BHOPAL. विधानसभा चुनाव में क्या होगा, विधानसभा चुनाव के बाद क्या होगा, इन सवालों के साथ एक चुनावी सीजन गुजर गया। अब इस चुनाव का सीक्वेल आना है। सीक्वेल जो है वो पहले चुनाव से काफी बड़ा होगा। चुनाव सीजन टू में अहम चेहरे तो वही होंगे लेकिन कुछ पुराने चेहरे बदल जाएंगे। खासतौर से मध्यप्रदेश में। जिस तरह बीजेपी ने यहां विधानसभा चुनाव में बहुत से सिटिंग एमएलए के टिकट काट दिए वैसे ही अब बहुत से सिटिंग सांसदों के टिकट पर कैंची चलनी है। क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं। कौन-कौन से हैं वो सांसद जिन्हें इस बार टिकट मिलना मुश्किल होगा। आज मेरी बात को जरा ध्यान से सुनिए और पूरा सुनिए। क्योंकि हो सकता है कि टिकट गंवाने वाले सासंदों की लिस्ट में आपके क्षेत्र का सांसद भी शामिल हो।
इस बार कौन-कौन से सांसद नपने वाले हैं
सोचिए थोड़ा, दिमाग लगाइए। अगर आप बीजेपी की रणनीति को बहुत नजदीक से देखते रहे हैं और थोड़ी राजनीतिक समझ रखते हैं तो ये अंदाजा लगा सकते हैं कि इस बार कौन-कौन से सांसद नपने वाले हैं अगर न समझ पाएं हो तो मैं समझा देता हूं, लेकिन वो नाम बताऊं उससे पहले ये बताता हूं कि वो कौन सी रणनीति है जिस पर चलकर बीजेपी सांसदों के टिकट काटेगी। भई एक स्ट्रेटजी का अंदाजा तो आप बहुत आसानी से लगा सकते हैं। ये स्ट्रेटजी है हारने वाले नेताओं का टिकट काटना। तो समझ लीजिए जिस सांसद की रिपोर्ट कमजोर है। या वो अपने क्षेत्र में एक्टिव नहीं है। जिसके लोकसभा क्षेत्र के कार्यकर्ता उसने नाराज हैं। और सबसे बड़ा फेक्टर जिस सांसद के खिलाफ एंटीइंकंबेंसी तेज है उसे बीजेपी अब मौका नहीं देने वाली। वैसे आपको एक बात और बता दूं। बीजेपी इस चुनाव में चीटिंग भी करने वाली है। ये चीटिंग होगी विधानसभा चुनाव में आजमाई गई एक रणनीति की। इस रणनीति से बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में बड़ा मैदान मार लिया और अब लोकसभा चुनाव में उसी रणनीति को दोबारा अप्लाई करने की तैयारी है। ये स्ट्रेटजी है धुरंधर चेहरों को चुनावी मैदान में उतारने की। उसकी खातिर भले ही किसी पुराने सांसद का टिकट ही क्यों न काटना पड़े।
बीजेपी का मिशन इस बार पूरी 29 सीटें जीतने का है
इसके साथ ही एक और बड़ा फैक्टर है जो लोकसभा के टिकट तय करने में ध्यान में रखा जाएगा। ये तो आप जानते ही होंगे कि बीजेपी को विधानसभा चुनाव में 67 सीटें हारी थी। अंदर की खबर क्या है ये मैं आपको बताता हूं। बीजेपी की जीत हार से कहीं ज्यादा बड़ी है, लेकिन 67 सीटों पर हार को बीजेपी ने बहुत गंभीरता से लिया है। क्योंकि बीजेपी का मिशन इस बार पूरी 29 की 29 सीटें जीतने का है। इसलिए बीजेपी इन 67 सीटों पर हार के कारणों को जानने में जुट गई है। इन 67 सीटों में बीजेपा सांसद रहे फग्गन सिंह कुलस्ते और गणेश सिंह की सीट भी शामिल है। चूंकी ये दोनों विधानसभा चुनाव ही हार चुके हैं तो इन्हें लोकसभा चुनाव का टिकट मिलना मुश्किल है। आपको क्या लगता है बड़ा आदिवासी चेहरा होने के बावजूद क्या बीजेपी फग्गन सिंह कुलस्ते को टिकट देगी। खैर फग्गन सिंह कुलस्ते से आगे बढ़ते हैं उन सीटों पर जहां सांसदों के टिकट पर खतरा मंडरा रहा है।
ग्वालियर सीट पर सिंधिया समर्थक को उतार सकते हैं
मुरैना सीट से सांसद रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर विधायक बनने के बाद विधानसभा के अध्यक्ष बन चुके हैं। अब उनकी जगह किसी नए चेहरे को मौका दिया जाएगा। ग्वालियर सीट पर पार्टी किसी सिंधिया समर्थक या उनके परिवार के ही किसी सदस्य को मैदान में उतारकर सकती है। गुना सीट से भी सुगबुगाहटें तेज हैं कि यहां से खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव लड़ेंगे। अगर ऐसा होता है तो मौजूदा सांसद केपी यादव को शांत करने के तरीके भी तलाश ही लेगी। सागर सीट से पार्टी विधायक भूपेंद्र सिंह को मौका दे सकती है। उन्हें कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया है दूसरा सागर में उनका दबदबा भी अच्छा खासा है।
अभिषेक भार्गव को दमोह से टिकट मिल सकता है
वैसे तो बीजेपी परिवारवाद के खिलाफ है, लेकिन गोपाल भार्गव को हो सकता है बरसों की निष्ठा का इनाम मिले और उनके बेटे को टिकट मिले। अंदर की खबर ये है कि गोपाल भार्गव की सीनियरिटी को नजरअंदाज कर उन्हें केबिनेट में शामिल नहीं किया गया। क्योंकि पार्टी उनके बेटे अभिषेक भार्गव को दमोह से टिकट दे सकती है। रीवा सीट से सांसद जनार्दन द्विवेदी के टिकट पर भी खतरा बना हुआ है। माना जा रहा है कि पार्टी इस सीट पर उनकी जगह किसी ब्राह्मण चेहरे को मौका दे सकती है। अब बताता हूं आपको उन सीटों के नाम, जिन पर बीजेपी में तेजी से मंथन जारी है। इन सीटों पर चेहरे बदलने की संभावना अस्सी प्रतिशत है तो चेहरा रिपीट होने की संभावना तीस प्रतिशत से कम ही हैय़ ये सीटे हैं- भोपाल, देवास, बालाघाट, खंडवा, खरगौन, छतरपुर टीकमगढ़ लोकसभा सीट।
विधानसभा चुनाव के दावेदारों को भी मिल सकता है टिकट
इनमें से भोपाल सीट की सासंद प्रज्ञा भारती का टिकट कटने की वजह तो आप समझ ही सकते हैं। अपने ब्यानों की वजह से प्रज्ञा भारती ने बहुत बार पार्टी की मुश्किलें बढ़ाई हैं। अब उन्हें टिकट मिलना मुश्किल ही है। इसके अलावा बीजेपी ने उन सीटों पर भी फोकस करना शुरू कर दिया है। जहां कांग्रेस का मत प्रतिशत बीजेपी को मिले मतों के आसपास या उससे ज्यादा रहा है। इनमें से ही कुछ सीटों पर कांग्रेस को जीत भी मिली है। बीजेपी की इस रणनीति को इतना तो समझा ही जा सकता है, लेकिन इस बार अपनी चाल में बीजेपी थोड़ा ट्विस्ट भी ला सकती है। हर बार हाथ घुमाकर कान पकड़ने वाली ये पार्टी इस बार उल्टे कान भी पकड़ सकती है। मतलब ये कि पार्टी उन नेताओं को भी टिकट दे सकती है जो विधानसभा चुनाव में टिकट के दावेदार थे। पार्टी के बड़े नेता हैं या दमदार दिग्गज हैं। उनमें से कोई चेहरा ऐसा लगा जिस पर दांव खेला जा सकता है तो बीजेपी उसे भी टिकट देने से बिलकुल गुरेज नहीं करेगी। बस लोकसभा के लिहाज से उनकी सर्वे रिपोर्ट भी एकदम बढ़िया होनी चाहिए।
इस बार जीते तो मंत्री पद का इनाम जरूर मिलेगा
अब आप जरा मोहन मंत्रिमंडल पर नजर डालिए। इस मंत्रिमंडल में बहुत से नए चेहरे शामिल किए गए हैं, जबकि बहुत से ऐसे पुराने चेहरे हैं जिन्हें अनुभव के बाद भी तरजीह नहीं दी गई। उन्हें बीजेपी भूल गई हो ऐसा नहीं है। उन्हें बीजेपी लोकसभा चुनाव में अपने एसेट की तरह यूज करेगी। हो सकता है मंत्रिपद से चूके मंत्रियों को अब लोकसभा चुनाव का टिकट दे दिया जाए और शर्त रख दी जाए कि फिर जीतो। इस बार जीते तो सरदार खुश होगा और शाबाशी में मंत्री पद का इनाम जरूर देगा। यानी चुनाव तक न किसी को हौसला हारना है और न ही अपने काम में ढील बरतनी है। क्योंकि जो जागत है वही पावत है। तो बीजेपी के हर टिकट के दावेदार के लिए फिलहाल अपने क्षेत्र में जागते रहना बहुत जरूरी है।