अदालत से जमानत न मिलने पर लगी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका, हाईकोर्ट के इतिहास में संभवतः पहला मामला

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई है। संभवत: यह अपनी तरह का पहला मामला है। क्योंकि इसके पहले किसी भी कोर्ट में जमानत खारिज होने के बाद अपील की बजाय बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई गई हो और या उस पर सुनवाई हुई हो...

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Neel Tiwari
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जबलपुर हाईकोर्ट ( High Court ) में चीफ जस्टिस की युगल पीठ में एक महत्वपूर्ण और संभावित रूप से ऐतिहासिक कानूनी मामले में सुनवाई हुई। हाईकोर्ट में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus petition) दायर की गई है, जिसमें याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने जमानत याचिका खारिज होने के बाद अपने मुवक्किल को अवैध रूप से हिरासत में रखने का आरोप लगाया है। 

गलत तथ्यों के आधार पर खारिज जमानत के खिलाफ याचिका

आमतौर पर जमानत खारिज होने पर उच्चतर अदालत में अपील दायर की जाती है, लेकिन इस मामले में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने एक अलग रास्ता अपनाते हुए अदालत में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई है। अधिवक्ता का तर्क है कि उनके मुवक्किल की जमानत याचिका को गलत तथ्यों और आधारों पर खारिज किया गया, इसके परिणामस्वरूप उनके मुवक्किल को अवैध रूप से जेल में रखा जा रहा है। इस मामले में याचिकाकर्ता के अधिवक्ता से कोर्ट ने यह पूछा कि क्या उन्होंने पिछले फैसले के खिलाफ अपील दायर की है या यह मामला सुप्रीम कोर्ट गया है? अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता का भरण पोषण करने वाले उसके पिता ही जेल में है। इसलिए वह सुप्रीमकोर्ट तक जाने की स्थिति में नहीं है और यह मामला ऐसे हजारों लोगों से जुड़ा हुआ है जो अदालतों में जमानत का इंतजार कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने यह बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई है। आपको बता दें कि संभवत: यह अपनी तरह का पहला मामला है। इसके पहले किसी भी कोर्ट में कभी ऐसा मामला सामने नहीं आया है। जिसमें जमानत खारिज होने के बाद अपील की बजाय बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई गई हो और उस पर सुनवाई हुई हो।

ये था पूरा मामला

सुविधा लैंड डेवलपर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड पर निवेश का झांसा देकर लोगों से ठगी करने के आरोप लगे थे। जिसके बाद साल 2021 में जिबराखन साहू सहित कुल 6 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इन सभी 6 लोगों को सुविधा लैंड डेवलपर कंपनी का डायरेक्टर बताया गया था, जबकि जिबराखन साहू उस कंपनी में केवल प्रमोटर थे। इसलिए ही जिबराखन साहू की बेटी ने यह याचिका दायर की है।

गलत तथ्यों पर जमानत न मिलना है अवैध कारावास

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने अपनी याचिका में मौलिक अधिकारों के हनन की बात कही है और इस संबंध में सुप्रीमकोर्ट के पूर्व ऐसे आदेशों का हवाला दिया जिनमे कोर्ट द्वारा अवैधानिक तरीके से जेल में बंद पीड़ितों को राहत दी है। उन्होंने तर्क दिया कि इस मामले में उनके मुवक्किल के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, जिसे तत्काल न्यायिक समीक्षा की आवश्यकता है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने यह तथ्य रखा कि इस मामले में जहां पुलिस खुद ही यह दस्तावेज पेश कर रही है कि, आरोपी बनाए गए जिरबराखन साहू प्रमोटर है, वहीं पुलिस की चार्ज शीट में उन्हें डायरेक्टर बताया जा रहा है। वहीं सेबी से मिले दस्तावेजों से भी इसी बात की पुष्टि होती है कि जिबराखन कंपनी के डायरेक्टर नहीं है। इस मामले में मजिस्ट्रेट को की गई शिकायत में भी जिबराखन लाल साहू भी शिकायतकर्ता है, लेकिन उसके बाद भी पुलिस ने उन्हें ही आरोपी बना दिया। अधिवक्ता ने यह आरोप लगाए कि जमानत याचिका की सुनवाई के समय भी यह सभी तथ्य कोर्ट के सामने रखे गए थे पर कोर्ट ने इन्हें नजरअंदाज करते हुए जमानत खारिज कर दी। इसके बाद आरोपी को जेल में रखे जाने को अवैध बताते हुए यह याचिका लगाई गई है।

हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस

मंगलवार 27 अगस्त को एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और विनय सराफ की युगल पीठ ने सुनवाई के बाद, प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया है और उनसे इस मामले में जवाब मांगा है। इस याचिका पर अगली सुनवाई  23 सितंबर को होगी।

ऐतिहासिक साबित हो सकता है फैसला

कानूनी विशेषज्ञ इस मामले को गंभीरता से देख रहे हैं, क्योंकि यह हाईकोर्ट के इतिहास में पहली बार हो सकता है। जब किसी व्यक्ति ने जमानत खारिज होने के बाद बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का सहारा लिया हो। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में न्यायालय किस प्रकार का निर्णय देता है।

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