भोपाल नवाब की 15 हजार करोड़ की प्रॉपर्टी पर सरकार का दावा, विवाद जारी

भोपाल नवाब की 15 हजार करोड़ की संपत्ति को शत्रु संपत्ति मानकर सरकार अधिग्रहण की तैयारी कर रही है। परंतु, ऐतिहासिक दस्तावेजों और केंद्र के दो आदेशों के कारण विवाद बरकरार है।

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Siddhi Tamrakar
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भोपाल नवाब की संपत्ति पर केंद्र का दावा
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भोपाल रियासत की ऐतिहासिक संपत्तियों को लेकर विवाद एक बार फिर चर्चा में है। शत्रु संपत्ति के तहत, केंद्र सरकार ने भोपाल नवाब की 15 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति को अपने अधिकार में लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। हालाँकि, 1949 के मर्जर एग्रीमेंट (Merger Agreement) और 1947 के भोपाल गद्दी उत्तराधिकारी अधिनियम (Bhopal Succession Act) के अनुसार, यह मामला कानूनी उलझनों में फंसा हुआ है।

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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

1949 में भोपाल रियासत का भारत में विलय हुआ। इस विलय के दस्तावेजों के अनुसार, नवाब का टाइटल उनकी सबसे बड़ी संतान को दिया जाना था। हालांकि, नवाब हमीदुल्ला खान की बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान (Abida Sultan) पाकिस्तान की नागरिक बन गई थीं, जिससे उनकी छोटी बहन साजिदा सुल्तान को उत्तराधिकारी घोषित किया गया। इसके बाद यह टाइटल मंसूर अली खान पटौदी और अब सैफ अली खान को मिला।

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शत्रु संपत्ति का दावा

शत्रु संपत्ति कार्यालय के 2015 के सर्टिफिकेट के अनुसार, आबिदा सुल्तान को नवाब का उत्तराधिकारी माना गया, क्योंकि वे बड़ी संतान थीं। लेकिन उनके पाकिस्तान जाने के बाद, भारत सरकार ने उनकी संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित करने का दावा किया।

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संपत्तियों की सूची और कानूनी स्थिति

1960 की स्थिति के अनुसार, भोपाल नवाब की जो संपत्तियां थीं, उनमें से कई अब शत्रु संपत्ति के दायरे में आ रही हैं। इनमें ऐशबाग स्टेडियम, बरखेड़ी, रायसेन, और इच्छावर की जमीनें शामिल हैं।

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प्रभावित लोग और क्षेत्र

इस विवाद से पुराने भोपाल का लगभग 50% हिस्सा प्रभावित हो सकता है। लगभग 5 लाख लोग और 1 लाख से अधिक परिवार इन संपत्तियों के स्वामित्व विवाद में फंस सकते हैं।

कानूनी और प्रशासनिक पेच

शत्रु संपत्ति कार्यालय के नियमों के अनुसार, इन संपत्तियों की खरीद-फरोख्त पर रोक लगा दी गई है। भोपाल कलेक्टर इस विवाद में अहम भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन अंतिम निर्णय शत्रु संपत्ति कार्यालय का होगा।

जनता के लिए विकल्प

जो लोग इन संपत्तियों में रह रहे हैं, उनके पास सरकार के रुख स्पष्ट होने तक कोई ठोस विकल्प नहीं है। सरकार चाहे तो इन संपत्तियों पर कब्जा करके वहां रह रहे लोगों को हटा सकती है।

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