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Dhirendra Shastri The Sootr Anand Pandey Photograph: (thesootr)
प्रदेश और देश का सबसे चर्चित चेहरा। वाकपटु, सुदर्शन व्यक्तित्व, मोहिनी मुस्कान, युवा तरुणाई, बेहद प्रभावशाली संवाद शैली और ईश्वरीय कृपा के धनी भी। हम बात कर रहे हैं बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की। जनता उनसे लाड़ करती है, दुलार करती है। वे यूथ आइकॉन हैं... यही वे तमाम कारण हैं, जो उन्हें मौजूदा दौर का सबसे आकर्षक क्राउड पूलर बनाते हैं।
'द सूत्र' के एडिटर इन चीफ आनंद पांडे ने धीरेंद्र शास्त्री से संभल से सत्ता तक, ज्ञान से अध्यात्म तक और राजनीति से उनके रेल तक के किस्से पर विस्तृत बातचीत की। कभी ठहाकेदार हंसी, कभी मंद मुस्कान और कभी धीर गंभीर अंदाज में उन्होंने हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया। हिन्दू राष्ट्र के सवाल पर शास्त्री ने कहा, मेरे अनेकों लक्ष्य में एक हिन्दू राष्ट्र भी है। एक लक्ष्य यह भी है कि इस देश से भेदभाव खत्म होना चाहिए। एक लक्ष्य यह है कि इस देश में न कोई अमीर हो और न कोई गरीब हो। हमारा एक लक्ष्य है कि व्यक्ति तर्कवादी हो। ज्ञान से भी भरा हो और विज्ञान से भी। माथे पर भले तिलक न हो, पर उसके चक्कर में हिन्दुत्व कहीं भी फीका न हो।
पढ़िए बातचीत के खास अंश...
सवाल: हिन्दू राष्ट्र का लक्ष्य आज की तारीख में हमारे संविधान के हिसाब से असंभव सा काम नहीं है?
शास्त्री: इस संसार में असंभव कुछ भी नहीं है। जब चंद्रयान 3 लॉन्च होकर सफल हो सकता है। जब एक दिव्यांग व्यक्ति दौड़ सकता है। नरेंद्र नाम का छोटा सा बालक स्वामी विवेकानंद बन सकता है। छोटे से अमेरिका में जन्म लेकर अनेक बार चुनाव हारने के बावजूद एक बालक अब्राहम लिंकन बन सकता है। तुलसीदास जी enlighted (प्रबुद्ध) हो सकते हैं। मीरा को कृष्ण मिल सकते हैं। सूरदास को गोविंद के दर्शन की प्राप्ति हो सकती है। रसखान, रहीम, रैदास को भगवत प्राप्ति हो सकती है। इसलिए हमें नहीं लगता कि दुनिया में कुछ भी असंभव है। असंभव मात्र एक शब्द है। न हमें पोस्टर बॉय बनना है, न हमें तालियां चाहिए, न हम यह कहते हैं कि ये करके मानेंगे। हमने तो अपने विचारों की क्रांति प्रकट की है। लोगों के मन में बीज बो देंगे। हम तो यही कहते हैं कि जब 500 वर्ष श्रीराम मंदिर को लग गए, 1857 से लेकर 1947 तक देश को आजाद होने में लग गए। हमें भी दो सौ, तीन सौ साल लगें, तो हम भी हम पीछे नहीं हटेंगे।
सवाल: बिना राजनीतिक ताकत के हिन्दू राष्ट्र के लक्ष्य को आप कैसे हासिल कर पाएंगे? संसद में बिना संख्या बल के यह कैसे पूरा होगा?
शास्त्री: देखिए, राजनीति कुछ है, पर सब कुछ नहीं है। देश को चलाने के लिए राजनीति जरूरी है, पर राजनीति को चलाने के लिए राजनेता बनना जरूरी नहीं है। आज जो युवा सुन रहे हैं, कल वो देश का गौरव होंगे और धोखे से यदि वे समाज में राजनीतिक पदों पर प्रतिष्ठित होते हैं तो वे निश्चित तौर पर हमारे विचारों को सुनकर संसद में रखेंगे। हमारी तैयारी यह नहीं है कि हम संसद में अपने सांसद भेजें, हमारी तैयारी यह है कि हम सांसदों के दिल में अपने विचार पहुंचा सकें।
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सवाल: बॉलीवुड को लेकर कंट्रोवर्सी चल रही है। अन्नू कपूर कहते हैं, बॉलीवुड ने हिन्दू धर्म को बहुत खराब ढंग से पिक्चर किया है, आप कैसे व्याख्या करते हैं, इसकी?
शास्त्री: 1980 के दशक में एक पिक्चर आई थी, संतोषी मां। कहा जाता है कि करीब दो साल तक शुक्रवार को टमाटर नहीं बिके। पिक्चरों का बड़ा क्रेज होता है। हमें इस बात का दुख है कि भारतीय सिने जगत के कुछ लोगों ने गलती यह की है कि गुंडा के माथे पर तिलक दिखाया और टोपी वालों को ईमानदार बताया। हम इस बात की तकलीफ है कि कुछ लोगों ने गुनाहों का देवता बनाया, पर गुनाहों का मौलाना नहीं बनाया। हमें सिनेमा जगत के कुछ लोगों पर इसलिए भी बहुत ज्यादा दिक्कत होती है, क्योंकि हवस का पुजारी हो जाता है, पर हवस का हाजी, मौला या पादरी नहीं होता। ये प्रायोजित तरीके से ब्रेन को कन्वर्ट करने के लिए किया गया है। इसमें पंडे पाखंडी होते हैं, महात्मा पाखंडी होते हैं, सेठ लालची होते हैं, ठाकुर बहुत सामंतवादी होते हैं और हिंसावादी होते हैं। ऐसे दिखाए गए, ताकि हिन्दुओं में ही फूट डल जाए। भविष्य की प्री प्लानिंग थी, लेकिन देखिए, देश बदला, समय बदला, भाग्य बदला और अभिनय जगत के लोग बदले, स्टोरी लिखने वाले बदले... अब देश में ऐसा समय आ गया कि द कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्में बनती हैं।
सवाल: लेकिन, क्या आपको नहीं लगता कि इसके लिए हिन्दू की दोषी हैं? इसके दो बड़ी वजह हैं, एक तो पटाखों पर भगवान की फोटो होती है, परखच्चे उड़ जाते हैं। दूसरा, आपने कई जगह देखा होगा कि बिल्डिंग्स में टाइल्स लगते हैं और वे भी भगवानों के, ताकि कोई वहां गंदगी न करे। हम तो खुद बेकद्री कर रहे हैं, अपने समाज की, आप कैसे देखते हैं इसे?
शास्त्री: आपने जो सवाल किया, इसकी जरूरत तब नहीं पड़ती, जब देश में हिन्दू जाग्रत होते। निश्चित रूप से इनके अंदर कायरता है। ये डरे हुए हैं, डरपोक हैं। इसलिए ये इतना सह पाए और सह रहे हैं। आपने तो ये दो तर्क दिए, हम इसकी उल्टी बात कहते हैं। आपने राम बूट हाउस सुना, आपने कभी मौला बूट हाउस नहीं सुना होगा। श्याम बूट हाउस मिल जाएगा आपको, लेकिन कभी अल्लाह बूट हाउस नहीं मिलेगा या ईसामसीह बूट हाउस नहीं मिलेगा। इससे पता चलता है कि वे अपने धर्म और भगवान के प्रति अलर्ट और सजग हैं और हम कितने बेफिजूली हैं कि जिन्हें हम आराध्य मानते हैं, उनकी कितनी कद्र करते हैं।
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सवाल: ये जो बात उठ रही है, इसके पीछे आपको क्या लगता है? बीजेपी सरकार सेंट्रल में है, वो वजह है या बहुत सारे धर्माचार्य मैदान में आ गए हैं, वो जागरुक कर रहे हैं?
शास्त्री: जहां तक सब जानते हैं कि हम राजनीति पर कोई टिप्पणी नहीं करते, 2014 में सेंट्रल में जो गर्वंमेंट आई है, उससे निश्चित रूप से बदलाव नजर आता है। सनातन का प्रभाव बढ़ा है। हिन्दुत्व के जो पक्षधर लोग हैं, उनके कारण यह हुआ है। 2014 के पहले ही यह मूवमेंट शुरू हो गया था, इसमें आरएसएस की अपनी एक निजी भूमिका है।
सवाल: अयोध्या से लेकर संभल तक सर्वे और खुदाई आदि चल रही है, डॉ.मोहन भागवत ने इसमें बयान दिया कि ये कहां तक करोगे, सब जगह खुदाई करोगे क्या? तो इस तरह आरएसएस चीफ स्वयं इस तरह की बात कर रहे हैं, दूसरी तरफ कुछ लोगों का मानना है कि हिन्दू अब जाग गया है, ये सब होता रहेगा। इस पूरे मामले में आपका क्या टेक है?
शास्त्री: औरंगजेब, बाबर, चंगेज खान, मोहम्मद गौरी के समय में जितने मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाया गया, वहां पुन: मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा करवाना ही सनातन का स्वर्ण काल है। ये बुरा नहीं है। हम अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस ले रहे हैं। हम मस्जिदों को नहीं तोड़ना चाहते, मस्जिदों पर सर्वे कराना बेकार है, लेकिन जिन मस्जिदों में मंदिर हैं, वहां पर सर्वे कराकर पता लगेगा। इस्लाम धर्म के लोगों को आगे आना चाहिए कि जहां-जहां मंदिर थे, वहां मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं, वहां पर दोनों हाथ खोलकर उन्हें स्वागत करना चाहिए, इससे हम लगता है देश में शांति आएगी।
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सवाल: दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि हमारे जो नोट (करेंसी) है, उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की फोटो छपवानी चाहिए, उनके इस बयान को आप कैसे देखते हैं?
शास्त्री: ये उनकी निजी आस्था भी हो सकती है, पर यदि चुनाव के समय पर बोल रहे हैं तो राजनीति है। ये बात यदि वो पांच साल पहले बोलते तो समझ आता। वे आज बोल रहे हैं या पहले से कह रहे हैं... हम उनके खिलाफ या पक्ष में नहीं हैं। हम तो लोगों के दिलों में लक्ष्मी—गणेश की तैयारी कर रहे हैं। नोटों और वोटों में लक्ष्मी—गणेश का प्रयोग नहीं होना चाहिए। गणेश जी से आप सीख क्या रहे हैं, ये महत्वपूर्ण है, उनकी मूर्ति कितनी बड़ी है, यह महत्वपूर्ण नहीं है। हम लक्ष्मी जी और गणेश जी को विचारों में रखें, नोटों और वोटों में न रखें।
सवाल: हम यदि इतिहास देखते हैं तो धर्मों ने समाज का जितना नुकसान किया है, जितना लड़वाया है, उतना किसी ने नहीं किया?
शास्त्री: पूरे विश्व का यही हाल है। चाहे वो यहूदी हों, पारसी हों, यूनान हों या अमेरिकन्स हों, पूरे विश्व का यही हाल है। हर विचारधारा अपने आप को बड़ा साबित करने के लिए लड़ती है। हम एक बात के बहुत खिलाफ हैं कि आप कितने पुराने हैं। क्योंकि शराब नहीं है, शराब पर चर्चा होती है कि कितनी पुरानी है। धर्म एक व्यवस्था है, धर्म एक धारणा है, धर्म जीवन जीने की एक शैली है। ये पुराने और और नए से कोई फर्क नहीं पड़ता। अस्तित्व सनातन काल का आदिकाल से था है और है, पर इस बात पर हमें लड़ना नहीं है कि हम आदिकाल से हैं। हमें इस बात पर जोर देना है कि आदिकाल से थे और आदि तक रहेंगे, लेकिन कंट्रोवर्सी नहीं, किसी का हनन करके नहीं। हम इस्लाम के कुछ लोगों के खिलाफ हैं। ईसायित के कुछ नियमों के खिलाफ हैं और यह इसलिए क्योंकि आप कन्वर्जन पर जोर नहीं दे सकते। अगर ईश्वर को मुसलमान बनाना होता तो वो काटकर ही भेजता। अगर ईश्वर को पादरी बनाना होता तो वो क्रॉस का चिह्न लटकाकर भेजता। उसे जो बनाना है, वो बना दिया। अब उसकी व्यवस्था में अब छेड़छाड़ मत करो। इसके हम बहुत खिलाफ हैं और यही चीज समाज को तोड़ती है। एक ही चीज है जो पूरे विश्व को बचा सकती है कि न कोई बड़ा और न कोई छोटा। सबसे बड़ा धर्म है इंसानियत। आजकल इंसान बहुत हैं, इंसानियत मर गई। हमारे गांव के कुत्तों ने एक दिन काटना बंद कर दिया तो हमने पूछा कि क्या बात है? आजकल कालू, टोमी तुम काटते नहीं हो? तो टोमी ने कहा, महाराज आदमी ही आदमी को इतना काट रहा है, हमारी जरूरत नहीं है।
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सवाल: आप दादा महाराज की बात करते हैं, लेकिन हमारे यहां कहा जाता है कि प्रतिभा विरासत में नहीं मिलती, लेकिन आपको तो विरासत में बहुत कुछ मिल गया, इसकी व्याख्या कैसे करते हैं आप?
शास्त्री: हम अक्सर एक बात कहते हैं कि अच्छा और सच्चा गुरु किसी भी रंक को राजा बना सकता है। श्रेष्ठ गुरु किसी को मिल जाएं तो वे किसी भी साधारण से कांच को बेहतरीन मूल्यवान आभूषण बनाकर प्रस्तुत कर सकते हैं, क्योंकि गुरु होते हैं पारस और हम सब हैं लोहा। सच्चे और कच्चे की गुरु की पहचान यह है कि जो अपनी पूजा करवाए वो कच्चा है और जो आपकी बांह पकड़कर परमात्मा से मिलवाने की चर्चा करे, वह सच्चा है।
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सवाल: हमारे यहां वृद्धाश्रम बहुत खुल रहे हैं, इस समस्या को आप कैसे देखते हैं और क्या इसका कोई निराकरण भी आपको नजर आता है?
शास्त्री: निराकरण तो हैं पर कोई करना नहीं चाहता। एक सज्जन हमें मिले और बोले कि काश बेटियों को मां-बाप को रखने का अधिकार होता तो देश में वृद्धाश्रम न होते। हमने उन्हें कहा कि नहीं...थोड़ा उल्टा कर दीजिए। जो बहुएं घर में आती हैं, वो सास-ससुर को मां-बाप मानने लगें तो शायद वृद्धाश्रम नहीं खुलेंगे। हमारे देश में इंसान तो हैं, पर इंसानियत खत्म हो रही है। मकान बड़े हो रहे हैं, दिल छोटे हो रहे हैं। लोगों के पास मोबाइल और पड़ोसी के लिए समय है, पर अपनों के लिए नहीं। लोगों को कुत्तों से प्यार बढ़ गया है और इंसानों से घट गया है। यहां चित्र ज्यादा और चरित्र कम हो गया है। रील की जिंदगी बढ़ गई है, रीयल की जिंदगी घट गई है। पहले के जमाने में मकान दूर होते थे, लेकिन दिल पास-पास होते थे। आजकल फ्लैट में दीवारें बगल-बगल में हो गईं, पर दिल दूर-दूर हो गए। वृद्धाश्रम, अनाथालय इनके बढ़ने का सबसे बड़ा कारण यही है।
सवाल: आप इन दिनों ऊर्जा संचय समागम कर रहे हैं, क्या है ये, थोड़ा विस्तार से बताएं?
शास्त्री: तन कितना भी तंदुरुस्त हो, पर मन कमजोर हो तो बात नहीं बनती। अब तक बॉडी डिटॉक्स पर बहुत लोगों ने काम किया, हमने जो पद्धति अपनाई है, वह माइंड डिटॉक्स को लेकर है। यह विज्ञान भी है और स्प्रिचुअल भी है। इसमें हमने प्राचीन वेदों के प्रयोगों को रखा है, इसमें विचारों की और बुद्धि की शुद्धि की जाती है। हमने इसे ब्रेन डिटॉक्स नाम दिया है। इसे दुनिया में तब सामने लाएंगे, जब इसके 100 सेशन सफल हो जाएंगे। अभी तीन सेशन हुए हैं। ये अद्भुत प्रयोग है। लोग आते हैं और नई उर्जा से भरकर जाते हैं, इसलिए इस पद्धति का नाम है ऊर्जा संचय समागम।
हम आपको बता देते हैं कि बागेश्वर धाम एक ऐसा तीर्थ है, जो केवल अध्यात्म की चर्चा नहीं करते, केवल हिन्दुत्व की चर्चा नहीं करते, बल्कि हम समाज को जोड़ने की भी बात करते हैं। हमारे यहां दान पेटियों में आने वाली चढ़ोतरी से गरीब बेटियों का घर बसाया जाता है। पांच साल से यह कार्यक्रम चल रहा है। इस वर्ष 251 बेटियों का विवाह होगा, इसमें 108 बेटियां आदिवासी परिवारों की होंगी। सभी दूल्हे घोड़ी पर चढ़ेंगे।
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