JABALPUR. चुनाव आते ही कड़कनाथ मुर्गों की पूछपरख बढ़ जाती है, इसके अलावा मांसाहार के शौकीन भी इस मुर्गे के स्वाद के लिए इसके मनमाने दाम चुकाने तैयार रहते हैं। काली मज्जा और काले मांस के लिए मशहूर कड़कनाथ मुर्गे की पूछपरख को देखते हुए जबलपुर में जिला प्रशासन ने स्व सहायता समूहों के जरिए कड़कनाथ मुर्गों के पालन और उत्पादन की योजना तैयार कर ली है। जिले में कुल 10 हजार कड़कनाथ के लालन-पालन के साथ योजना की शुरुआत की जा रही है। इसके लिए तैयार कार्य योजना को कलेक्टर की ओर से हरी झंडी प्रदान कर दी गई।
हर स्व सहायता समूह को मिलेंगे 100 नग चूजे
जिला पंचायत स्तर पर बनाई गई इस योजना के मुताबिक जिले के 100 महिला स्व सहायता समूह को कड़कनाथ मुर्गों के 100-100 चूजे वितरित किए जाएंगे। ये चूजे 28 दिन के होंगे। यानि इनकी बढ़वार अच्छी होगी। इनमें 50 नर और 50 मादा चूजे प्रदान किए जाएंगे। इसके अलावा प्रत्येक समूह को दड़बा बनाने के लिए 17 हजार रुपए की राशि भी दी जाएगी। साथ ही चूजों के दाने और वैक्सीनेशन के लिए भी अलग से आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगा। हालांकि यह सहायता ऋण के रूप में होगी जिस पर किसी प्रकार का ब्याज नहीं लिया जाएगा।
एक मादा साल में देती है 80 अंडे
वेटरनरी विशेषज्ञों के मुताबिक कड़कनाथ मुर्गे की मादा एक साल में 80 अंडे देती है, जिनमें से कम से कम 15 चूजे निश्चित तौर पर हो सकते हैं। साल भर बाद 10 नर मुर्गों को बचाकर बाकी सभी को 700 से 800 रुपए प्रति नग के हिसाब से बेचा जाएगा। इससे प्रत्यके सेल्फ हेल्प ग्रुप के 500 से ज्यादा कड़कनाथ का उत्पादन कर सकेगा। जिससे उन्हें लाखों रुपए की आय होगी।
चुनाव में कड़कनाथ का रोल
मूलतः झाबुआ जिले में होने वाले कड़कनाथ से जुड़ी एक किंवदंती है, किंवदंती के मुताबिक कड़कनाथ मुर्गे का मांस खाने से राजयोग एक्टिव हो जाता है। जिस कारण चुनाव के पहले दावेदार जमकर इस मुर्गे को खाते थे। आलम यह था कि एक समय तो कड़कनाथ मुर्गों की तादाद ही बहुत कम बची थी। बाद में जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय ने शोध के जरिए इसकी अनेकों प्रजातियां विकसित कर लीं।