कोटा के सीवरेज और औद्योगिक कचरे ने चंबल की घड़ियाल सेचुरी के लिए पैदा किया खतरा, एनजीटी ने दिए नोटिस

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Pooja Kumari
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कोटा के सीवरेज और औद्योगिक कचरे ने चंबल की घड़ियाल सेचुरी के लिए पैदा किया खतरा, एनजीटी ने दिए नोटिस

मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान के कोटा शहर से निकलने वाला सीवरेज का पानी और औद्योगिक कचरा यहां से निकलने वाली चंबल नदी में स्थित देश की एकमात्र घोषित घड़ियाल सेंचुरी के लिए खतरे का कारण बन रहा है। यह कचरा यहां इतनी मात्रा में पहुंच रहा है कि सिर्फ घड़ियाल ही नहीं बल्कि अन्य जलीय जीवों के लिए भी खतरा पैदा हो गया है। इस मामले में राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की ओर से किए गए एक शोध के आधार पर एक पर्यावरण कार्यकर्ता ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की थी और उस पर ट्रिब्यूनल ने राजस्थान सरकार और कोटा प्रशासन को नोटिस जारी कर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।

तीन राज्यों में फैली है नेशनल चंबल घड़ियाल सेंचुरी

नेशनल चंबल घड़ियाल सेंचुरी 600 किमी लंबी तीन राज्यों मप्र, यूपी और राजस्थान में फैली हैं। 1973 में चंबल नदी के अधिकांश भाग को नेशनल घड़ियाल सेंचुरी घोषित किया गया था। ये वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट ऑफ 1972 के तहत संरक्षित है। सबसे बड़ी बात है ये कि यह नेशनल चंबल घड़ियाल सेंचुरी दुनिया की सबसे बड़ी मगरमच्छ सेंचुरी में से एक है। कोटा शहर राजस्थान के उन शहरों में शामिल है जो औद्योगिक शहर भी माना जाता है और जहां कोचिंग इंडस्ट्री के कारण देश के दूसरे राज्यों से लगभग 2 लाख बच्चे हर साल रहने आते हैं। ऐसे में यहां सीवरेज का पानी और उद्योगों का कचरा बड़ी मात्रा में चंबल में प्रवाहित किया जाता है।

जलीय जीवों पर मंडरा रहा है संकट

बता दें कि प्रतिदिन शहर का 312 एमएलडी गंदा पानी चंबल नदी में गिर रहा है। इससे चंबल के पानी की गुणवत्ता अत्यधिक खराब हो रही है। नदी के स्वच्छ पानी में दूषित जल मिश्रण से घड़ियाल, क्रोकोडाइल एवं डॉल्फिन सहित अन्य जलीय जीवों का जीवन संकट में आने की आशंका जताई जा रही है। चंबल से अनेक जिलों में पेयजल आपूर्ति भी हो रही है जिससे लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं। राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की ओर से किए गए शोध में सामने आया था कि वर्तमान में चंबल नदी सार्वजनिक अतिक्रमण, अनुपचारित नगरपालिका के साथ-साथ औद्योगिक कचरे के निपटान, नगरपालिका के ठोस कचरे के सीधे डंपिंग और अन्य अपशिष्ट जल के अनाधिकृत मोड़ के भारी दबाव से गुजर रही है।

प्रदूषित पानी ज्यादा लेकिन ट्रीटमेंट की सुविधा बहुत कम

इसी शोध के आधार पर पर्यावरण विद् और वन्य जीव संरक्षण कार्यकर्ता बाबूलाल जाजू ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की भोपाल बेंच के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की थी। जाजू ने याचिका में बताया कि शहर की अधिकांश छोटी नालियां अंतत: मुख्य नाले में गिरती हैं और ये नाला शहर के विभिन्न नालों के माध्यम से लगभग 55 एमएलडी अपशिष्ट जल सीधे चंबल नदी में ले जाता है। जाजू ने बताया कि पूर्व में उनकीओर से दायर एक पूर्व याचिका पर शहर में ट्रीटमेंट प्लांट लगाया था लेकिन इसकी क्षमता मात्र 50 एमएलडी ही है। इसके अलावा, कोटा में मौजूदा अपशिष्ट जल उपचार सुविधाएं अपर्याप्त है। केवल 2 सीवरेज उपचार संयंत्र हैं। नतीजतन 262 एमएलडी अपशिष्ट जल कई खुले नालों के माध्यम से सीधे चंबल नदी में प्रवाहित किया जाता है, जो लगातार प्रदूषण बढ़ाने में योगदान देता है।

जिला कलेक्टर कोटा सहित 6 को नोटिस

चंबल नदी में जा रहे कोटा शहर के गंदे पानी के सैकड़ों नालों को रोकने के लिए दायर जाजू की याचिका पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने प्रमुख सचिव पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, जिला कलेक्टर कोटा, अधीक्षण अभियंता जल संसाधन विभाग कोटा, सदस्य सचिव राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल, सचिव नगर विकास न्यास कोटा एवं आयुक्त नगर निगम कोटा को नोटिस जारी कर 19 फरवरी तक रिपोर्ट मांगी है। ट्रिब्यूनल ने कहा है कि जिम्मेदार विभागों के अधिकारी चार सप्ताह में संयुक्त समिति का गठन प्रभावित क्षेत्र का दौरा करें। छह सप्ताह के भीतर तथ्यात्मक और की गई कार्रवाई की रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करें।

केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने भी जताई थी चिंता

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी पिछले वर्ष अपनी रिपोर्ट में कोटा का निकट चंबल के पानी में प्रदूषण पर चिंता जताई थी। रिपोर्ट में कोटा में 22 और केशोरायपाटन में छह अत्याधिक प्रदूषित ड्रेन चिन्हित किए गए थे। एनजीटी ने प्रदूषण नियंत्रक मंडल को चंबल नदी के पानी के नमूने लेने के निर्देश जारी किए गए थे। इसके बाद वर्ष 2018 में चंबल के पानी के सैंपल लिए गए थे। उस समय कोटा की चंबल नदी में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बीओडी का स्तर 5.5 रहा था। इसके बाद 2019 के नमूनों की बात करे तो यह आंकड़ा 5.75 तक पहुंच गया। जबकि वर्तमान में कोटा में चंबल के पानी में बीओडी का स्तर छह से अधिक पाया गया है। बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड एक विश्लेषणात्मक पैरामीटर है जो एक विशिष्ट समय अवधि में एक विशिष्ट तापमान पर पानी के नमूने में मौजूद कार्बनिक पदार्थ पर बढ़ने वाले एरोबिक बैक्टीरिया द्वारा उपभोग की गई घुलित ऑक्सीजन की मात्रा का प्रतिनिधित्व करता है।

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