वीरांगना रानी दुर्गावती के नाम पर समर्पित होगा एयरपोर्ट और फ्लाईओवर: मोहन यादव

रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में जबलपुर में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जबलपुर के एयरपोर्ट और नवनिर्मित फ्लाईओवर को वीरांगना को समर्पित किया है।

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Neel Tiwari
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अब जबलपुर के एयरपोर्ट का नाम रानी दुर्गावती विमानतल ( Rani Durgavati Airport ) और जबलपुर में लगभग 7 किलोमीटर लंबे फ्लाईओवर का नामकरण भी रानी दुर्गावती के नाम पर किया जाएगा। जबलपुर में बने प्रदेश के सबसे बड़े फ्लाईओवर के एक हिस्से का पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकार्पण किया था। महानद्दा से एलआईसी तक करीब सवा किलोमीटर का यह फ्लाईओवर जनता के लिए शुरू किया जा चुका है। 

वहीं मदन महल से दमोह नाका तक करीब 6 किलोमीटर का फ्लाईओवर निर्माण कार्य लगभग पूरा हो गया है। इसके साथ ही 5 अक्टूबर को रानी दुर्गावती के 500 वे जयंती वर्ष के पूरे होने पर संस्कृति मंत्रालय के द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। सरकार के द्वारा उत्कृष्ट कार्य करने के लिए 5 लाख रुपए का सम्मान रानी दुर्गावती के नाम पर देने की पहले ही घोषणा की जा चुकी है।

ऐसी थी वीरांगना रानी दुर्गावती की गाथा

शौर्य, अदम्य साहस और पराक्रम का प्रतीक गोंड राज्य की महारानी वीरांगना दुर्गावती ( mahaaraanee Veerangana Durgavati  ) वो वीर नारी थी, जिसमें अपने स्वाभीमान और देश की खातिर अकबर के जुल्मों के सामने झुकने से न केवल इंकार कर दिया था बल्कि डटकर मुकाबला किया, लेकिन 12 नारे नाला में विपरीत हालातो में विरोधी सी से गिरने पर खुद अपनी कटार सीने में घोंप कर आजादी के लिए कुर्बान हो गई।

मातृभूमि की रक्षा में प्राणों का बलिदान करके अपने लहू से इतिहास के पन्नों पर वीरांगना रानी दुर्गावती वीर नायिका का जो इतिहास लिखा है वह आज भी सुनहरे अक्षरों में दर्द है और वीरता के आगे श्रद्धा से सर नमन हो जाता है। 

  

16वीं शताब्दी में गोंडवाना और गढ़ा-मण्डला की महारानी दुर्गावती ने मुगल सम्राट अकबर की आक्रान्ता सेनाओं से अपनी मातृभूमि की रक्षा करने लोहा लिया और जबलपुर के निकट नर्रई नाला के पास वीरगति पाई। रानी के बलिदान को 461 वर्ष हो जाने के बाद भी लोग उनके शौर्य, अप्रतिम देशप्रेम, साहस, शासन नैपुण्य, प्रजा वात्सल्यता और प्राणोत्सर्ग को याद करते हैं। 

महोबा-बांदा में जन्मीं थीं वीरांगना

रानी दुर्गावती के प्रारंभिक जीवन के संबंध में अबुल फजल ने आइने अकबरी में लिखा है कि राजकुमारी दुर्गावती महोबा के पास राव परगने के चंदेल वंशीय शासक शालिवाहन की पुत्री थी। अंग्रेज इतिहासकार कनिंघम के अनुसार दुर्गावती कालिंजर के राजा कीरतसिंह की पुत्री थी। उनका जन्म सन 1524 में हुआ। रानी दुर्गावती का विवाह गढ़ा-मंडला के तेजस्वी सम्राट संग्रामशाह के ज्येष्ठ पुत्र दलपतिशाह के साथ हुआ था। उन्होंने अनेक मंदिर, मठों, धार्मिक प्रतिष्ठानों सहित प्रजाहित में जलाशयों का निर्माण, धर्मशाला और संस्कृत पाठशालाओं की व्यवस्था की। 

52 गढ़ों का राज्य था गोंडवाना

रानी नित्य नर्मदा स्नान करती थी और इसके लिए राज प्रसादों से नर्मदा तट तक कई गुप्त और अभेद्य रास्ते बनवाये गये थे। राज्य में संस्कृत पंडितों और कवियों को राज्य सम्मान प्राप्त था। रानी को विद्या, ज्ञानार्जन और साहित्य के प्रति अत्यधिक रुचि थी। दुर्गावती का राज्य छोटे-बड़े 52 गढ़ों से मिलकर बना था, जिसमें सिवनी, पन्ना, छिंदवाड़ा, भोपाल, तत्कालीन होशंगाबाद और अब नर्मदापुरम, बिलासपुर, डिंडौरी, मंडला, नरसिंहपुर, कटनी तथा नागपुर शामिल थे। मोटे तौर पर राज्य विस्तार उत्तर से दक्षिण 300 मील और पूर्व से पश्चिम 225 मील कुल 67 हजार 500 वर्ग मील के क्षेत्र में था।

दूसरे राज्यों पर कभी नहीं किया आक्रमण

रानी ने कभी दूसरों के राज्यों पर न तो आक्रमण किया और न साम्राज्यवादी तरीकों की विस्तारवादी नीति अपनाई। गोंड़वाने पर मालवा के बाजबहादुर ने आक्रमण किया। पहली बार के संघर्ष में बाजबहादुर का काका फतेह खां मारा गया और दूसरी बार कटंगी की घाटी में बाजबहादुर की सारी फौज का सफाया हुआ। बाजबहादुर की पराजय ने रानी दुर्गावती को गढ़ा मण्डला का अपराजेय शासक बना दिया। गढ़ा-मण्डला की समृद्धि से प्रभावित आसफ खां के नेतृत्व में दस हजार घुड़सवार और तोपों, गोला-बारूद से लैस मुगल सैनिकों ने दमोह की ओर से गोंडवाना राज्य पर हमला कर दिया।

खुद छाती पर घोंप ली थीं कटार

मंत्रियों ने रानी को पीछे हटने और संधि करने की सलाह दी। लेकिन स्वाभिमानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति से बात करना मुनासिब नहीं समझा। जब मुगल सेना का तोपखाना जबलपुर के बारहा ग्राम के पास नर्रई नाला के निकट पहुंचा तो रानी ने कूटनीति का परिचय देते हुए मंत्रियों से कहा कि रात्रि में ही मुगल सेना पर आक्रमण करना उचित होगा। रानी के सलाहकारों ने रानी की रणनीति का समर्थन नहीं किया। विषम परिस्थितियों में रानी स्वयं सैनिक वेश में अपने प्रिय हाथी सरमन पर सवार होकर दो हजार पैदल सैनिकों की टुकड़ी के साथ निकल पड़ी। 

युद्ध मे रानी और उनका किशोर पुत्र असाधारण वीरता के साथ मुगल सेना पर टूट पड़े। इसी बीच रानी की कनपटी और आंख के पास तीर लगने से रानी घायल हो गई। उन्हें लगा कि मुगलों की इस सेना को इस अवस्था में पराजित करना संभव नहीं है, तो उन्होंने युद्ध स्थल में स्वयं की छाती पर कटार घोप कर 24 जून 1564 को प्राणोत्सर्ग कर दिया। वीरांगना दुर्गावती की शासन व्यवस्था, रण-कौशल और शौर्य की अलग-अलग कालखंडों के इतिहासकारों ने अपने-अपने नजरिये से समीक्षा की है। संस्कृत में राजकवियों ने उन पर कई कविताएं भी लिखी है।

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