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मध्य प्रदेश में ग्वालियर में कमाल का विकास हुआ है। जहां सिटी बसों को जाना ही नहीं है, वहां भी बस स्टैंड बना दिए गए। अब निगम का तर्क है कि ऐसा तो इनकम बढ़ाने के लिए किया गया है। बता दें कि पूरे शहर में 110 स्टॉप बने हैं। इन स्टॉप को ऐसी जगह भी बना दिया गया है, जहां पर सिटी बसों के चलने की संभावना भी नहीं है। इस स्टॉप में 15 फीट के एरिया में निगम का विज्ञापन होना था, जो कि नहीं है। कॉन्ट्रेक्ट के मुताबिक जिस कंपनी को ठेका दिया था, उसे सफाई और चौकीदारों की मार्केटिंग करनी थी, जो कि आज तक नहीं हो सकी है।
बता दें निगम ने इसकी जिम्मेदारी इंदौर की ऐसेंट ब्रांड कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड को सौंपी थी। इसमें पहले फेज में 30 और दूसरे फेज में 100 की स्थान पर 85 ही बनाए। इस पर निगम ने कॉन्ट्रेक्ट में 500-500 वर्गफीट जमीन हर बस स्टॉप के लिए कंपनी को दी हुई है। कॉन्ट्रेक्ट में ये शर्त है कि 500 वर्गफीट एरिया में से 75 वर्ग फीट पर निगम का ऐड किया जाना है, लेकिन अफसरों की मिलीभगत होने से कंपनी कॉन्ट्रेक्ट पर गौर नहीं कर रही है।
जिम्मेदारों ने दिया ये तर्क
नोडल अधिकारियों ने इसकी देखरेख नहीं की है। अब बोलें परीक्षण करेंगे, नोटिस देंगे। कंपनी कॉन्ट्रेक्ट का पालन कर रही है या फिर नहीं, इसके इंस्पेक्शन की जिम्मेदारी नोडल अधिकारी सतेंद्र भदौरिया, अपर आयुक्त अनिल दुबे की थी। लेकिन दोनों ने कार्रवाई नहीं की है।
नोडल अधिकारी बचते रहे
अपर आयुक्त अनिल दुबे के मुताबिक, बस स्टॉप को लेकर कंपनी कॉन्ट्रेक्ट का पालन नहीं कर रही है। इसको चेक कराकर नोटिस जारी किया जाएगा। वहीं नोडल अधिकारी सतेंद्र भदौरिया से जब इस बारे में फोन लगाया गया तो उन्होंने रिसीव नहीं किया और मैसेज का जवाब भी नहीं दिया।
200-200 मीटर पर बने बस स्टॉप
बता दें राजमाता चौराहे से तानसेन रेसीडेंसी तक 200-200 मीटर पर 3 बस स्टॉप बनाए गए हैं। यहां पर सफाई नहीं होती है। वहीं वन विभाग के ऑफिस के बाहर की सड़क पर बस स्टॉप पर बैंच नहीं लगी हैं। मोतीमहल से फूलबाग रास्ते पर दो बस स्टॉप बनाए गए हैं। तानसेन रेसीडेंसी के बाहर बने बस स्टॉप पर प्राइवेट कंपनियों के विज्ञापन हैं। ऐसी ही हालत दूसरे बस स्टॉप की है।
अपील समिति से राहत पाने के प्रयास में सांवरिया सेठ
तत्कालीन आयुक्त हर्ष सिंह ने विज्ञापन नियमों की अनदेखी कर फुटपाथ और डिवाइडर पर खतरनाक स्ट्रक्चर खड़े करने के मामले में विज्ञापन के कॉन्ट्रेक्ट को खत्म कर दिया था। इसके बाद कंपनी के संचालकों ने राहत पाने के अपील भी की थी। समिति में मामला होने से निगम कंपनी के लगाए गए खतरनाक स्ट्रक्चर पर कार्रवाई नहीं कर पा रहा है। समिति की बैठक होने से शहर के भीतर अवैध स्ट्रक्चर से कभी भी कोई भी हादसा हो सकता है।
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