसभा में भी दोहराना चाहती है। मध्यप्रदेश से बीजेपी के खाते में 28 सीटें हैं अब पूरी 29 जीतने का प्लान है और लोकसभा में चार सौ पार करने का नारा है।
लक्ष्मण सिंह के पोस्ट ही इस मुहिम का आधार बनेंगी
आदिवासी वोटर्स को रिझाने की इस जंग में एक अफसर के ये पोस्ट बीजेपी के लिए क्या फायदेमंद साबित हो सकते हैं। आदिवासियों के बीच में जाकर बीजेपी के नेता, खुद सीधे जो मुहिम नहीं छेड़ पा रहे वो लक्ष्मण सिंह के पोस्ट की बदौलत पूरी हो जाए तो क्या हर्ज है। लक्ष्मण सिंह के पोस्ट ही इस मुहिम का आधार बनेंगे तो वक्फ बोर्ड और माइनोरिटी के नाराज होने का खतरा भी नहीं होगा। और, बीजेपी के लिए तो ये वही बात हुई कि सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। यानी आदिवासियों के हक का मुद्दा भी सुर्खियों में बना रहेगा और वक्फ बोर्ड की नाराजगी भी बीजेपी के सिर नहीं मड़ी जाएगी।