भोपाल-इंदौर में एसीपी को मजिस्ट्रेट पॉवर ही नहीं, ​फिर भी काम चालू आहे... सरकार बेखबर

मध्यप्रदेश में 1 जुलाई से अब तक भोपाल और इंदौर में जितने भी एसीपी स्तर के अधिकारियों ने एक्जीक्यूटिव मैजेस्टेरियल अधिकारों का उपयोग कर जो भी फैसले किए हैं, वे सारे अवैध हैं...

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Harish Divekar
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BHOPAL. राजधानी भोपाल और इंदौर में असिस्टेंट ​कमिश्नर ऑफ पुलिस यानी एसीपी अवैध तरीके से एक्जीक्यूटिव मैजेस्टेरियल अधिकारों का उपयोग कर रहे हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि 1 जुलाई 2024 से लागू हुए नए कानून में इनसे मजिस्ट्रेट के अधिकार छीन लिए गए हैं। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 15 में साफ है कि अब एक्जीक्यूटिव मैजेस्टेरियल पॉवर एसपी स्तर से नीचे के अफसरों को नहीं दिए जाएंगे। यानी भोपाल और इंदौर पुलिस ​कमिश्नर सिस्टम में जो एसडीएम के पॉवर पुलिस को मिले हैं, उनका उपयोग सिर्फ डीसीपी यानी डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस ही कर सकेंगे। 
ऐसे में 1 जुलाई से अब तक भोपाल और इंदौर में जितने भी एसीपी स्तर के अधिकारियों ने एक्जीक्यूटिव मैजेस्टेरियल अधिकारों का उपयोग कर जो भी फैसले किए हैं, वे सारे अवैध हैं। यदि कोई पक्षकार इस मामले में कोर्ट में एसीपी के फैसले को चुनौती देता है तो अदालत इन्हें तत्काल अवैध करार दे देगी। इससे सरकार की भी किरकिरी होगी। हालांकि, इस पूरे मामले में एसीपी स्तर के अधिकारियों का कोई दोष नहीं है, क्योंकि पुराने कानून में ये अधिकार उन्हीं के पास था। अब नए कानून में राज्य सरकार ने इसका नोटिफिकेशन जारी नहीं किया है। 

पुलिस मुख्यालय और सरकार असमंजस में

नए कानून में डीसीपी को मजिस्ट्रेट पॉवर न दिए जाने को लेकर जब 'द सूत्र' ने पड़ताल की तो पता चला कि इस मामले को लेकर पुलिस मुख्यालय और राज्य सरकार के अफसरों में असमंजस है। दरअसल, राज्य सरकार ने सीआईडी को नोडल बनाया है। सीआईडी एडीजी पवन श्रीवास्तव का मानना है कि सेविंग क्लॉज में साफ लिखा है कि राज्य सरकार जो नोटिफिकेशन पहले जारी कर चुकी है, उन पर नए कानून में हुए बदलाव का असर नहीं होगा। जब उनसे पूछा गया कि सेविंग क्लॉज में साफ लिखा है कि स्पेशल मजिस्ट्रेट को छोड़कर ये लागू होगा। उस पर एडीजी श्रीवास्तव का जवाब था कि मजिस्ट्रेट शब्द न्यायिक में आता है, उसमें यदि एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट लिखा होता तो ये प्रशासनिक स्तर पर लागू होता। 

विशेषज्ञों ने कहा, गलती कर रही सरकार

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इस मामले में 'द सूत्र' ( Thesootr ) ने लोक अभियोजन के डिप्टी डायरेक्टर पद से रिटायर हुए विमल कुमार छाजेड़ से बात की। उन्होंने साफ कहा कि अफसर सेविंग क्लॉज की गलत व्याख्या कर रहे हैं। सेविंग क्लॉज में स्पेशल मजिस्ट्रेट लिखा है ना कि मजिस्ट्रेट। न्याय पालिका में स्पेशल मजिस्ट्रेट नाम का कोई ​पद नहीं होता। उन्होंने कहा, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 15 में भी विशेष कार्यपालिक मजिस्ट्रेट लिखा हुआ है। ऐसे में राज्य सरकार को नोटिफिकेशन अनिवार्य रूप से जारी करना चाहिए, वरना भोपाल-इंदौर में एसीपी मजिस्ट्रेट के रूप में की जा रही सुनवाई अवैध श्रेणी में रहेगी। यदि कोई न्यायालय में इसे चुनौती देगा तो सारे आदेश रद्द हो जाएंगे। 

कई राज्य कर चुके हैं नोटिफिकेशन

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कई राज्य नए कानून के अनुसार नोटिफिकेशन जारी कर चुके हैं, जिसमें एसपी यानी डीसीपी स्तर से नीचे के अफसर एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के अ​धिकारों का उपयोग नहीं कर पाएंगे। 'द सूत्र' के पास महाराष्ट्र सरकार के नोटिफिकेशन की कॉपी भी मौजूद है।

एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के अधिकार...

  1. शांति और व्यवस्था बनाए रखना : एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाने का अधिकार होता है। इसमें धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा जारी करना शामिल है

  2. जांच और निरीक्षण : एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को विभिन्न मामलों की जांच और निरीक्षण करने का अधिकार होता है, जैसे अवैध निर्माण, अतिक्रमण, और अन्य प्रशासनिक मामलों की जांच।

  3. लाइसेंस और परमिट जारी करना : विभिन्न प्रकार के लाइसेंस और परमिट जारी करने का अधिकार भी एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के पास होता है, जैसे हथियारों के लाइसेंस आदि।

  4. आपातकालीन स्थिति में कार्रवाई : आपातकालीन स्थिति में, जैसे प्राकृतिक आपदा या दंगा... इनमें एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को त्वरित कार्रवाई करने का अधिकार होता है।

  5. सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा : सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को आवश्यक कदम उठाने का अधिकार होता है।

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