मध्यप्रदेश में सांसदों के बाद अब मंत्रियों की बारी, लोकसभा चुनाव में निभाएंगे अहम जिम्मेदारी !

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में सांसदों के बाद अब मंत्रियों की बारी, लोकसभा चुनाव में निभाएंगे अहम जिम्मेदारी !

BHOPAL. मंत्री तो बन गए, लेकिन मगजमारी से बचना होगा मुश्किल। पार्टी का पुराना फॉर्मूला ही मोहन सरकार के मंत्रियों की मुश्किल बढ़ाने वाला है। मोहन कैबिनेट में शामिल होने वाले नेताओं के लिए ये लम्हा खुशियों भरा है। बीजेपी ने अपनी ही सरकार में कई बड़े बदलाव किए। तकरीबन 2 दशक तक सीएम रहे शिवराज सिंह चौहान का चेहरा एक झटके में सत्ता से बाहर कर दिया तो कई वरिष्ठ विधायकों के ये मुगालते भी दूर कर दिए कि सत्ता में उनकी भागीदारी सुनिश्चित ही होगी। जो रह गए उनका उदास होना लाजिमी है और जो मोहन यादव के शरीक-ए-कैबिनेट बने उनका खुशी से लबरेज होना भी मुनासिब ही है। लेकिन कुर्सी की इस खुशी को कायम रखना एक बड़े इम्तिहान से ही पूरा हो सकेगा।

लोकसभा चुनाव की तैयारी

मोहन सरकार के मंत्रियों के लिए फिलहाल सुख भरे दिन बीत चुके हैं। अब वक्त मेहनत करने का है और खुद को एक बार फिर साबित करने का है। सत्ता का सुख छोड़कर गली-मोहल्लों में जाकर वनवास काटने का है। ये वनवास सफल हुआ तो समझिए कि कुर्सी 5 साल के लिए पक्की होगी और जो फेल हुए तो अंजाम क्या होगा ये अंदाजा लगाया जा सकता है। अब आप सवाल कर सकते हैं कि सरकार तो बन चुकी और मंत्री पद तो मिल ही गया, फिर कैसी कामयाबी और कौनसा इम्तिहान। तो, याद दिला दें कि लोकसभा चुनाव बस कुछ ही महीनों बाद होना तय है और बीजेपी फिर अपना पुराना फॉर्मूला ही लागू करने वाली है। लोकसभा चुनाव में प्रदेश में 29 की 29 सीटें जीतने की तैयारी में है। अब आप सवाल करेंगे कि ये पुराना फॉर्मूला कौन सा है जो बीजेपी को जीत दिलाने से पहले मंत्रियों का सुख चैन लूटने वाला है। ये पुराना फॉर्मूला है दिग्गज लाओ सीट जिताओ।

मंत्रियों को पार्टी के लिए बेहतर बनाने होंगे हालात

जरा अपनी मेमोरी की टेप को थोड़ा रिवाइंड कीजिए और विधानसभा चुनाव के समय की बीजेपी की लिस्ट को याद कीजिए, जिसमें दर्ज नामों ने सभी को चौंका दिया था। इस लिस्ट में कई दिग्गजों के नाम शामिल थे। जैसे कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, राव उदय प्रताप, राकेश सिंह, रीति पाठक। विधानसभा चुनाव में इन दिग्गजों ने खुद को साबित कर दिया। अब बारी दूसरे मंत्रियों की है, जिन्हें खुद को साबित करना है। अब ये समझने की भूल मत कीजिएगा कि बीजेपी कुछ मंत्रियों को ही लोकसभा चुनाव का टिकट दे देगी। वैसे चाहें तो बीजेपी कर भी सकती है और आपको चौंका भी सकती है, लेकिन फिलहाल ऐसी प्लानिंग नहीं है। अभी तो बीजेपी इन मंत्रियों को लोकसभा चुनाव में जितवाने की जिम्मेदारी देने वाली है। इन मंत्रियों को चुन-चुनकर ऐसे जिलों में भेजा जाएगा, जहां बीजेपी की स्थिति कमजोर है। कार्यकर्ता नाराज है या मतदाताओं में नाराजगी है। उन जिलों की नब्ज टटोलकर मंत्रियों को पार्टी के लिए हालात बेहतर बनाने होंगे।

मध्यप्रदेश के 30 मंत्रियों की तय होगी जिम्मेदारी

डॉ. मोहन यादव कैबिनेट में मुख्यमंत्री और दोनों डिप्टी सीएम सहित 31 मंत्री हैं। मुख्यमंत्री को छोड़कर 30 मंत्रियों के बीच प्रदेश के सभी 55 जिलों के प्रभार तय होंगे। इनमें खासतौर पर ऐसे जिलों पर जोर ज्यादा होगा जो आदिवासी बहुल हैं। मंत्रिमंडल में शामिल ट्राइबल क्षेत्रों के नेताओं को उन्हीं जिलों की कमान सौंपने की तैयारी है। बीजेपी सूत्रों की मानें तो इस बार मंत्रियों को लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जिलों का प्रभार दिया जाएगा।

विधानसभा चुनाव के नतीजे प्रभार का आधार

इस प्रभार का आधार बनेगा विधानसभा चुनाव के नतीजे। इन चुनाव में बीजेपी को जहां जहां हार मिली है। उन जिलों में मंत्रियों की तैनाती होगी। ऐसे जिलों में राजेन्द्र शुक्ल, कुंवर विजय शाह, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह, उदय प्रताप सिंह, तुलसी सिलावट, गोविन्द सिंह राजपूत, विश्वास सारंग और प्रद्युम्न सिंह तोमर को प्रभारी बनाया जा सकता है। आदिवासी बहुल सीट पर खास तवज्जो देने की तैयारी के चलते आदिवासी तबके से आने वाले मंत्री को आधा दर्जन आदिवासी जिलों की कमान सौंपने की तैयारी है। ये काम संपतिया उइके, निर्मला भूरिया, कुंवर विजय शाह को सौंपा जा सकता है। इसी तरह कैबिनेट के अन्य वरिष्ठ मंत्रियों को भी चुनावी रणनीति के हिसाब से ही जिलों की बागडोर सौंपी जाएगी। केंद्रीय नेतृत्व ने खुद ऐसे मंत्रियों को अपनी निगाह में रखा है।

47 ट्राइबल सीटों में से 25 सीटों पर जीत

बात करें विधानसभा के मौजूदा चुनावी नतीजों की तो बीजेपी को 47 ट्राइबल सीटों में से 25 सीटों पर सफलता मिल गई है। इस लिहाज से बीजेपी को 9 सीटों का फायदा हुआ है। अब बीजेपी यही विजयी अभियान आगे बढ़ाना चाहती है। विधानसभा चुनावों में खजुराहो, होशंगाबाद, इंदौर, देवास, खंडवा लोकसभा सीट की सभी सीटें बीजेपी ने जीत ली हैं। इसके अलावा सागर, दमोह, रीवा, सीधी, जबलपुर, विदिशा और मंदसौर की सिर्फ एक-एक सीट पर बीजेपी को हार मिली हैं। 10 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां उसे हार का सामना करना पड़ा है। ग्वालियर की 4 विधानसभा, मुरैना की 5, भिंड की 4, टीकमगढ़ की 3, मंडला की 5, बालाघाट की 4, रतलाम की 4, धार की 5 और खरगोन की 8 में से 5 पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है।

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छिंदवाड़ा पर बीजेपी की नजरें

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट की सारी विधानसभा सीटों पर बीजेपी को हार मिली और यही गढ़ बीजेपी को जीतना भी है। जहां पार्टी पूरी ताकत झोंक देने के मूड में है। पिछले चुनाव में मोदी की आंधी के बावजूद बीजेपी कमलनाथ के किले को नहीं भेद सकी थी। अब मोदी की गारंटी का जादू चलने की उम्मीद है, लेकिन बीजेपी सिर्फ जादू के भरोसे नहीं रहने वाली है। अपने मंत्रियों को मैदान में उतारकर बीजेपी पूरी किलेबंदी कर फतह हासिल करने की कोशिश में अभी से जुट चुकी है। जिसकी खातिर मंत्रियों को भी फिलहाल अपने कोजी कमरों से बाहर निकलकर चुनावी खाक छाननी है और कमजोर जिलों में पार्टी को मजबूत बनाना है।

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