BHOPAL. मध्य प्रदेश ( MP) में भ्रष्ट अफसरों पर कार्रवाई का यह आलम है कि पिछले पांच में 76 लोकायुक्त ( Lokayukta) छापों में से 62 में जांच अधूरी है, जबकि 14 मामलों में जांच पूरी होने के बाद 6 केस में सरकार ने कोर्ट में केस की मंजूरी नहीं दी, सिफ 8 मामले कोर्ट में पहुंचे हैं। यानी पांच साल में एक भी भ्रष्ट कर्मचारी और अफसर को सजा नहीं मिली है... यह गजब है MP.
पिछले चार महीने में एक भी अधिकारी-कर्मचारी के यहां लोकायुक्त ने छापा नहीं मारा है। विधानसभा चुनाव के पहले से छापे की कार्रवाई रुकी हुई है। अब लोकसभा चुनाव के बाद ही लोकायुक्त की टीम मैदान में उतरेगी।
इस पड़ताल में यह जानने का प्रयास किया कि अफसर और कर्मचारियों के यहां पड़े लोकायुक्त छापों की जांच इतनी धीमी क्यों चल रही है ? इससे जिन अफसरों के यहां बेनामी प्रॉपर्टी मिली, उन्हें किस तरह और कितना फायदा हो रहा है ?
सबसे पहले उन अफसरों के बारे में जानते हैं तो जिनके खिलाफ केस चलाने की अनुमति सरकार से नहीं मिली या नहीं दी गई।
इन बड़े मामलों में सालों से लोकायुक्त में जांच जारी....
100 करोड़ की बेनामी प्रॉपर्टी मिली, 5 साल से जांच जारी
आलोक कुमार खरे, सहायक आबकारी आयुक्त, इंदौर
छापा : 15 अक्टूबर 2019
इंदौर में 100 करोड़ रुपए से अधिक की चल-अचल संपत्ति मिली थी। घर पर थिएटर और अन्य बेशकीमती सामान मिला था। कैलाश पार्क इंदौर में 1500 वर्ग फीट का प्लॉट, श्री बिल्डर्स एंड डेवलपर्स में 5056 वर्ग फीट का आलीशान बंगला, सेंचुरी 21 मॉल में 1890 वर्ग फीट का एक ऑफिस का पता चला था। इसके अलावा खरे ने कई अन्य जगह निवेश किया था। अभी भी जांच चल रही है।
वेयर हाउस से लेकर पॉली हाउस और आलीशान बंगला
हेमा मीणा, प्रभारी सहायक यंत्री, पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन, भोपाल
छापा -11 मई 2023
पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन में पदस्थ हेमा मीणा छापेमारी के बाद 98 एकड़ जमीन की मालकिन निकली थीं। विदिशा के देवराजपुर में 56 एकड़ में वेयरहाउस, मुड़ियाखेड़ा में 14 एकड़ का फार्म हाउस, रायसेन के मेहगांव में 28 एकड़ जमीन-पॉली हाउस मिला था। सेवा से बर्खास्त हो चुकी हेमा की सैलरी 30 हजार महीना थी और 30 लाख का एलईडी टीवी और एक करोड़ का बंगला मिला था।
4 करोड़ की प्रॉपर्टी के साथ लाखों की ज्वेलरी मिली
प्रदीप खन्ना, जिला खनिज अधिकारी, इंदौर
छापाः 1 सितंबर 2020
इंदौर में पदस्थ रहे खनिज अधिकारी प्रदीप खन्ना के यहां छापेमारी में 4 करोड़ से ज्यादा की प्रॉपर्टी मिली थी। सर्चिंग में टीम को जमीन से जुड़े कई दस्तावेज, भोपाल में बंगला, 13 लाख की ज्वेलरी, एक किलो चांदी, 9 लाख रुपए नकद, दो कार और चार दोपहिया वाहन मिले। इंदौर में एक फ्लैट, बायपास पर नया मकान और भोपाल में भी बंगला मिला। बाद में इस अधिकारी को टर्मिनेट कर दिया गया।
बेलदार के पास पेंट हाउस के साथ करोड़ों की प्रॉपर्टी मिली
रियाज उल हक, बेलदार, नगर निगम, इंदौर
छापाः 24 दिसंबर 2019
इंदौर नगर निगम के चर्चित बेलदार रियाज उल हक के यहां पड़े छापे में करोड़ों रुपए की संपत्ति मिली थी। बर्खास्त हो चुके बेलदार के पास स्नेहलतागंज स्थित देवछाया मल्टी में तीन फ्लैट, दो प्लॉट, 12 बैंक खाते, एक पेंट हाउस, पाकीजा लाइफ स्टाइल में एक निर्माणाधीन मकान और 50 हजार रुपए नकद मिले थे। डस्टर कार और दो पहिया वाहन, बीमा पॉलिसी और बैंक खाते भी पता चले थे।
RTI एक्टिविस्ट बोले- लोकायुक्त संगठन में भी विजिलेंस अफसर हों
आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे कहते हैं- मप्र लोकायुक्त और लोकायुक्त संगठन पर जितने करोड़ रुपए का बजट खर्च होता है, उतना पैसा भी भ्रष्ट सरकारी अफसरों से वसूल नहीं हो पाता क्योंकि सजा का प्रतिशत बेहद कम है। इसके लिए वर्षों से जमे लोकायुक्त अफसर जिम्मेदार हैं। लोकायुक्त संगठन में भी विजिलेंस अफसर होना चाहिए। 2011 में मप्र सरकार द्वारा बनाए राजसात कानून के तहत भी भ्रष्ट अफसरों की संपत्ति राजसात नहीं हो रही है
सजा का प्रावधान: 4 से 7 साल तक की सजा और जुर्माना
लोकायुक्त संगठन में लंबे समय तक सेवाएं दे चुके रिटायर्ड एसपीएस देवेश पाठक बताते हैं कि लोकायुक्त और आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो आर्थिक अपराध के मामलों में जांच के बाद कार्रवाई करने के अधिकार रखती हैं। इनके द्वारा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 (1) (डी) में भ्रष्ट लोकसेवकों के विरुद्ध जांच के बाद कार्यवाही की जाती है। इस एक्ट में आरोपी के दोष सिद्ध होने के बाद चार से सात साल तक की सजा और जुर्माना दोनों के प्रावधान हैं।
चुनाव के डर से कार्रवाई रुकी...
विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने के बाद से अब तक मध्यप्रदेश में लोकायुक्त संगठन ने एक भी अधिकारी-कर्मचारी के यहां छापा नहीं मारा है। इस बारे में लोकायुक्त संगठन से जुड़े अफसरों का कहना है कि चुनाव के दौरान इस तरह की कार्रवाई से बचने की कोशिश होती है ताकि कोई राजनीतिक रंग ना दिया जा सके।अभी लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने वाली है। लोकसभा चुनाव के बाद ही बड़ी कार्रवाई हो पाएगी।
पूर्व अधिकारी ने कहा- जांच में समय लगता है
लोकायुक्त के पूर्व डीजी अरुण गुर्टू ने बताया कि ट्रैप केस की विवेचना में ज्यादा समय नहीं लगता क्योंकि आरोपी रंगे हाथ पकड़ा जाता है। इसमें वीडियो और अन्य सबूत भी होते हैं, जिससे जांच जल्दी पूरी हो जाती है। दूसरी तरह के मामले अनुपातहीन संपत्ति से जुड़े होते हैं। इसमें देखना होता है कि जिसके यहां छापा पड़ा, उसकी संपत्ति कहां-कहां है? संपत्ति कब खरीदी और तब उसकी आमदनी के स्त्रोत क्या थे? यही कारण है कि ऐसे मामलों की जांच में अपेक्षाकृत ज्यादा समय लगता है।