संजय गुप्ता, INDORE. कालिंदी गोल्ड, फोनिक्स और सेटेलाइट हिल्स को लेकर इंदौर हाईकोर्ट कमेटी की रिपोर्ट ऑनलाइन आ गई है। इस 19 पन्नों की रिपोर्ट में बताया गया कि कुल 254 शिकायतें कमेटी को मिली जिसमें से वह 137 का निराकरण कर सके हैं। तीनों कॉलोनियों को लेकर रिपोर्ट में आए बिंदुओं से साफ होता है कि जिला प्रशासन की कमेटी की तरह ही भूमाफियाओं ने अपने तकनीकी पेंच के चलते हाईकोर्ट के रिटायर जज ईश्वर सिंह श्रीवास्तव की कमेटी की पुरजोर कोशिशों को भी पतीला लगा दिया और दूसरों पर जिम्मेदारी ढोलकर बच निकलने का रास्ता निकाला।
चंपू ने इस तरह गर्ग, अग्रवाल, चिराग, लिक्विडेटर पर डाली जिम्मेदारी
चंपू अजमेरा ने कालिंदी गोल्ड में अपना कोई हिस्सा होने से ही इंकार कर दिया। साथ ही योगिता अजमेरा, पवन अजमेरा की ओर से खुद ही पूरे मामले को निराकरण की जिम्मेदार ली। फोनिक्स में चंपू ने प्रदीप अग्रवाल पर 23 प्लाट और रमेश मित्तल पर 31 प्लाट की जिम्मेदारी डालते हुए अपना पन्ना झाड़ लिया। साथ ही चिराग शाह पर 23 केस की जिम्मेदारी डाली और वहीं लिक्वीडेटर के कारण 22 केस का निराकरण नहीं होने की बात कही। यानि यहां कोई भी निराकरण का रास्ता नहीं निकला है और फोनिक्स के मामले मित्तल, अग्रवाल, लिक्विडेटर के बीच उलझ गए हैं, जिसमें कमेटी ने हाईकोर्ट के ही वैधानिक मामले पर विचार कर फैसला ले सकने की बात कही है। सूत्रों के अनुसार चंपू ने जो भी निराकरण बताए उसमें अधिकांश वह केस हैं जो योगिता अजमेरा की जमानत (सुप्रीम कोर्ट केस) के पहले से ही सेटलमेंट में चल रहे थे और 90 फीसदी सेटलमेंट हो चुके थे इनके केवल एक-दो लाख रुपए ही बाकी थे, चंपू ने चालाकी दिखाते हुए इन सभी को कमेटी के सामने पेश कराया और एक-दो लाख रुपए जो बकाया था उनकी अदायगी की बात कही और केसों का निराकरण करना बता दिया गया।
चिराग और हैप्पी ने कमेटी के सामने यह किया
उधर चिराह शाह ने कालिंदी में ही सैटलमेंट की बात कही है और कुछ केस में सेटलमेंट आपसी समझौते से होने की जानकारी कमेटी को दी गई है। लेकिन चिराग ने फोनिक्स में किसी भी केस में अपनी जिम्मेदारी होने की बात सिरे से खारिज कर दी है और कोई भी जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया है, जिस पर चंपू 23 केस की जिम्मेदारी चिराग पर डाल रहा था। वहीं हैप्पी धवन के डायरियों के केस में हैंडराइटिंग एक्सपर्ट की रिपोर्ट आने के बाद भी धवन ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया और इस पर आपत्ति ली है। वहीं कुछ डायरियां फर्जी पाने की बात कमेटी ने लिखी है, कुछ दस्तावेज कलर्ड फोटोकॉपी वाले पाए गए जिसे भी कमेटी ने अमान्य किया।
सेटेलाइट और फोनिक्स में निराकरण जैसी कोई बात नहीं हुई
कमेटी ने साफ लिखा है कि सेटेलाइट में कोई निराकरण नहीं हुआ है। यहां पर जमीन को लेकर कैलाश गर्ग और चंपू के बीच में सालों से विवाद चल रहा है। इसी मामले में गर्ग ने चंपू को कमेटी के सामने ही गालियां दीं थी और मारने दौड़े थे। वहीं फोनिक्स में भी रमेश मित्तल के 31 और प्रदीप अग्रवाल के 23 प्लाट विवाद के चलते यहां भी निराकरण ना के बराबर हुए हैं, इसके साथ ही 22 प्लाट विवाद लिक्वीडेटर के चलते नहीं हो पा रहे हैं। केवल ले-देकर कालिंदी गोल्ड में ही कमेटी कुछ जगह पजेशन दिला सकी है और वहीं राशि लौटाने के शपथपत्र तैयार हुए हैं और इस पर सहमति बनी है। यह राशि 12 फीसदी ब्याज दर से लौटाने का प्रस्ताव कमेटी ने दिया है। जिस पर हाईकोर्ट ही मुहर लगाएगी। कई सौदे फर्जी पाए गए हैं, जिसे कमेटी ने खारिज किया है यह भी कोर्ट में आपत्ति लगा सकते हैं।
गर्ग, मित्तल, चुघ, पीएनबी सभी ने लगाई आपत्ति
कमेटी के सामने इस पूरे घोटाले से जुड़ी जमीन को लेकर कैलाश गर्ग, चंद्राप्रभु होम्स प्रालि, रमेश चंद्र मित्तल, महेश वाधवानी, नितेश चुग, पंजाब नेशनल बैंक, प्रदीप अग्रवाल ने विविध आपत्तियां ली हैं। उधर कमेटी ने बार-बार लिखा है कि इस मामले में गर्ग, अग्रवाल का सहयोग नहीं मिला है। इसी तरह चंद्राप्रभु कंपनी ने भी सहयोग नहीं किया जिसके कारण केस अटक गए हैं। वहीं मित्तल के साथ भी केसों को लेकर सहमति नहीं बनी है। इसके चलते इनसे जुड़े सभी मामले हाईकोर्ट में ही सुलझ सकते हैं क्योंकि इसमें कई तरह के वैधानिक बिंदु जैसे कि बिके हुए प्लाट पर बैंक लोन हो सकता है क्या? कंपनी से इस्तीफा देने के बाद पूर्व डायरेक्टरों की जिम्मेदारी कितनी बनती है, आदि बिंदु शामिल है। डायरियों पर सौदे को लेकर भी हाईकोर्ट ही फैसला ले सकती है।
फिर से फोनिक्स कंपनी को जिम्मेदारी दी जाए, लिक्विडेटर को हटाएं-कमेटी
कमेटी ने फोनिक्स में लिक्वीडेटर की भूमिका पर कड़ी टिप्पणी की है। कमेटी ने कहा कि कई बार दस्तावेज देने के बाद भी लिक्वीडेटर का कोई सहयोग नहीं मिला और ना ही सकारात्मक रूख दिखा। जो दस्तावेज इनकमटैक्स के पास जमा है वह वही दस्तावेज बार-बार मांग रहे थे। साल 2016 से लिक्वीडेटर इस मामले को हल नहीं कर पाए हैं। वह सहयोग करते तो 22 केस का निराकरण हो जाता। बेहतर होगा कि लिक्वीडेटर को हटाकर फिर से फोनिक्स कंपनी को केस निराकरण की जिम्मेदारी एक तय समय में करने के लिए दी जाए।
प्रशासन की तारीफ
कमेटी ने इस मामले में पूर्व कलेक्टर मनीष सिंह, अपर कलेक्टर और कमेटी सदस्य रहे डॉ. अभय बेडेकर की भारी प्रशंसा की है। कमेटी ने कहा है कि इनके प्रयासों के चलते इस कठिन केस में भी इतने निराकरण हो सके हैं। बेड़ेकर की कमेटी ने तीनों ही कॉलोनियों में बेहतर रूख दिखाते हुए समझदारी के साथ केसों का निराकरण किया है, जिसके चलते वर्तमान कमेटी को भी काफी मदद मिली और संयुक्त प्रयासों के कारण पीड़ितों के मामले में यहां तक पहुंच सके।
चंपू का बेटा आर्जव अभी तक फरार
उधर कमेटी की सुनवाई के दौरान ही जिला प्रशासन ने भूमाफिया चंपू अजमेरा के बेटे आर्जव सहित अन्य चार पर जमीन धोखाधड़ी में केस किया था। इस केस को करीब एक माह से ज्यादा का समय हो गया है लेकिन अभी तक पुलिस ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की है और आर्जव की अभी तक गिरफ्तारी नहीं हुई है। इसके पहले पिता चंपू अजमेरा, मां योगिता अजमेरा, दादा पवन अजमेरा भी गिरफ्तारी से पहले ही फरार हो गए थे, बाद में ईनाम भी घोषित हुए और पकड़े गए। चाचा नीलेश तो आज तक ईनामी भगोड़ा ही हैं। पुलिस ने एफआईआर के बाद आर्जव की गिरफ्तारी के लिए कोई टीम नहीं भेजी।