Ambedkar jayanti : भीमराव अंबेडकर और महान गणितज्ञ आर्यभट्ट की जयंती पर मुख्यमंत्री ने किया नमन

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने सोशल मीडिया एक्स पर बाबा साहेब अंबेडकर को जयंती पर किया नमन करते हुए लिखा : संविधान निर्माता, भारत रत्न बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती पर कोटि-कोटि नमन करता हूं।

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Reena sharma vijayvargiya
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MP News : आज देश दो ऐतिहासिक विभूतियों- डॉ. भीमराव अंबेडकर और प्रख्यात खगोलशास्त्री आर्यभट्ट की जयंती मना रहा है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सोशल मीडिया के जरिए दोनों महापुरुषों को नमन करते हुए अपने विचार साझा किए।

सोशल मीडिया पर सीएम का संदेश


सीएम यादव ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा- "भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर और प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक आर्यभट्ट को उनकी जयंती पर शत-शत नमन। डॉ. अंबेडकर ने समानता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों को आधार बनाकर आधुनिक भारत की नींव को मज़बूती दी। उनके विचार हम सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।"

आर्यभट्ट को सादर नमन


मुख्यमंत्री ने आगे कहा—"आर्यभट्ट ने शून्य की खोज कर गणित और खगोल विज्ञान के क्षेत्र में भारत को एक नई दिशा दी। उनका ज्ञान और योगदान भारतीय विज्ञान की गौरवशाली विरासत हैं। उनकी प्रेरणा से हम विज्ञान, गणित और नवाचार के नए क्षितिज तलाशते रहेंगे।"

डॉक्टर भीमराव से जुड़ी जानकारी 


डॉ. भीमराव अंबेडकर एक दलित परिवार से थे। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल ब्रिटिश सेना में सूबेदार थे और संत कबीर की विचारधारा से प्रभावित थे। अंबेडकर ने अपनी उच्च शिक्षा बंबई (वर्तमान मुंबई) के एल्फिंस्टन कॉलेज से प्राप्त की। इसके पश्चात उन्हें बड़ौदा राज्य के महाराजा सायाजीराव गायकवाड़ की ओर से छात्रवृत्ति प्राप्त हुई। कुछ समय तक बड़ौदा में कार्य करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए। वहां उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से एमए और पीएचडी की डिग्रियां अर्जित कीं।

भीमराव अंबेडकर- एक प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व अमेरिका से ली उच्च शिक्षा डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल ब्रिटिश आर्मी में सूबेदार थे और संत कबीर के अनुयायी थे। भीमराव ने अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई बंबई (अब मुंबई) के एल्फिंस्टन कॉलेज से पूरी की। 

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डॉ. भीमराव अंबेडकर के बारे में...

शिक्षा के लिए चले गए अमेरिका 

डॉ. अंबेडकर मध्य प्रदेश के दलित परिवार से थे। उनके पिता रामजी मालौजी सकपाल ब्रिटिश आर्मी में सूबेदार थे और संत कबीर को मानते थे। भीमराव अंबेडकर ने अपने स्नातकोत्तर की पढ़ाई उस समय के बंबई के एल्फिंस्टन कॉलेज से की और बरोड़ा के राजा सायाजिराओ गाइकवाड स्कॉरलशिप हासिल की। इसके बाद अंबेडकर ने कुछ समय बरोड़ा में भी काम किया। स्कॉलर के रूप में चुने जाने के बाद डॉ. भीमराव अंबेडकर आगे की शिक्षा के लिए यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका चले गए। कोलंबिया यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमए और पीएचडी की।

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सोशल वर्क जीवन का उद्देश्य 

विदेशी शिक्षा से सशक्त सोच का विकास

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म एक दलित परिवार में हुआ, जिनके पिता रामजी सकपाल ब्रिटिश सेना में सूबेदार पद पर कार्यरत थे और संत कबीर की विचारधारा से प्रेरित थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा एल्फिंस्टन कॉलेज, मुंबई से प्राप्त की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें बड़ौदा राज्य के महाराजा सायाजीराव गायकवाड़ से छात्रवृत्ति प्राप्त हुई। कुछ समय बड़ौदा में नौकरी करने के बाद, वे अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी गए, जहां उन्होंने एमए और पीएचडी की उपाधियाँ हासिल कीं।

भारत के संविधान के शिल्पकार

आज ही के दिन जन्मे डॉक्टर अंबेडकर अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे। वे संविधान निर्माण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए प्रारूप समिति के अध्यक्ष बने। उन्हें भारतीय संविधान का जनक कहा जेाता है। सामाजिक असमानताओं के विरुद्ध संघर्ष करते हुए, उन्होंने शिक्षा, कानून और समाज सुधार के क्षेत्र में ऐतिहासिक योगदान दिया। भारत सरकार ने उन्हें 1990 में मरणोपरांत 'भारत रत्न' से सम्मानित किया।

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इसके बाद उन्हें बड़ौदा के राजा सायाजीराव गायकवाड़ की ओर से छात्रवृत्ति मिली। उन्होंने कुछ समय बड़ौदा में कार्य भी किया। आगे की पढ़ाई के लिए वे अमेरिका गए, जहां कोलंबिया यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमए और पीएचडी की उपाधियां प्राप्त कीं। संविधान निर्माता और भारत रत्न 14 अप्रैल 1891 को जन्मे डॉ. अंबेडकर अपने माता-पिता की 14वीं और सबसे छोटी संतान थे। वे भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष बने और उन्हें 'भारतीय संविधान का जनक' कहा जाता है। अपने जीवन में अनेक संघर्षों का सामना करने के बावजूद, उन्होंने शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया। 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 

आज डॉ. भीमराव अंबेडकर और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट की जयंती, सीएम ने सोशल मीडिया पर विचार साझा किए। आज भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर और प्रख्यात खगोलशास्त्री आर्यभट्ट की जयंती के अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इन महान विभूतियों को स्मरण कर नमन किया।

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सीएम डॉ. यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपने विचार साझा करते हुए लिखा-

"डॉ. अंबेडकर ने समता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के मूल्यों के आधार पर भारत निर्माण की मजबूत नींव रखी। उनके विचार आज भी हम सभी के लिए प्रेरणा और गर्व का विषय हैं। मैं उन्हें शत-शत नमन करता हूं।"

आर्यभट्ट को सादर प्रणाम

मुख्यमंत्री ने आर्यभट्ट को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, "मैं उन्हें सादर प्रणाम करता हूं। उन्होंने शून्य की खोज कर गणित और खगोलशास्त्र में क्रांति ला दी। उनका विज्ञान और बुद्धि के क्षेत्र में योगदान हम भारतीयों के लिए गर्व का विषय है। उनके विचारों से प्रेरणा लेकर हम विज्ञान, गणित और नवाचार के नए आयाम गढ़ते रहेंगे।"

डॉ. भीमराव अंबेडकर:- एक प्रेरणास्रोत व्यक्तित्व

अमेरिका से ली उच्च शिक्षा

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था। उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल ब्रिटिश आर्मी में सूबेदार थे और संत कबीर के अनुयायी थे। भीमराव ने अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई बंबई (अब मुंबई) के एल्फिंस्टन कॉलेज से पूरी की। इसके बाद उन्हें बड़ौदा के राजा सायाजीराव गायकवाड़ की ओर से छात्रवृत्ति मिली। उन्होंने कुछ समय बड़ौदा में कार्य भी किया। आगे की पढ़ाई के लिए वे अमेरिका गए, जहां कोलंबिया यूनिवर्सिटी से उन्होंने एमए और पीएचडी की उपाधियां प्राप्त कीं।

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लिखा 'महासिद्धांत' नामक ग्रंथ 


आर्यभट्ट का जन्म ईस्वी सन् 476 में कुसुमपुर (पटना) में हुआ था। यह सम्राट विक्रमादित्य द्वितीय के समय हुआ थे। इनके शिष्य प्रसिद्ध खगोलविद् वराह मिहिर थे। आर्यभट्ट ने नालंदा विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर मात्र 2& वर्ष की आयु में 'आर्यभट्टीय' नामक एक ग्रंथ लिखा था। उनके इस ग्रंथ की प्रसिद्ध और स्वीकृति के चलते राजा बुद्धगुप्त ने उनको नालंदा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया था। आर्यभट्ट के बाद लगभग 875 ईस्वी में आर्यभट्ट द्वितीय हुए, जिन्होंने ’योतिष पर 'महासिद्धांत' नामक ग्रंथ लिखा था। आर्यभट्ट द्वितीय गणित और ’योतिष दोनों विषयों के आचार्य थे। इन्हें 'लघु आर्यभट्ट' भी कहा जाता था।

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आर्यभट्ट ने सूर्य से विविध ग्रहों की दूरी के बारे में बताया है। वह आजकल के माप से मिलता-जुलता है। आज पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर मानी जाती है। इसे कहा जाता है। इस अनुपात के आधार पर निम्न सूची बनती है।

बुध : आर्यभट्ट का मान 0.&75 एयू - वर्तमान मान 0.&87 एयू
शुक्र : आर्यभट्ट का मान 0.725 एयू - वर्तमान मान 0.72& एयू
मंगल : आर्यभट्ट का मान 1.5&8 एयू - वर्तमान मान 1.52& एयू
गुरु : आर्यभट्ट का मान 4.16 एयू - वर्तमान मान 4.20 एयू
शनि : आर्यभट्ट का मान 9.41 एयू - वर्तमान मान 9.54 एयू

आर्यभट्ट ने गणित में कई महत्वपूर्ण कार्य किए, जिनमें मुख्य रूप से निम्नलिखित हैं-

- शून्य का उपयोग :- आर्यभट्ट ने शून्य (0) का उपयोग किया और इसे गणना के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया।

- पाइथागोरस प्रमेय का प्रारूप :- आर्यभट्ट ने सही त्रिकोणों में पाइथागोरस प्रमेय को समझा और उसे विस्तार से बताया।

- वर्गमूल और घातांक :- उन्होंने वर्गमूल, घातांक और अंश-मूल के बारे में विस्तार से कार्य किया।

संख्याओं की श्रेणियां :- उन्होंने संख्या पद्धति के बारे में अनेक कार्य किए और इसे गणितीय समीकरणों में प्रयोग किया।

 

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खगोलशास्त्र में योगदान


आर्यभट्ट का सबसे बड़ा योगदान उनके खगोलशास्त्र से संबंधित था

  • पृथ्वी का गोलाकार रूप : उन्होंने पृथ्वी को गोल बताया और यह विचार प्रस्तुत किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, जिससे दिन और रात का निर्माण होता है।
  • सूर्य और चंद्रमा का ग्रहण : उन्होंने सूर्य और चंद्र ग्रहणों के कारणों को समझाया और कहा कि ये ग्रहण तब होते हैं जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा एक सीध में होते हैं।
  • ग्रहों की गति और कक्षाएँ : आर्यभट्ट ने ग्रहों की गति और उनके कक्षों के बारे में भी विश्लेषण किया।
  • कालगति : उन्होंने खगोलशास्त्र के अध्ययन में समय की गणना के महत्व को समझा और शास्त्रों में एक सटीक कैलेंडर प्रणाली की नींव रखी।
  • गणितीय विज्ञान में अतुलनीय योगदान

  • आर्यभट्ट के ग्रंथ जैसे कि ‘आर्यभटीय’, ‘सूर्य सिद्धांत’, ‘बोलिस सिद्धांत’ और ‘रोमक सिद्धांत’ आज भी खगोलशास्त्र और गणित के क्षेत्र में मील के पत्थर माने जाते हैं। उन्होंने दशमलव प्रणाली को परिभाषित किया, पाई का सन्निकट मान ज्ञात किया और ‘साइन’ तथा ‘कोष्टक’ जैसे जटिल गणितीय विचारों की नींव रखी। बीजगणित में उनके योगदान अद्वितीय रहे हैं। उन्होंने समीकरणों के माध्यम से कठिन गणितीय समस्याओं को हल करने की पद्धतियों को सरल रूप में प्रस्तुत किया, जो आज के गणितीय अध्ययन में भी प्रासंगिक हैं।

 

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